हमारी भाषाओं को संरक्षित करने के लिए सहयोगपूर्ण और अभिनव प्रयासों की जरूरत है: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भारतीय भाषाओं के संरक्षण और कायाकल्प के लिए अभिनव और सहयोगपूर्ण प्रयासों का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि भाषाओं को संरक्षित करना और उनकी निरंतरता सुनिश्चित करना केवल एक जन आंदोलन के माध्यम से ही संभव है।
नायडु ने कहा कि हमारी भाषा की विरासत को हमारी आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करने के प्रयासों में लोगों को एक स्वर से साथ आना चाहिए।
भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने के लिए विभिन्न लोगों द्वारा संचालित मार्मिक पहलों पर बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने एक भाषा को समृद्ध बनाने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय भाषाओं में अनुवादों की गुणवत्ता और संख्या में सुधार के लिए प्रयास बढ़ाने का आह्वान किया।
नायडु ने युवाओं के लिए बोली जाने वाली भाषाओं में प्राचीन साहित्य को अधिक सुलभ और संबंधित बनाने की भी सलाह दी। अंत में, उन्होंने लुप्तप्राय और पुरातन शब्दों को ग्रामीण क्षेत्रों और विभिन्न बोलियों की भाषा में संकलित करने का भी आह्वान किया ताकि उन्हें भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जा सके।
मातृभाषाओं के संरक्षण पर ‘तेलुगु कूटमी’ द्वारा आयोजित एक वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए, श्री नायडु ने आगाह किया कि अगर किसी की मातृभाषा लुप्त जाती है, तो उसकी आत्म-पहचान और आत्म-सम्मान अंततः खो जाएगी। उन्होंने कहा कि हम अपनी विरासत के विभिन्न पहलुओं संगीत, नृत्य, नाटक, रीति-रिवाजों, त्योहारों, पारंपरिक ज्ञान को केवल अपनी मातृभाषा के जरिये ही संरक्षित कर सकते हैं।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, श्री एन.वी रमना की हालिया पहल की सराहना की, जिन्होंने एक महिला को अपनी मातृभाषा तेलुगु में अपनी परेशानियों को बताने की अनुमति देकर एक सौहार्दपूर्ण तरीके से 21 साल पुराने वैवाहिक विवाद को हल किया जब उन्होंने देखा कि उस महिला को धाराप्रवाह अंग्रेजी में बोलने में कठिनाई हो रही है। उन्होंने कहा कि यह मामला न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता पर बदल देता है ताकि लोग अदालतों में अपनी मूल भाषाओं में अपनी समस्याओं को बता सकें और क्षेत्रीय भाषाओं में आदालत निर्णय भी दे सकें।
उपराष्ट्रपति ने प्राथमिक विद्यालय स्तर तक मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने और प्रशासन में मातृभाषा को प्राथमिकता देने के महत्व को भी दोहराया।
नायडू ने एक दूरदर्शी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लाने के लिए केंद्र सरकार की सराहना की, जो हमारी शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा के उपयोग पर जोर देती है। उन्होंने कहा कि एनईपी की परिकल्पना के अनुसार समग्र शिक्षा तभी संभव है जब हमारी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को हमारी शिक्षा प्रणाली में एकीकृत किया जाए।
उन्होंने नए शैक्षणिक वर्ष से विभिन्न भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों के हालिया निर्णय की सराहना की। उन्होंने तकनीकी पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं के उपयोग में क्रमिक तरीके से बढ़ाने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने लुप्तप्राय भाषाओं के सुरक्षा और संरक्षण के लिए योजना (एसपीपीईएल) के माध्यम से लुप्त हो रही देशी भाषाओं की रक्षा करने की पहल के लिए शिक्षा मंत्रालय के प्रयासों की भी सराहना की।
मातृभाषा के संरक्षण में दुनिया में विभिन्न सर्वोत्तम परिपाटी का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने भाषा के प्रति उत्साही भाषाविदों, शिक्षकों, अभिभावकों और मीडिया से ऐसे देशों से पूरा ज्ञान लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कानून जैसे विभिन्न उन्नत विषयों में अपनी मातृभाषा का उपयोग करते हुए खुद को अंग्रेजी बोलने वाले देशों के मुकाबले हर क्षेत्र में मजबूत साबित किया है।
नायडू ने व्यापक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में सुधार का भी सुझाव दिया।
यह देखते हुए कि मातृभाषा को महत्व देने का अर्थ अन्य भाषाओं की उपेक्षा नहीं है, नायडु ने बच्चों को अपनी मातृभाषा में मजबूत नींव के साथ अधिक से अधिक भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।