कृष्ण की नगरी मथुरा क्यों प्रसिद्ध है कला के क्षेत्र में? यहाँ है पूरी जानकारी
प्राचीन काल से ही भारत कला के क्षेत्र में सबसे आगे रहा है। देश के हर कोने में अलग – अलग तरीके की कला देखने को मिलती है। भारत में प्राचीन काल में लोगों ने देवी – देवताओं की मूर्तियां बनाने की शुरुआत की। बात करे हड़प्पन कालीन मूर्तिकला, मौर्यकालीन मूर्तिकला, कुषाण कालीन मूर्तिकला की , गांधार शैली, अमरावती शेली या मथुरा शैली यह सभी भारतीय कला को एक महत्वपूर्ण देन है।
मथुरा नगरी का नाम सुनते ही सभी के मन में श्री कृष्ण द्वारा रचाई गई रास लीला, जन्म भूमि, राधे – राधे की गूंज ओर अनेकों मंदिरो का स्मरण होता है। हम सभी इसे श्री कृष्ण की नगरी के नाम से जानते है। लेकिन, इसके अलावा यह मथुरा शैली के लिए भी लोकप्रिय ओर प्रसिद्ध है।
कुषाण काल के वक्त के वक्त जैन, बौद्ध और ब्राह्मण थे जिनमे से ब्राह्मण ज़्यादातर मूर्ति पूजन को मान्य देते थे। धीरे – धीरे अल्प कला में ही विष्णु, दुर्गा,सूर्य,शिव,,कुबेर, इत्यादि हिंदु धर्म की मूर्तियां बनने लगी।
मथुरा की कुषाण कला में जैन धर्म की तीर्थकर (यानी सबसे पहले प्रतिमाओं का जन्म )देवी, देवताओं, की मूर्तियां नेगमेश, हरिनेगमेशी, रेवती या पष्ठी, सरस्वती, कृष्ण बलराम प्राप्त हुई। पश्चिम के विद्वानों ने भारतीयों कला का अध्ययन किया और बताया कि बुद्ध की प्रथम प्रतिमा मथुरा में बनी थी। माथुरी काल में सूर्य प्रतिमा, शिव, विष्णु,शक्ति प्रतिमाएं, के अतिरिक्त नाग वा नाग स्त्रियों को प्रतिमाएं भी अच्छी मात्रा में मिलती है।
मथुरा नगरी में जैन बौद्ध, हिन्दू धर्म के देवी देवताओं की प्राचीन मूर्तियां प्राप्त हुई, जिन्हे मथुरा के राजकीय संग्रहालय, लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में रखा गया है। इन मूर्तियों में मूर्तियां बनाने वाली की भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति झलकती है। उनकी आस्था, श्रद्धा के प्रतीक की मूर्तियां आज भी इस दुनिया में जीवित है , डेढ़ हजार वर्षो तक मथुरा शैली मे शिल्पियों ने साधना की। और भगवान बुध्द, विष्णू,शिव, आदि देवी देवताओं की मूर्तियां बनाई। जो कि, भारतीय कला में एक बहुत ही महत्वपूण योगदान है, मथुरा संग्रहालय मे महात्मा बुध्द, कनिष्क एवं कुबेर की प्रतिमाऐं सुरक्षित है, महात्मा बुध्द की सौ से अधिक मूर्तियां मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है मथुरा में बौध्द भगवान की मूर्तियां सबसे ज्यादा प्राप्त हुई।
Pallavi Pathak