Agnipath protest: बेरोज़गारी की समस्या कितनी बड़ी है?
अग्निपथ की आग में उत्तर भारत के राज्य झुलस रहे हैं. रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को इस योजना की घोषणा की थी, उससे कुछ घंटे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्विट करके बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले डेढ़ साल में केंद्र सरकार में ख़ाली दस लाख नौकरियों को भरने का आदेश दिया है. अग्निपथ से इस साल 46 हज़ार भर्तियाँ होनी है, फिर भी बाक़ी लगभग साढ़े नौ लाख नौकरियों की हेडलाइन कहीं दब गईं. रेलवे हो या सेना , पिछले साल भर में हमने बेरोज़गारों को सड़क पर उतरते देखा है
10 लाख नौकरियों से क्या होगा?
देश की आबादी क़रीब 140 करोड़ है.सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इकॉनामी (CMIE) के मुताबिक़ इसमें से लेबर फ़ोर्स 43 करोड़ है, जिनकी उम्र 15 साल से 64 साल के बीच में है. अब लेबर फ़ोर्स पार्टिसिपेशन रेट देखें तो वो क़रीब 42% है , ये वो लोग है जो कोई काम कर रहे हैं या काम खोज रहे हैं यानी जो काम करने लायक़ है उनमें से आधे से ज़्यादा लोग काम करने के बजाय घर बैठे है. भारत में ये रेट कम होने का कारण काम में महिलाओं की भागीदारी कम होना भी है पिछले पाँच साल में घर बैठने वाले लोगों की तादाद बढ़ी है. 2017 में ये रेट 47% था. ये रेट गिरने का एक कारण ये भी माना जाता है कि नौकरी नहीं मिलने से निराश होकर लोग घर बैठ जाते है. पिछले पाँच साल में संकट बढ़ने के कारण माने जाते है नोटबंदी, GST, और फिर महामारी. अब महंगाई के बाद मंदी का ख़तरा.
अब नौकरियों में सरकार की भूमिका पर बात कर लेते हैं. आम धारणा ये है कि सरकार का काम नौकरी देना है. यहीं हम गलती करते है. वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार रोज़गार का मार्जिनल सोर्स है. आँकड़े भी यही बात कहते हैं कहाँ तो लेबर फ़ोर्स 40 करोड़ से पार है और केंद्र सरकार की नौकरियाँ 40 लाख. इसमें भी लगभग 10 लाख वेकेंसी है . ये अगले डेढ़ साल में भर भी ली जाएँ तब भी बेरोज़गारी की समस्या का हल नहीं होगी.हर साल क़रीब सवा करोड़ नए लोग नौकरी के बाज़ार में आ जाते है ( 2018 Economic Survey) जबकि नौकरियाँ आती है है 40 से 45 लाख सालाना यानी जो नौजवान काम की तलाश में आते हैं उनमें से आधे से ज़्यादा ख़ाली हाथ हैं.
रोज़गार देने वाले तीन क्षेत्र है खेती, इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर. जैसे जैसे आर्थिक विकास होता है रोज़गार खेती से इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर की तरफ़ शिफ़्ट होता है. हमारे देश में दिक़्क़त ये रही है कि खेती से कूदकर हम सीधे सर्विस सेक्टर में पहुँच गए. हमारे GDP का आधे से ज़्यादा हिस्सा सर्विस सेक्टर से आता है . सर्विस सेक्टर मतलब जहां सामान नहीं बनता सिर्फ़ सेवा होती है जैसे बैंक, होटल , टूरिज़्म, अस्पताल, शिक्षा. चीन ने बड़ी आबादी को काम देने का ज़रिया खोजा है सामान बनाकर, फ़ैक्ट्री लगाकर . पूरी दुनिया को सामान सप्लाई करने का काम कर रहा है जिससे ज़्यादा लोगों को काम मिल रहा है जबकि हमने सर्विस का रास्ता चुना है . जैसे हम पूरी दुनिया को आईटी सेक्टर के ज़रिए सर्विस दे रहे हैं.इसमें सामान बनाने के मुक़ाबले कम लोगों की ज़रूरत होती है.
पिछले 20 सालों में इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने कोशिश की है, मेक इन इंडिया इसी कड़ी में ताज़ा कोशिश है जो बहुत कामयाब नहीं रही है. 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक़ इंडस्ट्री की हिस्सेदारी जीडीपी में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई थी. रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हाल में लिखा है कि भारत को अब इंडस्ट्री के बजाय सर्विस एक्सपोर्ट करने पर ज़ोर लगाना चाहिए.हमारे डॉक्टर,नर्स , टीचर, चार्टेड अकाउंटेंट, वकील दुनिया भर में काम कर सकते हैं. कोरोनावायरस के बाद दुनिया ये भी देख लिया कि आप कहीं से भी ये सेवाएँ दे सकते हैं.
सर्विस या इंडस्ट्री में से कौन सा रास्ता सही है ये कहना तो मुश्किल है, पर ज़रूरी है कि सरकार ऐसा माहौल बनाएँ जिससे प्रायवेट सेक्टर निवेश करें , जिससे नौकरियाँ आएँगी वरना दस लाख सरकारी नौकरियाँ ऊँट के मुँह में ज़ीरा ही साबित होंगी.