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विकसित राष्ट्र हर साल 100 अरब अमेरिकी डॉलर का सहयोग देने में विफल रहे: भूपेंद्र यादव

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने ग्लासगो में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलनदेशों के बेसिक समूह की ओर से बयान दिया।

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भले ही सीओपी26 में एक साल की देरी हो गई हो, लेकिन पार्टियों (देशों) ने पहले ही अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) का कार्यान्वयन शुरू कर दिया है और इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि सीओपी26 में पेरिस समझौते की नियम पुस्तिका का निष्कर्ष निकाला जाए।

भूपेन्द्र यादव ने कहा, “ऐसा करने के लिए, समानता और सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिए पूर्ण प्रभाव दिया जाना चाहिए और पार्टियों की अलग-अलग राष्ट्रीय परिस्थितियों को स्वीकार किया जाना चाहिए।” श्री यादव ने कहा कि विकासशील देशों को कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य की ओर कदम बढा़ने के लिए समय, नीतिगत स्थान और सहयोग दिया जाना चाहिए।

भारत के पर्यावरण मंत्री ने उल्लेख किया कि सीओपी26 का उद्देश्य जलवायु वित्त और अनुकूलन पर उच्च वैश्विक महत्वाकांक्षा को निर्धारित करने के साथ-साथ पार्टियों की अलग-अलग ऐतिहासिक जिम्मेदारियों और विकासशील देशों द्वारा सामना की जाने वाली विकासात्मक चुनौतियों की पहचान करना होना चाहिए। कोविड-19 महामारी ने इन चुनौतियों को जटिल बना दिया है।

बयान में, यादव ने पेरिस समझौते की ऊर्ध्वगामी प्रकृति और पार्टियों की अपने एनडीसी को निर्धारित करने और वैश्विक स्टॉकटेक चक्र के परिणामों के आधार पर और राष्ट्रीय परिस्थितियों और वैज्ञानिक कारणों के आधार पर लगातार अद्यतन करने की स्वतंत्रता का उल्लेख किया।

दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य के संबंध में, उन्होंने पुष्टि की कि नवीनतम उपलब्ध विज्ञान यह स्पष्ट करता है कि सभी देशों को तुरंत अपने उचित हिस्से का योगदान करने की आवश्यकता है, और इसे प्राप्त करने के लिए विकसित देशों को अपने उत्सर्जन को तेजी से कम करने और विकासशील देशों को वित्तीय सहयोग को बहुत अधिक बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

पर्यावरण मंत्री ने कहा, “विकसित देश न केवल 2009 के बाद से हर साल विकासशील देशों को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का सहयोग देने के लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहे हैं, बल्कि वे 2009 के लक्ष्य को 2025 तक अपनी अधिकतम सीमा के रूप में प्रस्तुत करना जारी रखे हुए हैं। एक संदर्भ में जहां बेसिक देशों सहित विकासशील देशों ने 2009 के बाद से बड़े पैमाने पर अपने जलवायु कार्यों को आगे बढ़ाया है, यह अस्वीकार्य है कि अभी भी विकसित देशों की ओर से जलवायु वित्त सहायता पर कार्यान्वयन के सक्षम साधनों को लेकर ऐसा कोई संकल्प नजर नहीं आता है।”

उन्होंने आगे कहा कि सीओपी26 को ऐसे सीओपी के रूप में याद रखने की जरूरत है जिसमें विकसित देशों की ओर से विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए एक कदम उठाया जाए।

उन्होंने कहा कि वित्त, प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण तथा क्षमता निर्माण विकासशील देशों में जलवायु कार्यों के महत्वपूर्ण सहायक घटक हैं।

मंत्री ने कहा, “विशेष रूप से जलवायु वित्त और अनुच्छेद 6 पर निर्णय जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण मदद कर सकते हैं। एक बाजार तंत्र जो कार्बन बाजारों में निजी क्षेत्र की भागीदारी की सुविधा प्रदान करता है, जलवायु महत्वाकांक्षा को और बढ़ाने में मदद कर सकता है। एनडीसी के तहत जो लक्ष्य हासिल किया जा रहा है, यह उसे और बढ़ाएगा।”

यादव ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बहुपक्षवाद की सफलता यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया की पारदर्शी, समावेशी, पार्टी संचालित और आम सहमति आधारित प्रकृति में निहित है और समूह को उम्मीद है कि एजेंडा के सभी विषय समावेशी और संतुलित तरीके से आगे बढ़ेंगे, और परिणाम सभी देशों के विचारों को दर्शाने वाला होना चाहिए।

अंत में, बेसिक समूह की ओर से, भूपेंद्र यादव ने जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और सीओपी26 का एक सफल परिणाम सुनिश्चित करने के लिए प्रेसीडेंसी और अन्य सभी देशों के साथ रचनात्मक और प्रगतिशील रूप से काम करने की पूर्ण प्रतिबद्धता की पुष्टि की।