पर्यावरण कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जरूरत: उपराष्ट्रपति नायडू
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सीमित करने के लिए सक्षमकारी नीतियों के साथ-साथ लोगों से ‘सामूहिक कार्रवाई’ करने की अपील की।
उन्होंने कहा “1.5 डिग्री तक की सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग की सीमा प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए, हमें वृहद स्तरीय प्रणालीगत बदलावों के साथ-साथ सूक्ष्म स्तरीय जीवनशैली विकल्पों दोनों का लक्ष्य रखना चाहिए। हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता है।”
नायडू ने बढ़ती उग्र घटनाओं और घटती जैवविविधता की वास्तविकता को कम करने के लिए गंभीर आत्मनिरीक्षण और निर्भीक कदमों की अपील करते हुए कहा कि “यह न केवल सरकार का कर्तव्य है कि वह इस पर विचार-विमर्श करे, बल्कि यह पृथ्वी पर प्रत्येक नागरिक और मनुष्य का कर्तव्य है कि इस ग्रह को बचाएं।”
यह उल्लेख करते हुए कि कैसे भारतीय संस्कृति ने हमेशा प्रकृति का सम्मान किया है और उसकी पूजा की है, नायडू ने कहा कि भारत ने संविधान में पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों को प्रतिष्ठापित किया है और “विकसित दुनिया में पर्यावरण चर्चा को गति मिलने से पहले ही कई संबंधित कानूनों को पारित किया है।”
उन्होंने कहा, “यह भावना हमारे प्राचीन मूल्यों से बहुत अधिक जुड़ी है जो मानव अस्तित्व को प्राकृतिक पर्यावरण के हिस्से के रूप में देखते हैं, न कि इसका दोहन करने वाले के रूप में।”
वर्षों से पर्यावरणीय न्याय को बनाए रखने के लिए भारतीय उच्च न्यायपालिका की सराहना करते हुए, उन्होंने सुझाव दिया कि “निचली न्यायालयों को भी पारिस्थितिक दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए और स्थानीय आबादी और जैव विविधता के सर्वोत्तम हितों को अपने निर्णयों में शामिल करना चाहिए।” उन्होंने प्रदूषण कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और ‘प्रदूषक को भुगतान करना चाहिए’ सिद्धांत को सख्ती से लागू करने की अपील की।
इसके अतिरिक्त, उपराष्ट्रपति ने कानूनों के ईमानदार कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया, और सुझाव दिया कि “केवल कानून पारित करना पर्याप्त नहीं है, उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई समान रूप से महत्वपूर्ण है।” उन्होंने पर्यावरण कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और स्थानीय नागरिक निकायों को संसाधनों, तकनीकी विशेषज्ञता और दंडात्मक शक्तियों के साथ सशक्त बनाने का सुझाव दिया। यह देखते हुए कि संविधान जल प्रबंधन, मृदा संरक्षण और वानिकी के मामलों में ग्राम पंचायतों को अधिकार देता है, उन्होंने इस उद्देश्य के लिए बेहतर धन आवंटन का आह्वान किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि “आज की और भविष्य की जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए जमीनी स्तर के निकायों का प्रभावी कामकाज महत्वपूर्ण है।”
नायडू ने स्मरण किया कि पहले के समय में गांवों के लोग साथ-साथ लगे जंगलों की रक्षा और तालाबों और नहरों की मरम्मत के लिए एकजुट होकर काम करते थे। उन्होंने जोर देकर कहा “आज हमें जिस चीज की जरूरत है, वह है लोगों की मानसिकता में बदलाव। जब तक पर्यावरण संरक्षण एक जन आंदोलन नहीं बन जाता, हमारा भविष्य अंधकारमय है।”
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के योगदान को रेखांकित करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि पर्यावरणीय मुकदमेबाजी की बढ़ती मांग के साथ, पर्यावरण कानून में अधिक कानूनी विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है। इस संबंध में उपराष्ट्रपति ने गरीब वर्गों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और पर्यावरण न्याय को जरूरतमंदों के करीब लाने का आह्वान किया। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि आवश्यक हो तो देश के विभिन्न हिस्सों में अधिक विशिष्ट पर्यावरण पीठों का सृजन किया जाना चाहिए।
प्रकृति के दोहन की खतरनाक प्रवृत्ति को बदलने की आवश्यकता पर बल देते हुए, नायडू ने कानून बनाने वालों से स्थिति का संज्ञान लेने और ‘पारिस्थितिकी तथा अर्थव्यवस्था’ के बीच एक अच्छा संतुलन बनाए रखने वाले कानून बनाने की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने यह भी सुझाव दिया कि छोटी उम्र से ही, छात्रों को उनकी जीवन शैली विकल्पों के कार्बन और पारिस्थितिक निशान के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया “माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों को अपने प्राकृतिक पर्यावरण-वनस्पतियों और जीवों की देखभाल करना सिखाना चाहिए- जितना कि वे अपने वास्तविक पर्यावरण की देखभाल करते हैं।”
इस तरह के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के महत्व पर जोर देते हुए, नायडू ने कहा कि “हमें विश्व स्तर पर एक-दूसरे से सीखना होगा और विश्व भर की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को अपनाना होगा।” उन्होंने चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की पहल की सराहना की और आशा व्यक्त की कि यह सम्मेलन देश में पर्यावरण संरक्षण में एक नया अध्याय खोलेगा।