उत्तराखंड आपदा : खतरनाक झील बनने से दोबारा आ सकता है सैलाब
उत्तराखंड के चमोली ज़िले में तबाही (Uttarakhand tragedy) बरपाने वाली ऋषिगंगा नदी से चिंता बनी हुई है. ऋषिगंगा नदी का पानी 7 फरवरी से उस जगह पर रुका हुआ है जहां रौंठीगाड़ नदी से उसका संगम होता है. 7 फरवरी को क़रीब 5600 मीटर की ऊंचाई पर रौंठी पीक से जो हिमस्खलन और भूस्खलन हुआ, उसने रौंठीगाड़ नदी में इतनी गाद और चट्टानें भर दीं कि उसने आगे संगम पर ऋषिगंगा नदी का पानी रोक दिया. उपग्रह से मिली हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें भी साफ़ बता रही हैं कि ऋषिगंगा झील का ये पानी ख़तरनाक हो सकता है. ठीक इसी जगह से गढ़वाल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ रूरल टैक्नॉलोजी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और जियोलोजिस्ट डॉ नरेश राणा ने जो ग्राउंड ज़ीरो से जो एक्सक्लूसिव रिपोर्ट भेजी है वो बता रही है कि ऋषिगंगा नदी में पानी इतना बढ़ चुका है कि वो रौंठीगाड़ की गाद से बनी अस्थाई दीवार के ऊपर से बहकर रौंठीगाड़ में मिलने लगा है. ये पानी यहां से आगे धौलीगंगा में मिलता है जो आगे तपोवन पावर प्रोजेक्ट से होकर जाती है
क़रीब 2500 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी से बनी इस झील का पानी जल्दी से जल्दी कम करना ज़रूरी हो गया है. गढ़वाल यूनिवर्सिटी के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ वाईपी सुंद्रियाल ये जानकारी प्रशासन को समय रहते ही दे चुके हैं. NDTV India को मिली जानकारी के मुताबिक रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (DRDO) और NDRF इस झील के पानी को नियंत्रित तरीके से निकालने की रणनीति बनाने में जुटे हैं. NDRF के महानिदेशक एसएन प्रधान ने बताया कि ‘मामले का उच्चस्तर पर संज्ञान लिया गया है और झील से बने हालात की समीक्षा के लिए कुछ टीमें पहले ही वहां के लिए निकल चुकी हैं. आज सुबह ही हेलीकॉप्टरों ने इस झील के ऊपर उड़ान भरी और ड्रोन्स के ज़रिए भी एजेंसियां हालात का जायज़ा ले रही हैं. जायज़ा लेने के तुरंत बाद ज़रूरी कार्यवाही की जाएगी. NDRF इस काम में जुटी हुई है.’