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कॉट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर अमेरिका के किसान ने सुनाई आप-बीती

भारत में हो रहे किसान आंदोलन पर पूरी दुनिया नजरे जमाई हुई है, वहीँ कई देशों ने प्रोटेस्ट का खुलकर का समर्थन भी किया है। गौरतलब है की कॉट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर देश और दुनिया दो हिस्सों में बँट चुकी है। उनके अलग-अलग मत है। कॉट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर बीबीसी ने अमेरिका के किसान ‘विलियम थॉमस बटलर’ से बात की जहाँ वह अपनी आप-बीती बताई।

अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में सूअर पालने वाले एक किसान विलियम थॉमस बटलर ने 1995 में एक मीट प्रोसेसिंग कंपनी के साथ अनुबंध किया था।

सौदे में लिखी शर्तों पर वो कहते हैं कि, “हम जिनसे अनुबंध करते हैं, उन पर कम या ज़्यादा यक़ीन ज़रूर करते हैं।”उन्होंने मुझे बताया कि कंपनी ने उन्हें हर साल कितना मुनाफ़ा होना चाहिए इसके बारे में बताया था. बटलर ने क़रीब छह लाख डॉलर लोन लेकर 108 एकड़ ज़मीन में छह बाड़े तैयार किए। वो कहते हैं, “काफ़ी बढ़िया और शानदार चल रहा था. शुरू में ऐसा लग रहा था कि चीज़ें बेहतर हो रही हैं।”

बटलर ने सूअर पालने के लिए जिस कंपनी से करार किया था, उसने कचरा प्रबंधन को लेकर उन्हें अंधेरे में रखा

बटलर के मुताबिक़ लेकिन बाद में चीज़ें बदलनी शुरू हो गईं. बटलर कहते हैं, “पहली चीज़ जो कंपनी ने नहीं डिलीवर की वो थी कचरा प्रबंधन को लेकर दिया जाने वाला प्रशिक्षण. किसी भी किसान को मैं नहीं जानता जिसे इसका आइडिया हो कि वो हर रोज़ कितना कचरा पैदा करता है।”

“मेरे छोटे से खेत में 1000 गैलन से अधिक हर रोज़ कचरा पैदा होता है. अगर किसी किसान को उस वक़्त 1995 में यह पता होता तो कोई भी इस सौदे के लिए राज़ी नहीं होता. लेकिन हमें इसे लेकर पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया। ”

कमाई में उतार-चढ़ाव शुरू होने के साथ ही अनुबंध के तहत ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगीं।

बटलर बताते हैं, “हमें बताया गया था कि कैसे हम पैसे कमा सकते हैं लेकिन वो सब वाक़ई में बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया था. धीरे-धीरे कई सालों में उनकी ओर से दी गई गारंटी को उन्होंने बदल दिया. शुरुआत में सारी ज़िम्मेदारी कंपनी के ऊपर होती थी. किसानों को सिर्फ़ सूअर पालना होता था। बीमारी या बाज़ार के उतार-चढ़ाव जैसी बातों की चिंता सूअर पालने वालों को नहीं करनी थी।”

बटलर के अनुभव के मुताबिक़ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में बीमारी से लेकर बाज़ार में होने वाले उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों की भी जिम्मेवारी धीरे-धीरे किसानों पर डाल दी जाती है।

बटलर के सामने यह थी समस्या

कर्ज में डूबे होने की वजह से बटलर के सामने इस अनुबंध से बाहर आने का रास्ता बंद हो चुका है। वो कहते हैं कि हम इस अनुबंध को तोड़ भी नहीं सकता हूँ क्योंकि इसके बाद दूसरी स्थानीय कंपनी की ओर से अनुबंध पाने की संभावना फिर बहुत कम होगी।

अनुबंध से बाहर आने का मतलब यह भी होगा कि अब तक निवेश से हाथ धो देना। एक्टिविस्टों का कहना है कि मुनाफा कमाने के लिए कॉरपोरेट्स ने किसानों को पूरी तरह से निचोड़ लिया है।

किसानों के मुताबिक मुर्गी पालन करने वाले किसानों को अनुबंध के हिसाब से कम लागत में बढ़िया मुर्गी तैयार करने पर भुगतान किया जाता है. इसे ‘टूर्नामेंट सिस्टम’ कहते हैं।

इसका मतलब यह हुआ कि एक किसान दूसरे किसान के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा और आधे किसानों को बोनस मिलेगा और आधे किसानों को मिलने वाले पैसे में कटौती की जाएगी।

दशकों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को यह कहकर बढ़ावा दिया जाता रहा है कि ये किसानी और पशुपालन को आधुनिक बनाने में मदद करेगी और किसानों को बेहतर बाज़ार का विकल्प मुहैया कराएंगे।

Written by Sachin Sarthak

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