केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दी बरौनी सहित हर्ल के तीनों इकाई में नई निवेश नीति प्रयोजनीयता बढ़ाने की मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने उर्वरक विभाग के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) के तीन संयंत्रों – गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी– के लिये नई निवेश नीति (एनआईपी)-2012 की प्रयोजनीयता को विस्तार देने की बात कही गई है।
एचयूआरएल का 15 जून, 2016 को निगमीकरण हुआ था। वह कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), एनटीपीसी लिमिटेड (एनटीपीसी) और इंडियन ऑयल कार्पोरेशन (आईओसीएल) की संयुक्त उपक्रम कंपनी है।
एचयूआरएल 12.7 लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष संस्थापित क्षमता वाले गैस-आधारित यूरिया संयंत्रों की स्थापना करके एफसीआईएल की गोरखपुर और सिंदरी इकाइयों तथा जीएफसीएल की बरौनी इकाई को पुनर्जीवित कर रहा है। इन तीन एचयूआरएल यूरिया परियोजनाओं की लागत 25,120 करोड़ रुपये है। एचयूआरएल की तीनों इकाइयों को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति गेल द्वारा हो रही है।
एचयूआरएल के ये उत्कृष्ट संयंत्र सरकार की उस पहल का हिस्सा हैं, जिसके तहत एससीआईएल/एचएफसीएल के बंद पड़े यूरिया संयंत्रों को दोबारा चालू किया जाना है, ताकि यूरिया सेक्टर में आत्मनिर्भता प्राप्त की जा सके।
तीनों संयंत्रों के चालू हो जाने से देश में 38.1 एलएमटीपीए स्वदेशी यूरिया उत्पादन बढ़ जायेगा तथा यूरिया उत्पादन में प्रधानमंत्री की भारत को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की परिकल्पना को भी पूरा करने में सहायता होगी। इस परियोजना से न केवल किसानों को उर्वरक की उपलब्धता में सुधार आयेगा, बल्कि देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ सड़क, रेल, सहायक उद्योग आदि जैसे अवसंचरना विकास सहित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में तेजी आयेगी।
एचयूआरएल की तीनों इकाइयों में विभिन्न अनोखी विशेषतायें हैं, जैसे उत्कृष्ट विस्फोट निरोधी नियंत्रण कक्ष, जो डीसीएस (डिस्ट्रीब्यूटेड कंट्रोल सिस्टम), ईएसडी (एमरजेंसी शटडाउन सिस्टम) और पर्यावरण निगरानी प्रणालियों से लैस है।
इन संयंत्रों से अपशिष्ट जल की निकासी संयंत्र से बाहर किसी अन्य स्थान पर नहीं होती। प्रणालियों का संचालन बहुत उद्यमी, समर्पित और सुप्रशिक्षित परिचालकों द्वारा किया जाता है। एचयूआरएल-गोरखपुर इकाई के पास भारत का पहला 65 मीटर लंबाई और दो मीटर चौड़ाई वाला एयर ऑप्रेटेड बुलेट प्रूफ रबड़ डैम है।
इन तीनों इकाइयों में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकियां मौजूद हैं। इनका उद्देश्य है भारत के सात राज्यों– उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा– में यूरिया की मांग को पूरा करना।