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केंद्रीय विद्युत और एनआरई मंत्री “बायोमास 3पी – पैलेट टू पावर टू प्रॉस्पेरिटी” पर राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे

विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार कल नई दिल्ली में “बायोमास 3पी – पैलेट टू पावर टू प्रॉस्पेरिटी” पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रही है। इस सम्मेलन की मेजबानी राष्ट्रीय विद्युत प्रशिक्षण संस्थान के सहयोग से ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर नेशनल मिशन (समर्थ) द्वारा किया जा रहा है। केंद्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे, जिसमें सरकार, मंत्रालयों, नियामक निकायों, वित्तीय संस्थानों, पैलेट निर्माताओं, उद्यमियों, ओईएम, किसान संगठनों आदि की भागीदारी होगी।

सम्मेलन का उद्देश्य भारत में ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास पैलेट्स के सह-फायरिंग को बढ़ावा देने के लिए एक सक्षम वातावरण का निर्माण करना और उसे बढ़ावा देना है और साथ ही क्षेत्र में सभी हितधारकों को अपने ज्ञान और अनुभव को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना है।

विद्युत मंत्रालय ने कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर नेशनल मिशन (समर्थ) का गठन किया है, जो अतिरिक्त बायोमास के निपटान में आने वाली कई समस्याओं के लिए वन-स्टॉप समाधान है। बायोमास को पैलेट्स में बदलने और ताप विद्युत संयंत्रों में उनका सह-फायरिंग, पर्यावरण को पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों से बचाएगा और यह बिजली उत्पादन में कोयले पर देश की निर्भरता को कम करने, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) में योगदान देने और किसानों और छोटे उद्यमियों की आय में बढ़ोत्तरी करने का भी काम करेगा।

पिछले सप्ताह, केंद्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में एनटीपीसी दादरी कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र में एनटीपीसी-नेत्रा द्वारा किए गए प्रयोगों के बारे में जानकारी दी, जिससे ताप विद्युत संयंत्रों (टीपीपी) पर सह-फायरिंग बायोमास के प्रभावों का पता लगाया जा सके। अध्ययनों के माध्यम से, यह अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि 5% से 10% बायोमास को बिजली संयंत्र पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के बिना टीपीपी में कोयले के साथ सुरक्षित रूप से सह-फायरिंग किया जा सकता है। इससे कोयले पर टीपीपी की निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी और कुछ हद तक पराली जलाने के कारण होने वाले वायु प्रदूषण में कमी लायी जा सकेगी।

मंत्री ने आगे कहा कि अब तक लगभग 97,000 मीट्रिक टन (एमटी) कृषि-अवशेष आधारित बायोमास कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में सह-फायरिंग किया गया है, जिससे 1.2 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है।

खेत की पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण के ज्वलंत मुद्दे का समाधान करने, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में और थर्मल पावर उत्पादन के कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने के लिए, विद्युत मंत्रालय ने 12 जुलाई, 2021 को ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर नेशनल मिशन (समर्थ) की शुरुआत की और 8 अक्टूबर, 2021 को संशोधित बायोमास नीति जारी की, जिसमें देश के सभी टीपीपी को कोयले के साथ सह-फायरिंग में 5% बायोमास पैलेट का उपयोग करना अनिवार्य किया गया। इसके लिए सरकार ने निम्नलिखित कदम भी उठाए हैं

(i). बायोमास पैलेट्स की खरीद के लिए जीईएम पोर्टल पर एक विशिष्ट खिड़की उपलब्ध कराई गई है।

बायोमास को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ऋण के प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र अंतर्गत अधिसूचित किया गया है। इससे पैलेट निर्माताओं को बैंक ऋण प्राप्त करने में आसानी होगी और तेजी से उपलब्ध होगी। भारतीय स्टेट बैंक ने पैलेट निर्माताओं को दीर्घकालिक ऋण प्रदान करने के लिए एक समर्पित योजना शुरू की है।
नए उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा निम्नलिखित वित्तीय सब्सिडी योजनाएं शुरू की गई हैं

एमएनआरई योजना “बायोमास कार्यक्रम” बायोमास पैलेट संयंत्र स्थापित करने के लिए सहायता प्रदान करता है।

सीपीसीबी दिशानिर्देश “एनसीआर में पैलेट संयंत्र स्थापित करने के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता योजना”

बायोमास पेलेट विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली परिकल्पित योजनाएं निम्न प्रकार हैं (क) एमएनआरई जैव ऊर्जा योजनाएं, जिसमें पैलेट विनिर्माण संयंत्रों को केंद्रीय वित्तीय सहायता के रूप में 09 लाख रुपये प्रति एमटीपीएच (मीट्रिक टन प्रति घंटा) 45 लाख रुपये प्रति संयंत्र प्रदान किए जाएंगे। (ख) पर्यावरण संरक्षण प्रभार (ईपीसी) निधियों के अंतर्गत सीपीसीबी वित्तीय सहायता, गैर-टोरिफाइड संयंत्र के लिए 70 लाख रुपये की अधिकतम सीमा के अधीन प्रति घंटे 14 लाख रुपये प्रति टन उत्पादन क्षमता की एकमुश्त सहायता से स्थापित और टोरेफिड संयंत्र के लिए 1.40 करोड़ रुपये की अधिकतम सीमा के अधीन प्रति घंटे 28 लाख रुपये प्रति टन उत्पादन क्षमता की एकमुश्त सहायता से स्थापित। दिशा-निर्देशों के माध्यम से उपयोग करने के लिए 50 करोड़ रुपये का कोष निर्धारित किया गया है।