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वैज्ञानिक ने देसी गाय के गोबर से बनाया सीमेंट, ईंट और पेंट, 50 से 60 लाख सलाना कमा रहे

शहर के प्रदूषण को देख आजकल हर कोई गांव की सौंधी मिट्टी को अपना चाहता है। समझदार व्यक्ति जनता है कि गांव की मिट्टी किसी अमृत से कम नही है। शहर में कितने भी AC कूलर लगवालो, लेकिन जो आनंद गांव की मिट्टी से बने घर में है, वो ठंडक इन शहरी चीजो में नही है।

आज हर कोई इको फ्रेंडली और सस्टेनेबल घर बनाना चाहता है। एक ऐसा घर, जो हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के अनुकूल तो हो ही, पर भी किफ़ायती हो। दूसरे शब्दों में कहें, तो घर ऐसा हो जो दुनिया के किसी भी छोर में हो पर गांव (Village) के किसी घर जैसा एहसास देता हो। वही मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुश्बू और वही ठंडी-ताज़ी हवा।

पैसा बनाने के बहुत से तरीके हैं, लेकिन यदि पैसा कमाते हुए कोई पर्यावरण को भी बचाने की कोशिश कर रहे है, तो ये बहुत अच्छी बात है। सब जानते हैं कि घर बनाने के लिए सीमेंट, ईंट और पेंट जैसी चीजों की जरूरत पड़ती है। भले ही घर बनाने के लिए इन सामानों का प्रयोग करना हमारी मजबूरी बन गई हो, लेकिन कहीं ना कहीं प्रकृति को इनके उत्पादन से हानि भी पहुंचती है।

सोचिए कि अगर हमारे घर इन आम ईंटों सीमेंट या पेंट से ना बन कर गोबर से तैयार हुए ईंट, सीमेंट से बनें तो क्या आपको लगता है कि ऐसा सम्भव हो सकता, इस बात गौर कीजिए जो आनंद हम गांव में ले सकते है वो शहरों के घरों में नही ले सकते क्या, शहरों में शायद जगह और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण, ऐसा घर बनाना थोड़ा कठिन हो, लेकिन गांव में आज भी काफी लोग सीमेंट के नहीं, बल्कि मिट्टी के घर में रहते हैं।

इन घरों की पुताई गाय के गोबर से की जाती है, ताकि घर में ठंडक बनी रहे और हानिकारक कीटाणु और जीवाणु भी न रहें। गांव की इस सालों पुरानी तकनीक से प्रेरणा लेकर, रोहतक हरियाणा के 53 वर्षीय डॉ शिव दर्शन मलिक ने गाय के गोबर का इस्तेमाल कर, इको फ्रेंडली वैदिक प्लास्टर का अविष्कार किया है। डॉ शिवदर्शन मलिक ने रसायन विज्ञान में पीएचडी कर रखी है।

डॉ मलिक ने गांव में देखा कि गोबर गैस प्लांट स्थापित होने के बाद भी बड़ी मात्रा में गोबर या तो व्यर्थ पड़ा रहता है या सिर्फ उपले बनाने के काम आता है। वैदिक प्लास्टर के आविष्कार के लिए, डॉ मलिक को 2019 में राष्ट्रपति की ओर से ‘हरियाणा कृषि रत्न’ पुरस्कार भी मिला है।

हरियाणा के रोहतक जिला के मदीना गांव से ताल्लुक रखने वाले डॉ शिवदर्शन मलिक पिछले 6 सालों से गोबर से इको फ्रेंडली सीमेंट, पेंट और ईटें बनाकर दर्जनों लोगों को प्रशिक्षित कर चुके हैं। गांव ही नहीं बल्कि शहरी लोग भी शिव दर्शन की इस अविष्कार का उपयोग करते हुए इको फ्रेंडली घरों का बनवा रहे है। वो भी शहरों में रहकर देसी गांव की मिट्टी का अनुभव लेना चाहते है। शिव दर्शन 100 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षण दे चुके हैं।

डॉ मलिक अपना गोबर पेंट का फार्मूला को किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहते लेकिन वह गोबर में कुछ कुदरती रंग मिलाकर पेंट तैयार करते हैं। डॉ मलिक के मुताबिक गोबर के सीमेंट और ईंट से तैयार किए गए घर कुदरती तौर पर वातानुकूलित होते हैं और इनमें बिजली का बहुत कम उपयोग होता है।

इन घरों में इतनी ठडक उतपन्न हो जाती है कि कूलर AC की जरूरत ही नही पड़ती। इससे बिजली की खर्च भी कम आता है। डॉ मलिक अब तक उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड आदि राज्यों के 100 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित कर चुके हैं। ये प्रशिक्षित लोग अब देश के कई हिस्सों में गोबर से ईटें और सीमेंट बनाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।