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तालिबान का समर्थन कर चीन ने की बड़ी गलती, अब हो रहा एहसास

तालिबान का लगातार समर्थन कर रहे चीन को अब अपनी गलतियों का एहसास होना शुरू हो गया है। हाल ही में अफगानिस्तान के जटिल हालात पर चीन के एक सीनियर मंत्री ने अपनी गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि इस्लामिक स्टेट, अल कायदा जैसे आतंकी संगठन अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी बढ़ाने में लगे हुए हैं।

अल अरबिया की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन को अफगानिस्तान में तालिबान को गले लगाने की अपनी गलती का एहसास हो गया है। तालिबान ने अफगानिस्तान पर अगस्त में जब कब्जा किया तो सबसे पहले तालिबान तक पहुंचने वाले देशों में से चीन था। मगर अब चार महीने बीत जाने के बाद चीन तालिबान से भरोसा खोता जा रहा है।

चीन को अक्टूबर में ही तालिबान समझ में आ गया था?
चीनी सहायक विदेश मंत्री वू जियानघाओ ने 22 दिसंबर को कहा था कि जिन आतंकी संगठनों के लिए सीमाओं का कोई अर्थ नहीं है, उन्हें एक देश द्वारा अकेले नहीं लड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि आतंकवाद से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को हाथ मिलाना चाहिए।

चीनी विदेश मंत्रालय ने 28 अक्टूबर को कहा था कि क्षेत्रीय और अंतररष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी स्थिति को अफगानिस्तान की स्थिति में बदलाव ने और जटिल बना दिया है। आतंकी संगठनों द्वारा इंटरनेट और मॉडर्न टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग करना एक गंभीर समस्या बनते जा रहा है।

उइगरों को चीन के खिलाफ भड़का रहा तालिबान?
बता दें कि तालिबान द्वारा काबुल पर 15 अगस्त को कब्जा के बाद से ही अफगानिस्तान में आर्थिक, मानवीय और सुरक्षा संकट बढ़ता जा रहा है। अफगानिस्तान के खनिज पर सालो से नजर गड़ाये बैठे चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट में अफगानिस्तान को शामिल किया था। रिपोर्ट के अनुसार चीन शिनजियांग के सुन्नी उइगरों को लेकर चिंतित है जो तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।


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