भारत वर्ष 2030 तक इस्पात के 300 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है – केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया
केंद्रीय इस्पात और नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि वर्तमान समय में भारत विश्व भर में में जिंक का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत में उत्पादित जिंक की 80 प्रतिशत खपत घरेलू स्तर पर होती है। सिंधिया आज चौथे ग्लोबल जिंक समिट-2023 को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय रेलवे और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) क्षय मुक्त इस्पात उत्पादन के लिए मिलकर कार्य कर रहे हैं। सिंधिया ने बताया कि इस्पात उत्पादों में ऑक्सीकरण को रोकने के उद्देश्य से जंग-रोधी विशेषताओं एवं गुणवत्ता के साथ ही जिंक के अंदर नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रामीण विद्युतीकरण तथा स्मार्ट शहरों में इस्पात संरचनाओं को गैल्वनाइजिंग (जिंक चढ़ाने) करने आदि जैसे क्षेत्रों के लिए जबरदस्त विपणन क्षमता है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गैल्वेनाइज्ड स्टील हमारी लंबी तटीय रेखा में बने बुनियादी ढांचे को दीर्घाकालिक जीवन देगा।
केंद्रीय इस्पात और नागर विमानन मंत्री सिंधिया ने अपने संबोधन में भारत के इस्पात क्षेत्र द्वारा की गई महत्वपूर्ण प्रगति की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि उत्पादन को 150 मिलियन टन प्रति वर्ष की वर्तमान क्षमता से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 300 मिलियन टन प्रति वर्ष तक दोगुना करने के लिए बड़े पैमाने पर वृद्धि की जाएगी। सिंधिया ने कहा कि भारत पहले ही दुनिया में दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक के रूप में उभरा है और पिछले नौ वर्षों के दौरान हमारी प्रति व्यक्ति इस्पात खपत 57 किलोग्राम से बढ़कर 78 किलोग्राम हो गई है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमने विशेषतापूर्ण इस्पात के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) के तहत करीब 26 कंपनियों से जमा किए गए 54 आवेदनों को स्वीकार कर लिया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जुलाई 2021 में भारत में विशेष इस्पात के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 6,322 करोड़ रुपये की पीएलआई योजना को स्वीकृति दी थी। पीएलआई के माध्यम से प्रति वर्ष 26 मिलियन टन की उत्पादन क्षमता और 55,000 लोगों के लिए रोजगार सृजन के साथ 30,000 करोड़ रुपये के निवेश में मदद मिलेगी। सिंधिया ने कहा कि सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के बड़े पूंजीगत व्यय की घोषणा की है, जिसने सभी क्षेत्रों में निवेश के जबरदस्त अवसर खोले हैं।
इस्पात मंत्री ने 2030 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण के साथ सह-अस्तित्व समझना होगा, हमें पर्यावरण का सम्मान करना सीखना होगा, अब लेने, बनाने और निपटाने का एक रैखिक मॉडल नहीं हो सकता है। पुनर्चक्रण को हमारे अस्तित्व का हिस्सा बनना ही होगा।
कार्यक्रम में सांसद राजू बिस्ता, एचजेडएल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण मिश्रा, आईजेडए से ईडी डॉ. एंड्रयू ग्रीन और यूरोप, अमेरिका तथा एशिया के प्रतिनिधि उपस्थित थे।