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मुट्ठीभर तालिबानियों से कैसे हारा अफगानिस्तान, अमेरिका ने भी दिया धोखा; आइए जानते है 2001 से लेकर 2021 तक का सफर

तालिबान ने काबुल पर कब्जा करने और राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर भाग जाने के बाद ,अफगानिस्तान में युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी है। अल जज़ीरा के अनुसार काबुल की सड़कों पर सोमवार को सन्नाटा था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दहशत के दृश्य थे। सैकड़ों लोग देश छोड़ने की जद्दोजहद कर रहे थे।

आज पूरे 20 साल बाद ,एक बार फिर से अफगानिस्तान पर तालिबान की हुकूमत शुरू हो गई है। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत कहे जाने वाले अमेरिका को भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि तालिबान इतनी जल्दी पूरे अफगानिस्तान को अपने कब्जे में कर लेगा। अमेरिकी नेतृत्व में नाटो सेनाओ ने 2001 में तालिबान की सरकार को उखाड़ फेंका था।

9/11 के हमलों के जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने “आतंकवाद के खिलाफ युद्ध” शुरू किया., जिसमें करीब 3,000 लोग मारे गए थे। ओसामा बिन लादेन और अल कायदा को तालिबान सरकार ने पनाह दी हुई थी। अमेरिका ने हामिद करजई को नियुक्त किया और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल को तैनात करना शुरू कर दिया।

9 अक्टूबर, 2004 को अफगानिस्तान का पहला चुनाव हुआ, जिसमे करजई को 55 प्रतिशत वोट मिले और इसी वक्त तालिबान दक्षिण और पूर्व में फिर से इकठ्ठा हो गया और विद्रोह करना शुरू कर दिया।

2008 में ,तालिबान के हमले बढ़े, तो अमेरिका ने और सैनिकों की मांग की और पहले से ज्यादा फौज अफगानिस्तान में भेज दी। 20 अगस्त, 2009 को हामिद करजई एक बार फिर से राष्ट्रपति चुने गए।

2009 में, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी सैनिकों की संख्या को दोगुना कर 68000 कर दिया। 2010 में, अमेरिकी सैनिकों की संख्या अ फगानिस्तान में लगभग 100,000 तक पहुंच गई।

2 मई, 2011 को ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में अमेरिकी विशेष बलों के ऑपरेशन में मारा गया था। 22 जून 2012 को, ओबामा ने 33,000 सैनिकों की वापसी की घोषणा की।

जून 2014 में, अशरफ गनी राष्ट्रपति चुने गए, लेकिन मतदान में हिंसा और धोखाधड़ी ने उनके चुनाव को विवादो में घेर लिया। दिसंबर में, नाटो ने अपने लड़ाकू मिशन को समाप्त कर दिया। फिर अफगान सेना को निपुण करने के लिए कई सैनिक अफगानिस्तान में छोड़ दिए।

अगले साल, तालिबान के भागने के बाद एक दूसरा आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट भी इस क्षेत्र में सक्रिय हो गया। इसके साथ ही अफगानिस्तान में ,खासकर काबुल में ,खूनी हमले कई गुना बढ़

18 फरवरी, 2020 में अशरफ गनी को ,दूसरे कार्यकाल के लिए विजयी घोषित किया गया। एक घोषणा को पूर्व मंत्री अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने खारिज कर दिया, जो अपनी सरकार बनाने की कसम खाते रहे हैं। 29 फरवरी को, अमेरिका और तालिबान ने दोहा में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सभी विदेशी सेना मई 2021 तक अफगानिस्तान छोड़ देगी और विद्रोही काबुल के साथ बातचीत शुरू करें और सुरक्षा की गारंटी देने का वादा भी करें।

मई में सत्ता के बंटवारे के समझौते में अशरफ गनी और अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह के झगड़े का अंत हो गया। अब्दुल्ला शांति चाहते हैं ,इसीलिए सितंबर में बातचीत शुरू हुई, लेकिन हिंसा बढ़ती गई और हत्याओं के लिए तालिबान को दोषी ठहराया गया।

1 मई, 2021 को अमेरिका और नाटो ने अपने 9,500 सैनिकों को वापस बुलाना शुरू किया। 2,500 अमेरिकी सैनिक थे ,जो कंधार एयरबेस से हट गए।

2 जुलाई को, बगराम एयरबेस,अफगान बलों को सौंप दिया गया ,जो कि अफगानिस्तान का सबसे बड़ा, और अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन के संचालन का सबसे बड़ा केंद्र था।

राष्ट्रपति ‘जो बाइडेन ‘ने कहा था कि 9/11 हमले की 20वीं बरसी से पहले 31 अगस्त तक अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया जायेगा।

अगस्त 2021 को विदेशी सैनिकों के वापस जाते ही तालिबान आतंकियों ने पूरे अफगानिस्तान में बिजली की रफ्तार में हमले शुरू कर दिए। भीतरी इलाकों के विशाल हिस्सों पर कब्जा कर लिया।

6 अगस्त को दक्षिण–पश्चिम में जरांज पर कब्जा कर लिया। कुछ ही दिनों के भीतर कंधार और हेरात भी उनके कब्जे में आ गए।

13 अगस्त तक उत्तर, पश्चिम और दक्षिण ,तालिबान के नियंत्रण में हो गया।पेंटागन ने कहा था कि काबुल को “आसन्न खतरे” का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन उनका अनुमान गलत साबित हुआ।

15 अगस्त को जलालाबाद पर कब्जा करने के साथ विद्रोहियों ने राजधानी काबुल को पूरी तरह से घेर लिया। तालिबान से जिन्हें खतरा था ,उन अधिकारियों और स्थानीय कर्मचारियों को निकालने के लिए, राजनयिक मिशन तेजी से काम में लग गए।

राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर ताजिकिस्तान भाग गए। इसके बाद तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया और अंत में राष्ट्रपति महल पर कब्जा कर लिया गनी ने अपने एक बयान में कहा कि विद्रोहियों की “जीत” हुई है।