चेन्नई की महिला वैज्ञानिक को हरित प्रौद्योगिकी के जरिए औषधीय रूप से महत्वपूर्ण कंपाउंड बनाने के लिए पेटेंट प्रदान किया गया

चेन्नई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- मद्रास के रसायन विज्ञान विभाग में एकल माता और महिला वैज्ञानिक डॉ ई. पून्गुझली को हरित प्रौद्योगिकी विधि के जरिए औषधीय रूप से महत्वपूर्ण बेंजो[बी] थियोफीन नामक एक कंपाउंड को विकसित करने के लिए एक पेटेंट प्रदान किया गया है।

यह कंपाउंड दवाओं की एक श्रृंखला जैसे कि रालोक्सिफेन (ऑस्टियोपोरोसिस में उपयोग), जिल्यूटन (अस्थमा में उपयोग) व सेरटाकोंजोल (फंगलरोधी दवा) मौजूद है। इसके अलावा 2-सब्स्टूटेड बेंजो[बी]थियोफीन का एक-चरण संश्लेषण कंपाउंड के खतरनाक औद्योगिक उत्पादन को प्रतिस्थापित कर सकता है।

मौजूदा उपलब्ध कंपाउंड संश्लेषण विधियां जैसे कि फ्रीडेल-क्राफ्ट एसाइलेशन, मर्केप्टो एसिटेट रिएक्शन, सब्सक्वेंट एडिशन और ऑक्सीडेशन (ऑक्सीकरण) आदि के माध्यम से अच्छे से लेकर उत्कृष्ट स्तर तक का उत्पादन होता है, लेकिन ये सब पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं। इसके अलावा इनमें उच्चतम तापमान का उपयोग होता है। वहीं, इसके नुकसान के रूप में एक अप्रिय गंध के साथ सल्फर का उत्सर्जन और महंगी शुरुआती सामग्री आदि शामिल हैं।

इसके अतिरिक्त, विस्फोट के जोखिम को देखते हुए इस प्रक्रिया के तहत बंद नली में रिएक्शन को पूरा किया जाता है और इसमें जरूरी ओएलईडी प्रकाश के उपयोग से इसकी लागत बढ़ जाती है। चूंकि, इसके लिए जरूरी धातु उत्प्रेरक अपनी प्रकृति में विषैले होते हैं, इसलिए इसमें शामिल विभिन्न चरणों पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता होती है।

डॉ. पून्गुझली ने व्यावसायिक रूप से उपलब्ध शुरुआती सामग्री को जल के माध्यम और कमरे के तापमान पर खुली हवा के वातावरण में कॉपर एसीटेट व टेट्रा ब्यूटाइल अमोनियम क्लोराइड उत्प्रेरक प्रणाली की उपस्थिति में औषधीय रूप से महत्वपूर्ण 2-एसाइलबेन्जो[बी]थियोफीन में स्थानांतरित करने में सफल रही हैं। उन्होंने भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की महिला वैज्ञानिक योजना (डब्ल्यूओएस-ए) कार्यक्रम के तहत यह काम किया है।

नई विधि में माध्यम के तौर पर जल का उपयोग, कमरे का तापमान, गंधहीन जैंथेट, खुले वातावरण का उपयोग, व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सस्ती शुरुआती सामग्री और उत्प्रेरक को एक-पॉट विधि से फ्री हैंडलिंग शामिल हैं। इसने 2-एसाइलबेन्जो[बी]थियोफीन को अच्छे से उत्कृष्ट उत्पादन स्तर के लिए फर्निश किया है।

डॉ. ई. पून्गुझली और प्रो. जी. सेकर ने व्यावसायिक रूप से उपलब्ध 2-आयोडोबेंजाल्डिहाइड, फेनासिल ब्रोमाइड और जैंथेट सल्फर स्रोत को कॉपर एसीटेट और टेट्रा ब्यूटाइल अमोनियम क्लोराइड उत्प्रेरक की उपस्थिति में 2-एसाइलबेन्जो[बी]थियोफीन को फर्निश करने के लिए कमरे के तापमान पर जल में उपचारित किया। इसमें निर्मित उप-उत्पाद थिओलेट के उपयोग का पता लगाया जा रहा है। इसके अलावा बाकी सहायक उत्पादों को उनके विलेयता गुणों का उपयोग करके फिर से प्राप्त किया जा सकता है और शुद्ध किए जाने के बाद इसका फिर से उपयोग किया जा सकता है। नई विधि विस्फोट के जोखिम व प्रक्रिया की लागत को कम करती है और इसमें शामिल जहरीले और खतरनाक तरीकों से बचाती है।

इस प्रणाली के पीछे के विज्ञान पर डॉ पून्गुझली ने विस्तार से बताया कि चूंकि इसमें प्रयुक्त माध्यम जल है, इसलिए कार्बनिक विलायक की कोई जरूरत नहीं है। इसके अलावा इससे कोई वायु प्रदूषण भी नहीं होता है। उन्होंने आगे कहा कमरे के तापमान से ऊर्जा की बचत होती है व व्यावसायिक रूप से उपलब्ध शुरुआती सामग्री को औषधीय रूप से जरूरी बिल्डिंग ब्लॉक्स में सीधे वन-पॉट विधि से स्थानांतरित करने के चलते कार्यबल, ऊर्जा और स्थान की बचत होती है। वहीं, उप उत्पाद थायोलेट का उपयोग प्रक्रियाधीन है। एक ही समय पर दूसरी सहायक उत्पादों (केएल- पौटेशियम आयोडाइड और केबीआर- पौटेशियम ब्रोमाइड) और उत्प्रेरक (कॉपर एसीटेट और टेट्रा ब्यूटाइल अमोनियम क्लोराइड) को एक ही रिएक्शन और विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए फिर से प्राप्त और उपयोग किया जा सकता है।

डॉ. पून्गुझली ने कहा, “मेरे परिवार ने मुझे खतरनाक विधि को बदलने के लिए हरित प्रौद्योगिकी का आविष्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया था। डीएसटी की सहायता से जब मैंने अपना शोध कैरियर शुरू किया, तो मैंने प्रोफेसर जी. सेकर व प्रोफेसर रमेश एल गार्डास की मदद से हरित प्रणाली तैयार की और औषधीय रूप से महत्वपूर्ण कंपाउंड को संश्लेषित करने में सफल रही।

डॉ. पून्गुझली ने आगे कहा, “मेरा जीवन मेरे बेटे और मेरे शोध के आस-पास घूमता है। मुझे अब तक जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, उन्हें दूर करने और अपने शोध पर समय देने में मेरे बेटे ने सहायता की है।”