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जानिए शव के पोस्टमार्टम को लेकर ये बड़ी सच्चाई

पोस्टमॉर्टम यानी यह एक तरह का ऑपरेशन जिसमें डेड बॉडी को एग्जामिन कर मौत की सही वजह का पता लगाया जाता है। पोस्टमॉर्टम ऐसे डॉक्टरों के द्वारा किया जाता है जिसे केमिकल साइंस की जानकारी ज्यादा हो। यह फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट के द्वारा की जाती है।

ये तो सभी लोग जानते होंगे कि किसी भी मृत व्यक्ति का पोस्टमॉर्टम करने से पहले उसके परिवारवालों की अनुमति लेना जरूरी होता है। लेकिन शायद ये बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि कितना भी जरूरी क्यों न हो, डॉक्टर्स कभी भी रात के समय पोस्टमॉर्टम करने की सलाह नहीं देते। क्या आपको इसके पीछे की वजह के बारे में पता है? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं।

डॉक्टर्स के अनुसार, किसी व्यक्ति के मरने के 6 से 8 घंटे के अंदर सही तरीके से पोस्टमॉर्टम किया जा सकता है। जबकि इसके बाद थोड़ा मुश्किल हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक समय हो जाने पर मृत व्यक्ति के शरीर से कई तरीके के नेचुरल चेंज होने लगते हैं। जिसकी वजह से जांच बांधित हो सकती है। इतना ही नहीं इसके चलते रिपोर्ट में भी चेंज आ सकते हैं। इसलिए सलाह दी जाती है कि जल्द से जल्द पोस्टमार्टम करा लिया जाए। हालांकि रात में पोस्टमॉर्टम न करने का सबसे बड़ा कारण आर्टीफिशियल लाइट का प्रभाव होता है।

दरअसल, रात के समय पोस्टमार्टम होने की वजह से LED या ट्यूबलाइट की रोशनी में शव के बॉडी के घाव लाल की जगह बैंगनी नजर आते हैं। लेकिन फॉरेंसिक साइंस ने कभी बैंगनी चोट का उल्लेख नहीं किया गया है। मगर जब वहीं इसकी जांच प्राकृतिक रोशनी में होती है तो चोट का रंग ट्यूबलाइट में पाए गए रंग से अलग दिखता है। इससे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में घाव लगने की वजह ही बदल सकती है और इन्वेस्टिगेशन में ये बड़ी परेशानी बन सकती है। इसकी एक और वजह यह भी है कि कई धर्मों में रात के समय अंत्येष्टि नहीं की जाती।