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उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उद्योगों से अंदरूनी क्षेत्रों में उद्यमशील उपक्रम लगाने का आह्वान किया

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जीवंत सूक्ष्‍म, लघु और मध्‍यम उद्यम (एमएसएमई) के माध्यम से देश के भीतरी इलाकों में जड़ें जमा रही उद्यमी संस्कृति का पूरी तरह से लाभ उठाने का व्यापार और उद्योग निकायों से आह्वान किया है। उन्होंने इन नए उद्यमियों को सहारा देने और उन्हें अपनी क्षमता को विकसित करने में सहायता प्रदान करने का भी आह्वान किया है।

नई दिल्ली में पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के 117वें वार्षिक सत्र को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने उन्‍नतिशील भारतीय स्टार्टअप क्षेत्र की सराहना करते हुए कहा कि 75,000 से अधिक की संख्या के साथ भारतीय व्यापार परिदृश्य में अब कई गेम चेंजर स्टार्टअप हैं।

गौरतलब है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था में एक युगांतरकारी परिवर्तन का साक्षी बन रहा है। श्री धनखड़ ने पर्याप्त कौशल उन्नयन द्वारा भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जब हम सभी की पूरी क्षमता और प्रतिभा को सामने लाने में मदद करते हैं तो यह सामाजिक हितों की सबसे बेहतर सेवा होती है।

सत्र के विषय “इंडिया@75: सेलिब्रेटिंग इंडियाज परसूट फॉर सेल्फ रिलायंस” का उल्लेख करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत एक तरह से हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सदी पहले स्वदेशी आंदोलन का प्रतिबिंब है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए भारत की खोज आत्म-केंद्रित होने की नहीं है, अपितु यह विश्व समावेशी है और कोविड महामारी के दौरान 100 से अधिक देशों को चिकित्सा आपूर्ति इसका मात्र एक उदाहरण है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह सरकार के साथ-साथ उद्योगों का भी दायित्व है कि वह मानव संसाधनों विशेष रूप से युवा जनसांख्यिकी का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि ‘न्यू इंडिया’ का मंत्र “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास” केवल सरकार तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके लिए व्यापक प्रयासों का आह्वान किया गया है।

हाल ही में विश्‍व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत इस दशक के अंत तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह भारतीय उद्योग, हमारे मेहनती किसानों, हमारे श्रमजीवी श्रमिकों, कारीगरों और हमारे प्रर्वतक वैज्ञानिक के लिए एक गौरव का विषय है।