अमेरिकी सैनिकों के हटते ही अफगानिस्तान में एक बार फिर कायम तालिबान का आतंक, 140 जिलों पर किया कब्जा
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के हटते ही एक बार फिर तालिबान लड़ाकों का संगठन वहां एक्टिव हो गया है। अफगानिस्तान के कई जिलों पर उसने अपना कब्जा जमाना शुरू कर चुका है। तालिबान के दबदबे का सबसे ज्यादा प्रभाव उत्तरी अफगानिस्तान इलाके में हैं। खबर के अनुसार, अफगानिस्तान के 140 जिलों पर अभी तक तालिबानियों ने कब्जा कर चुका है।
तालिबान के आतंक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अफगान सैनिकों और तालिबानियों के बीच तजाकिस्तान के बॉर्डर एरिया ‘बरख्शान’ में जब आमना-सामना हुआ तो अफगान सैनिकों ने तजाकिस्तान भाग कर अपनी जान बचाई और लगभग 150 सैनिकों ने तो तालिबान की टुकड़ी में शामिल हो गए। इतना ही नहीं तालिबानियों ने हेलमंद में सैनिकों को हराने के उनके हथियारों के गोदाम को ही लूट लिया।
क्या है तालिबानियों की मंशा?
अफगानिस्तान में हो रहे लगातार जीत से इन तालिबानियों का हौसला बुलंद है। उनमें से एक लड़ाका ने कहा कि ‘हम सरकार को बर्बाद कर देंगे। वह हमारे लोगों को अगवा कर रहे हैं, मार रही है, हमारी समाज को खत्म कर रहे हैं। अस्पताल स्कूल शिक्षा व्यवस्था सभी चौपट बना रही हैं। इसलिए हम अफगान होने के नाते सरकार के साथ काम नहीं कर सकते।’
बता दें कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में 20 सालों तक अपने सैनिकों को भेजकर तालिबान से लड़ाई लड़ी। लेकिन अब अमेरिका द्वारा तैनात अपने सैनिकों को वापस बुलाने के बाद तालिबानियों ने एक बार फिर से अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया है। उनका आतंक दोबारा चरम पर पहुंचने लगा हैं। अफगान सैनिक उनके सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो जा रहे हैं।
उधर, अमेरिकी थिंक टैंक का कहना है कि तालिबान को तब तक खत्म नहीं किया जा सकता है जब तक उसकी आर्म्स और आर्थिक सप्लाई को पूर्ण रूप से रूका नहीं जाता।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि तालिबान हथियार कहां से लाता है?
दरअसल, तालिबान को हथियार सप्लाई के कई सोर्स हैं। सबसे ज्यादा हथियार अफगानी सेना से लूटपाट कर पूरा करते हैं। उसके बाद देशी आर्म फैक्ट्री, ISI भी गुपचुप तरीके से हथियार बेचती है। पाकिस्तान के ‘दर्रा आदम खेल’ से भी खरीदते हैं। वहीं रूस पर भी तालिबान को हथियार सप्लाई करने का आरोप लगते रहे हैं। उधर चीन भी अमेरिका से बदला लेने के लिए तालिबान को हथियारों का मदद करता है।
By: Sumit Anand