Gyanvapi Case: PFI का बड़ा आरोप, कोर्ट को नहीं करना चाहिए था याचिका मंजूर, BJP शासित राज्यों में मुसलमान हैं निशाने पर
ज्ञानवापी मामले में आरोप- प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। दरअसल कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन (Radical Islamic Organization) पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने ज्ञानवापी (Gyanvapi) सहित अन्य मस्जिदों को लेकर कोर्ट में लगाए गए याचिकाओं को गलत करार दिया है। संगठन का कहना है कि कोर्ट को इस तरह की याचिका मंजूर नहीं करनी चाहिए थी।
ज्ञानवापी-मथुरा मस्जिद के खिलाफ गलत है याचिका
बता दें कि PFI ने केरल के पुत्तनथानी में 23-24 मई को एक बैठक की थी। खबरों के मुताबीक इस बैठक में बड़ा फैसला लिया गया। संगठन का कहना था कि ज्ञानवापी-मथुरा मस्जिद (Mathura Masjid) के खिलाफ याचिका गलत है। अदालतों को ये याचिका मंजूर नहीं करनी चाहिए थी।
1. Hindu extremists attack Muslim neighborhoods, mosques and homes.
2. Muslims defend themselves and their property.
3. Police arrive but only to arrest and assault Muslims.https://t.co/viCnL0v5jL#IndianMuslimsUnderAttack
— CJ Werleman (@cjwerleman) May 26, 2022
BJP शासित राज्यों में निशाने पर हैं मुसलमान
दरअसल PFI ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की भूमिका पर भी सवाल उठाए। PFI ने कहा कि वजुखाने (Vazukhana) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध निराशाजनक है। 1991 एक्ट के तहत कोर्ट याचिका स्वीकार न करें। संगठन ने कहा कि योगी (yogi government), एमपी सरकार (MP Government) और असम पुलिस (Assam Police) अत्याचार कर रही है। पफी का मानना है कि BJP शासित राज्यों में मुसलमान निशाने पर है।
Kerala slogans were against RSS, not against other communities: Popular Front#PressRelease pic.twitter.com/6T2uMo2IKy
— Popular Front of India (@PFIOfficial) May 25, 2022
PFI पर दिल्ली हिंसा भड़काने का आरोप
गौरतलब है PFI पर दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) में लोगों को भड़काने और फंडिंग के आरोप लगे थे। इस पर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), असम में CAA और NRC प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप लग चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो केंद्र सरकार को बकायदा डोजियर देकर PFI को बैन करने की मांग भी की थी।
कौन है PFI
पीएफआई केरल से संचालित होने वाला एक कट्टर इस्लामिक संगठन है। PFI की हर एक्टिविटी पर खुफिया एजेंसियों की निगाह रहती है। यह संगठन बैन हो चुके आतंकी संगठन सिमी (SIMI) का फ्रंट ऑर्गनाइजेशन माना जाता है। जानकारी के अनुसार, PFI खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है।
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कैसे बनी PFI
पीएफआई की स्थापना 1993 में बने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट से निकलकर हुई है। 1992 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक संगठन बना था। PFI की स्थापना 2006 में हुई थी।
क्या काम करती है PFI
पीएफआई का दावा है कि वो मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए काम करती है। इनका कहना है कि ये मुसलमानों के हक और अधिकार की आवाज को बुलंद करती है।
मुस्लिम पूजा स्थलों के खिलाफ जारी चालों का करें प्रतिरोध : पॉपुलर फ्रंट#PressRelease pic.twitter.com/MWBsxEgVC8
— Popular Front of India (@PFIOfficial) May 26, 2022
PFI पर लगे हैं ये बड़े आरोप
2010 में पीएफआई पर आरोप लगा कि इसके सदस्यों ने एक मलयाली प्रोफेसर टी जे जोसेफ का दाहिना हाथ काट डाला था। क्योंकि प्रोफेसर ने पैगंबर पर सवाल उठाए थे। 2012 में केरल की सरकार ने हाईकोर्ट में एक एफिडेविट दी थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि पीएफआई के सदस्यों का सीपीआई(एम) और आरएसएस से जुड़े 27 राजनीतिक हत्याओं में हाथ था। सरकार ने कहा कि ज्यादातर हत्याएं सांप्रदायिक रंग देकर की गई थी। इसके अलावा भी इनकी 86 इसी तरह की हत्याएं करने की योजना थी। ये एफिडेविट कन्नूर में एक एबीवीपी से जुड़े छात्र सचिन गोपाल की हत्या के बाद दी गई थी।
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2016 में कर्नाटक के एक स्थानीय आरएसएस नेता रुद्रेश की दो मोटरसाइकिल सवार लोगों ने हत्या कर दी थी। बेंगलुरु के शिवाजीनगर में हुए इस हत्या में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया था। ये चारों पीएफआई से जुड़े हुए थे।
द पायनियर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में पीएफआई पर उत्तरी कन्नूर में एक ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप लगा। कन्नूर पुलिस ने कहा कि कैंप से उन्हें तलवार, बम, आदमी की तरह दिखने वाले लकड़ी के पुतले, देसी पिस्तौल और आईईडी ब्लास्ट में काम आने वाली चीजें मिलीं। कैंप से कुछ बैनर पोस्टर भी बरामद हुए, जो आतंकी गतिविधि में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने वाली थी।
2012 में इस ग्रुप का नाम असम के कोकराझार में आया। कहा गया कि पीएफआई के सदस्यों ने जानबूझकर इलाके में अफवाह फैलाकर दंगा फैलाया।