भारत का परमाणु कार्यक्रम जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए है न कि मानव जीवन को नुकसान पहुंचाने के लिए: डॉ. जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत का परमाणु कार्यक्रम जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए है न कि मानव जीवन को नुकसान पहुंचाने के लिए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर आधारित डॉ. होमी भाभा द्वारा परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से एक लंबी यात्रा तय की है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि डॉ. भाभा की महान प्रतिज्ञा को “संकल्प से सिद्धि” के रूप में नवीनीकृत किया जाए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग की पुनर्गठित संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता की।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि परमाणु ऊर्जा और विकिरण के अनुप्रयोगों ने बिजली उत्पादन, कृषि, चिकित्सा, स्वास्थ्य, खाद्य संरक्षण, उन्नत बीज किस्मों, जल शोधन तकनीकी, शहरी अपशिष्ट प्रबंधन तकनीकी, रेडियो आइसोटोप के औद्योगिक अनुप्रयोग और विशेष रूप से पेट्रोलियम उद्योग में विकिरण तकनीकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि उन्होंने खेद व्यक्त किया कि परमाणु ऊर्जा के अधिकांश सामाजिक अनुप्रयोगों के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है।
डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि गामा विकिरण तकनीकी का उपयोग बल्बों व ट्यूबों में अंकुरण को रोकने, अनाज, दालों और अनाज में कीट संक्रमण को रोकने, सूखे मसालों के सूक्ष्मजीव परिशोधन (स्वच्छता) आदि के लिए किया जाता है। इसके अलावा पूर्व निर्धारित विकिरण खुराकों को लागू करके संरक्षण/शेल्फ जीवन विस्तार के लिए भी किया जाता है। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के दौरान परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) कोविड बीईईपी जैसे नए नवाचारों के साथ सामने आया, जो कोविड-19 रोगियों के लिए भारत की पहली स्वदेशी, कम लागत वाली वायरलेस शारीरिक मापदंडों की निगरानी प्रणाली है।
डॉ. सिंह ने कहा कि टाटा सेंटर मुंबई देश भर में कई कैंसर अस्पताल चला रहा है, वह परमाणु ऊर्जा विभाग के तत्वावधान में काम करता है। उन्होंने यह भी बताया कि टाटा ट्रस्ट की सहायता से परमाणु ऊर्जा विभाग और टाटा मेमोरियल सेंटर मिलकर बिहार, असम तथा उत्तराखंड में अतिरिक्त इकाइयां लगा रहे हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने समिति और राजभाषा विभाग के सदस्यों से पेशेवर अनुवादकों के माध्यम से हिंदी तथा स्थानीय भाषाओं में उचित अनुवाद के जरिए अंतरिक्ष और परमाणु तकनीकी की उपलब्धियों को आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया। उन्होंने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों तथा साहित्य के यथोचित अनुवाद पर भी जोर दिया।
डॉ. सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजभाषा विभाग, जो श्री अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय का एक हिस्सा है, वह बड़े बदलाव का काम कर रहा है। यह देखा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों में अधिकांश सरकारी काम हिन्दी में हो रहे हैं। उन्होंने रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा युवाओं में “विज्ञान के प्रति प्रेम” को विकसित करने के लिए “बड़े पैमाने पर” विज्ञान संचार को बढ़ावा देने को लेकर स्थानीय भाषाओं के उपयोग पर बल देते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाषा बाधा नहीं बल्कि सुविधा देने वाली होनी चाहिए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आम लोगों के लिए ‘जीवन की सुगमता’ लाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अंतरिक्ष तकनीकी को लागू किया जा रहा है।
इसरो के वैज्ञानिकों ने समिति की बैठक में कृषि, मृदा, जल संसाधन, भूमि उपयोग/भूमि सुरक्षा, ग्रामीण विकास, पृथ्वी और जलवायु अध्ययन, भूविज्ञान, शहरी और बुनियादी ढांचे, आपदा प्रबंधन सहायता, वानिकी और पारिस्थितिकी जैसे क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यापक अनुप्रयोग और निर्णय सहायता प्रणालियों को सक्षम करने के लिए एक उपकरण के रूप में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के बारे में जानकारी दी। डॉ. सिंह ने कहा कि हाल के दिनों में कृषि क्षेत्र में नई क्रांति लाने के लिए ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
सलाहकार समिति के सदस्यों ने डॉ. जितेंद्र सिंह को सूचित किया कि इस साल मई से भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के कुछ पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाए जाएंगे और चिकित्सा व पेशेवर वैज्ञानिक विशेषज्ञों के माध्यम से पूरे पाठ्यक्रम का अनुवाद करने का प्रयास किया जा रहा है।