एनटीपीसी ने 9.3 लाख टन बायोमास पेलेट का ऑर्डर दिया
सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी ने विद्युत संयंत्रों में ‘को-फायरिंग’ के लिए 9,30,000 टन बायोमास पेलेट का ऑर्डर दिया है जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
बायोमास पेलेट बायोमास ईंधन का एक प्रकार हैं जो आमतौर पर लकड़ी के अपशिष्ट, जंगलों से मिलने वाले अवशिष्ट आदि से बनाया जाता हैं। वहीं को-फायरिंग का मतलब बिजली के उत्पादन के लिए कोयले और बायोमास ईंधन के मिश्रण के दहन से है।
केन्द्रीय विद्युत सचिव आलोक कुमार ने ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास को-फायरिंग की स्थिति की समीक्षा बैठक ली। बैठक में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधियों, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, एनटीपीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, मिशन निदेशक-राष्ट्र जैव मिशन और विद्युत मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
इसमें यह निकलकर आया कि विद्युत मंत्रालय द्वारा की गई विभिन्न कदमों के परिणामस्वरूप, एनटीपीसी और विभिन्न राज्यों द्वारा बायोमास की खरीद की पहल निम्नानुसार की गई है:
एनटीपीसी ने 8,65,000 टन बायोमास पैलेट्स खरीदने के लिए ऑर्डर दिया, जिसके लिए आपूर्ति पहले से ही प्रगति पर है। इसके अलावा, एनटीपीसी ने अक्टूबर ’21 में 65,000 टन का अतिरिक्त बायोमास पैलेट्स खरीदने का ऑर्डर दिया है। साथ ही 25,00,000 टन बायोमास पैलेट्स की खरीद की एक और श्रृंखला प्रगति पर है, जिसके लिए विक्रेताओं को 1 नवंबर तक प्रस्ताव पेशकश करने को कहा गया है।
हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश मिलकर अपने बिजली संयंत्रों में को-फायरिंग के लिए लगभग 13,01,000 टन बायोमास पैलेट्स की खरीदारी कर रहे हैं। इन राज्यों द्वारा दिए गए ऑर्डर को नवंबर 2021 में अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।
उल्लेखनीय है कि इस संदर्भ में, विद्युत मंत्रालय ने 17 नवंबर, 2017 को कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में को-फायरिंग के माध्यम से बिजली उत्पादन के लिए बायोमास के उपयोग पर नीति को जारी किया था।
इस नीति में यह सलाह दी गई थी कि कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र (बिजली उत्पादन उपयोगिताओं के बॉल और ट्यूब मिल वाले को छोड़कर), मुख्य रूप से कृषि अवशेषों से बने बायोमास पैलेट्स के 5-10% मिश्रण का इस्तेमाल करने का प्रयास करें लेकिन पहले तकनीकी व्यवहार्यता और सुरक्षा पहलू आदि का आकलन कर लें। अगर सब कुछ सही हो तो बायोमास पैलेट्स का इस्तेमाल करें।
देश में ऊर्जा गति को और समर्थन देने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 08 अक्टूबर, 2021 को नीति को संशोधित कर जारी किया गया था। यह संशोधित नीति ऊर्जा के वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में आवश्यक दिशा प्रदान करेगी। “कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में को-फायरिंग के माध्यम से बिजली उत्पादन के लिए बायोमास के इस्तेमाल के लिए संशोधित नीति” के मुख्य बिंदु निम्नानुसार हैं:
1. यह अनिवार्य किया गया है कि सभी थर्मल पावर प्लांट को इस दिशानिर्देश के जारी होने की तारीख से एक वर्ष तक कोयले के साथ मुख्य रूप से कृषि अवशेषों से बने बायोमास पैलेट्स के 5% मिश्रण का उपयोग करना होगा। इस आदेश के जारी होने की तारीख के दो साल बाद और बायोमास पैलेट्स का इस्तेमाल बढ़ाकर 7% करना (बॉल और ट्यूब मिल को छोड़कर बायोमास का उपयोग 5% रहेगा) होगा।
