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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने जारी की जरूरी दवाओं की सूची, लिस्ट में जोड़ी गई 34 दवाएं

स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने मंगलवार को आवश्यक दवाओं की संशोधित राष्ट्रीय सूची जारी की. आवश्यक दवाओं की सूची में इवरमेक्टिन, मुपिरोसिन जैसी कुछ संक्रमण रोधी दवाओं और निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी समेत 34 दवाओं को शामिल किया गया है.

इससे अब इस लिस्ट में कुल दवाओं की संख्या 384 हो गई है. इसके साथ-साथ सरकार ने 26 दवाओं को ‘आवश्यक’ सूची से हटा भी दिया है. कई एंटीबायोटिक्स, टीके और कैंसर रोधी दवाएं सूची में शामिल होने से और अधिक सस्ती हो जाएंगी.

इस सूची में 384 दवाओं के अलावा 34 नई दवाओं को शामिल किया गया है, जबकि पिछली सूची से 26 दवाओं को हटा दिया गया है। दवाओं को 27 चिकित्सीय श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

इस अवसर पर, केन्‍द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि “आवश्यक दवाएं” वे हैं जो उपचार की प्रभावशीलता, सुरक्षा, गुणवत्ता और कुल लागत के आधार पर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। एनएलईएम का प्राथमिक उद्देश्य तीन महत्वपूर्ण पहलुओं अर्थात लागत, सुरक्षा और प्रभावकारिता पर विचार करते हुए दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देना है। यह स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों और बजट के अधिकतम उपयोग; दवा खरीद संबंधी नीतियों, स्वास्थ्य बीमा; निर्धारित आदतों में सुधार; यूजी/पीजी के लिए चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण; और फार्मास्‍यूटिकल नीतियां तैयार करने में मदद करता है। एनएलईएम में, दवाओं को स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के स्तर के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जैसे- पी- प्राथमिक; एस- द्वितीयक और टी- तृतीयक।

उन्होंने विस्तार से बताया कि यह संकल्‍पना इस प्रतिज्ञा पर आधारित है कि सावधानीपूर्वक चुनी गई दवाओं की एक सीमित सूची स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करेगी, सस्‍ती दवाएं प्रदान करेगी और दवाओं का बेहतर प्रबंधन करेगी। उन्‍होंने कहा कि एनएलईएम एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और बदलती सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के साथ-साथ फार्मास्युटिकल ज्ञान में प्रगति को ध्‍यान में रखते हुए इसे नियमित आधार पर संशोधित किया जाता है। आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची पहली बार 1996 में तैयार की गई थी और इसे पहले 2003, 2011 और 2015 में तीन बार संशोधित किया जा चुका है।

“चिकित्सा पर स्वतंत्र स्थायी राष्ट्रीय समिति (एसएनसीएम) का गठन केन्‍द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2018 में किया था। समिति ने विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद एनएलईएम, 2015 को संशोधित किया और एनएलईएम, 2022 पर अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को प्रस्तुत की। उन्‍होंने कहा कि भारत सरकार ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है और सूची को स्वीकार कर लिया है।” उन्होंने इस बात पर भी गौर किया कि एनएलईएम के गठन की प्रक्रिया हितधारकों के वैज्ञानिक स्रोतों द्वारा समर्थित जानकारी और अपनाए गए समावेशी/निवारण सिद्धांत पर निर्भर करती है।

संशोधित एनएलईएम के लिए हितधारकों को बधाई देते हुए, जो अपने नागरिकों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की दिशा में देश को आगे ले जा रहा है, केन्‍द्रीय राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने सूक्ष्‍मजीवीरोधी प्रतिरोधकता (एएमआर) के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया, जो “हमारे वैज्ञानिकों और समुदाय के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है और हमें एएमआर के बारे में समाज में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है”।

एनएलईएम 2022 का संशोधन शिक्षाविदों, उद्योगपतियों और सार्वजनिक नीति विशेषज्ञों आदि से जुड़े हितधारकों व डब्ल्यूएचओ ईएमएल 2021 जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ निरंतर परामर्श के बाद किया गया है।

एनएलईएम में शामिल करने के लिए निम्नलिखित मानदंडों का पालन किया जाता है:

1. रोगों में उपयोगी हो जो भारत में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।

2. लाइसेंसयुक्‍त/अनुमोदित औषधि महानियंत्रक (भारत) (डीसीजीआई) हो।

3. वैज्ञानिक साक्ष्‍यों के आधार पर प्रमाणित प्रभावकारिता और सुरक्षा हो।

4. तुलनात्मक रूप से सस्ती हो।

5. वर्तमान उपचार दिशानिर्देशों के अनुरूप हो।

6. भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के तहत अनुशंसित (जैसे आइवरमेक्टिन लिम्फैटिक फाइलेरिया 2018 के उन्मूलन के लिए त्वरित योजना का हिस्सा)।

7. जब एक चिकित्सा संबंधी वर्ग की एक से अधिक दवाएं उपलब्ध हों, तो उस वर्ग की एक प्रोटोटाइप/चिकित्सकीय रूप से सबसे उपयुक्त दवा शामिल की जानी चाहिए।

8. कुल उपचार के मूल्‍य पर विचार किया जाता है न कि किसी दवा की इकाई कीमत पर।

9. निश्चित खुराक संयोजन आमतौर पर शामिल नहीं होते हैं।

10. जब कभी टीके को सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (जैसे रोटावायरस वैक्सीन) में शामिल किया जाता है।