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वामपंथियों का अकेला किला केरल भी ढह जाएगा? भाजपा की बढ़ती ताकत मिटा देगी वामपंथ का अस्तित्व

केरल चुनाव कई मायनों में अहम् है। यहीं चुनाव हमें बताएगा कि क्या वामपंथी राजनीति इस देश में कायम रहेगी या फिर उसका अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। वामपंथी राजनीति वैसे भी अंत के कगार पर है। पहले लम्बे समय तक वामपंथ का किला रहे बंगाल को ममता के हाथों गंवाना पड़ा और उसके बाद त्रिपुरा की सत्ता भाजपा के हाथों में आ गई। ऐसे में वामपंथी अपने अस्तित्व को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे।

भाजपा की बढ़ती ताकत

केरल में भाजपा लगातार अपनी ताकत बढाती जा रही है। प्रदेश में हिंदुत्व की राजनीति को बल मिला है। उसके बाद ‘मेट्रो मैन’ ई श्रीधरन के शामिल होने से भाजपा बहुत मजबूत हुई है। उसके बाद लगातार भाजपा धर्म परिवर्तन को मुद्दा बना रही है।

वामपंथियों का क्या होगा

नई सदी भारत की राजनीति में वामदलों के लिए बड़ी मुसीबत बन कर आई है। शुरुआत में वाम राजनीति का सबसे मजबूत किला पश्चिम बंगाल ढह गया। बाद में त्रिपुरा में भाजपा के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। केरल के रूप में अब उसके पास इकलौता राज्य बचा है। जाहिरा तौर पर अगर केरल में भी नाकामयाबी हाथ लगी तो वामदलों की देश की राजनीति में प्रासंगिकता खत्म होने पर मुहर लग जाएगी।

कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति

देश की राजनीति में वामदलों की तरह सिकुड़ती जा रही कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव करो या मरो की स्थिति वाला है। राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी का दखल कम होता जा रहा है तो राज्यों में जीती हुई सत्ता पार्टी संभाल नहीं पा रही। शीर्ष स्तर पर गुटबाजी से परेशान पार्टी की सारी उम्मीदें बस राज्य के बदलाव की परंपरा पर हैं।

पिछले चुनाव में ये रहे थे आंकड़े

विधासभा चुनाव के आंकड़े 2016 

गठबंघन              सीट    मत प्रतिशत
एलडीएफ              91      43.48
यूपीएफ                47      38.81
राजग                   01      14.96

विधानसभा चुनाव के आंकड़े 2011

एलडीएफ               68         42
यूडीएफ                  72         46
राजग                    00          07