2. नीति में यह सलाह दी गई है कि जनरेटिंग यूटिलिटीज द्वारा बायोमास पैलेट्स की खरीद के लिए न्यूनतम अनुबंध अवधि 7 साल होगी ताकि हर साल उत्पादन कंपनियों द्वारा अनुबंध देने में देरी से बचा जा सके और लंबी अवधि की आपूर्ति श्रृंखला भी बनाई जा सके।
3. टैरिफ निर्धारण और शेड्यूलिंग से संबंधित प्रावधान नीचे दिए गए अनुसार होंगे:
(3.1) विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 62 के तहत स्थापित परियोजनाओं की लगात में वृद्धि अगर बायोमास पैलेट्स को-फायरिंग में करने के कारण होती है तो लागत में वृद्धि को ऊर्जा प्रभार दर (ईसीआर) में हस्तांतरित किया जाएगा।
(3.2) विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 63 के तहत स्थापित परियोजनाओं के लिए, बायोमास को-फायरिंग के कारण ईसीआर में वृद्धि का दावा कानून प्रावधानों में परिवर्तन के तहत किया जा सकता है।
(3.3) बिजली संयंत्र के मेरिट ऑर्डर डिस्पैच (एमओडी) के निर्णय में ईसीआर पर इस तरह के अतिरिक्त प्रभाव पर विचार नहीं किया जाएगा।
(3.4) डिस्कॉम जैसी बाध्य संस्थाएं इस तरह की को-फायरिंग की खरीदकर को अपने अक्षय खरीद दायित्वों (आरपीओ) में पूरा कर सकती हैं।
संशोधित नीति की प्रति विद्युत मंत्रालय की वेबसाइट पर वेबलिंक पर निम्नानुसार उपलब्ध है:
विद्युत मंत्रालय ने पहले ही कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के इस्तेमाल पर राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की है, ताकि खेत में पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण के समस्या का समाधान किया जा सके और थर्मल पावर उत्पादन के कार्बन फुटप्रिंट्स को कम किया जा सके, जो देश में ऊर्जा गति को समर्थन करेगा क्योंकि तय तय किया गया है कि देश और हमारा लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना है।
मिशन वर्तमान में पूरी तरह से कार्य कर रहा है और ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास को-फायरिंग को प्रोत्साहित करने और समर्थन देने के लिए कदम उठा रहा है।
मिशन बायोमास आपूर्ति श्रृंखला के विकास, हितधारकों को संवेदनशील बनाने और उभरते उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई पहल उठा रहा है। हाल ही में इस महीने में फरीदाबाद, हरियाणा और नंगल, रोपड़ में दो प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। दोनों कार्यक्रमों में क्षेत्र के किसानों की सक्रिय भागीदारी देखी गई, जिसमें उन्हें मिट्टी की उत्पादकता पर फसल अवशेषों के जलने के नकारात्मक प्रभाव और टीपीपी में बायोमास को-फायरिंग की मूल्य श्रृंखला में भाग लेकर अपनी आय बढ़ाने के तरीके को लेकर जागरूक किया गया। निकट भविष्य में इस तरह के और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है। इसके अलावा, थर्मल पावर प्लांटों में बायोमास के पर्यावरण के अनुकूल उपयोग के लाभ के संबंध में बड़े पैमाने पर विज्ञापन और मीडिया अभियान भी चलाए जा रहे हैं।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, अक्टूबर 2021 के महीने में लगभग 1400 टन बायोमास का इस्तेमाल किया गया है और अब तक कुल 53000 टन बायोमास को बिजली संयंत्रों में हरित ईंधन के रूप में उपयोग किया जा चुका है। सबसे अधिक प्रभावित छह राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, राजस्थान और एमपी में पराली जलने की घटनाओं में 2020 में इसी अवधि की तुलना में 2021 में अब तक 58.3% की कमी आई है। उम्मीद है कि नवगठित राष्ट्रीय मिशन के माध्यम से एमओपी के प्रयास उत्तर पश्चिम भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ कृषि भूमि की उर्वरता के नुकसान को रोकने और किसानों, आपूर्तिकर्ताओं और बायोमास ईंधन निर्माताओं के लिए एक स्थायी आय स्रोत प्रदान करने में सक्षम होंगे।