भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग देश की अर्थव्यवस्था को वास्तविक रूप में नहीं दिखाती हैः आर्थिक समीक्षा
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश करते कहा कि सोवरेन क्रेडिट रेटिंग को अधिक पारदर्शी होना चाहिए और इसमें अर्थव्यवस्था के मूल तत्वों का प्रतिबिम्ब होना चाहिए।
सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के इतिहास में ऐसा अब तक नहीं हुआ है कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को निवेश के लिए सबसे निम्न श्रेणी (बीबीबी/बीएए3) दी गई हो। चीन और भारत इसके अपवाद हैं। अर्थव्यवस्था के आकार तथा कर्ज वापस करने की क्षमता के आधार पर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था एएए रेटिंग दी गई थी।
भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है। विभिन्न कारकों की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के प्रभाव की तुलना में देश को कम रेटिंग दी गई है। इन कारकों में शामिल हैं-जीडीपी विकास दर, महंगाई दर, सरकारी कर्ज (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), चालू खाता धनराशि (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), लघु अवधि के विदेशी कर्ज (विदेशी मुद्रा भंडार के प्रतिशित के रूप में), विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्ता अनुपात, राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशकों की सुरक्षा, कारोबार में सुगमता और सोवरेन जवाबदेही को पूरा करने में विफलता। यह स्थिति न सिर्फ वर्तमान के लिए बल्कि पिछले दो दशकों के लिए भी सत्य है।
रेटिंग देश की अर्थव्यवस्था के वर्तमान परिदृश्य को सही रूप में नहीं दिखाता है। सोवरेन क्रेडिट रेटिंग में पिछले कई बार किए गए बदलावों से अर्थव्यवस्था के संकेतकों, जैसे-सेंसेक्स रिटर्न, विदेशी मुद्रा विनिमय दर और सरकारी प्रतिभूतियों से होने वाली आय, पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा।
समीक्षा में कहा गया है कि सोवरेन क्रेडिट रेटिंग इक्विटी और विकासशील देशों में कर्ज एफपीआई प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं। इससे संकट और गहरा हो सकता है। इसलिए सभी विकासशील देशों से आह्वान किया गया है कि वे सोवरेन क्रेडिट रेटिंग पद्धति से संबंधित इस पक्षपात को समाप्त करने के लिए एक साथ आएं और इसे अधिक पारदर्शी बनाएं। भारत ने जी-20 में क्रेडिट रेटिंग के मामले को उठाया है। सोवरेन क्रेडिट रेटिंग में भुगतान करने की क्षमता और इच्छा को दर्शाया जाना चाहिए
क्रेडिट रेटिंग भुगतान न कर पाने की संभावना को मापता है और इसलिए इसमें कर्ज लेने वाले द्वारा अपनी जवाबदेही को पूरा करने की क्षमता और इच्छा प्रतिबिम्बित होती है। सोवरेन कर्ज भुगतान में भारत की विफलता शून्य है।
भारत के कर्ज भुगतान की क्षमता अल्प विदेशी कर्ज और विशाल विदेशी मुद्रा भंडार के आधार पर भी निर्धारित किया जा सकता है, जिसके माध्यम से निजी क्षेत्र के अल्पअवधि कर्ज तथा भारत के संपूर्ण सोवरेन और गैर-सोवरेन कर्ज का भुगतान किया जा सकता है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत का कुल सोवरेन विदेशी कर्ज मात्र चार प्रतिशत है। (सितंबर 2020 तक)
समीक्षा में कहा गया है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अतिरिक्त 2.8 मानक विचलन को कवर कर सकता है। वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 584.24 बिलियन डॉलर है (15 जनवरी 2021), जो भारत के कुल विदेशी कर्ज (निजी क्षेत्र के कर्ज समेत) 556.2 बिलियन डॉलर (सितंबर 2020) है। भारत का विशाल विदेशी मुद्रा भंडार देश की भुगतान क्षमता को दर्शाता है। भारत उस कंपनी की तरह है जिसका ऋण ऋणात्मक है और जिसके भुगतान न कर पाने की क्षमता शून्य है।
समीक्षा में विभिन्न उदाहरण पेश किए गए हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि पिछले दो दशकों के दौरान भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग का आकलन निचले स्तर पर किया गया है और यह पक्षपातपूर्ण है।
आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि भारत की वित्तीय नीति को पक्षपातपूर्ण रेटिंग के आधार पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे विकास पर केंद्रित होना चाहिए, जो गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर की भावना- मन बिना किसी भय को दर्शाती है।
Written by Ankit Anand
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