प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संस्कृति मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के सहयोग से आयोजित पहले वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली में होटल अशोक में वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने वहां आयोजित फोटो प्रदर्शनी का अवलोकन किया और भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए। उन्होंने उन्नीस विशिष्ट बौद्ध भिक्षुओं को भिक्षु वस्त्र (चीवर दान) भी भेंट किये। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू, केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और मीनाक्षी लेखी तथा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव डॉ. धम्मापिया भी उपस्थित थे।
संस्कृति मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के सहयोग से 20 और 21 अप्रैल को इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन की मेजबानी की जा रही है। वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का विषय “समकालीन चुनौतियों पर प्रतिक्रियाएं: अभ्यास के लिए दर्शन'” है। यह बौद्ध और सार्वभौमिक चिंताओं के मामलों में वैश्विक बौद्ध धम्म नेतृत्व तथा विद्वानों को शामिल करने और उनके द्वारा सामूहिक रूप से समस्याओं के हल प्राप्त करने के लिए नीतिगत सहयोग के साथ आने का एक प्रयास है। शिखर सम्मेलन में चर्चा से यह उभर कर सामने आया कि किस तरह से बुद्ध धम्म के मौलिक मूल्य समकालीन परिस्थितियों में प्रेरणा तथा मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि बुद्ध व्यक्तित्व से परे हैं, वे एक धारणा हैं और बुद्ध एक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति से इतर है, वे एक विचार हैं जो स्वरूप से अलग है और बुद्ध किसी अभिव्यक्ति से परे एक चेतना हैं। मोदी ने कहा कि बुद्ध की चेतना अनन्त है। इस अवसर के महत्व का जिक्र करते हुए उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का आयोजन सभी देशों के प्रयासों के लिए एक प्रभावी मंच तैयार करेगा। प्रधानमंत्री ने इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ को धन्यवाद दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को मानवता के संदर्भ के लिए भारत में एक अंतर्निहित सहानुभूति लाने का श्रेय दिया। उन्होंने तुर्किये में भूकंप जैसी आपदाओं के लिए बचाव कार्य में शांति मिशन और भारत के पूरे हृदय से किए गए प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, कि 140 करोड़ भारतीयों की इस भावना को दुनिया देख रही है, समझ रही है और इसे स्वीकार कर रही है। मोदी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ जैसे मंच एक समान विचारधारा वाले और हृदय की समान भावनाओं वाले देशों द्वारा बुद्ध धम्म तथा शांति का प्रसार करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं।
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उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने इस अवसर को सभी के लिए गर्व का विषय बताया। उन्होंने कहा कि यह हम सभी के लिए गौरव की बात है कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस दो दिवसीय वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का विषय ‘समकालीन चुनौतियों पर प्रतिक्रियाएं: अभ्यास के लिए दर्शन’ है। इस वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन में दुनिया के 30 से अधिक देशों के लगभग 170 अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। दो दिवसीय वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन में शांति, पर्यावरण, नैतिकता, स्वास्थ्य, सतत विकास और बौद्ध परिसंघ जैसे विषयों पर चर्चा होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन मोदी सरकार की एक पहल है और यह दुनिया के साथ हमारे सांस्कृतिक एवं राजनयिक संबंधों को सशक्त करने में सहायता करेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के विचारों के अनुसार विश्व की प्रमुख चुनौतियों का समाधान बौद्ध जीवन दर्शन से हो सकता है और मुझे लगता है कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन इस दिशा में एक सफल प्रयास सिद्ध होगा।
इस अवसर पर, केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा कि दुनिया भर से महासंघों और सर्वोच्च आचार्यों, संघ नायकों, ध्यान गुरुओं, विभिन्न बौद्ध संघों, मठ के निकायों तथा विद्वान बौद्ध भिक्षुओं के सहयोग ने हमें इस सफलता के शिखर तक पहुंचाया है। यह एक ऐतिहासिक दिन है जब हम सभी इस शुभ अवसर को होते हुए देख रहे हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का विषय है – ‘समकालीन चुनौतियों पर प्रतिक्रियाएं: अभ्यास के लिए दर्शन’। उन्होंने कहा कि इस शिखर सम्मेलन को दो अलग-अलग समानांतर सत्रों में विभाजित किया गया है – बुद्ध धम्म एवं शांति, पर्यावरण संकट, स्वास्थ्य व स्थिरता, नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण, बुद्ध धम्म तीर्थयात्रा, जीवित विरासत और बुद्ध अवशेष आदि जैसे कई विविध उप-विषयों के साथ एक संघ सत्र तथा एक शैक्षणिक सत्र। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के सभी सदस्यों को इसे सफल बनाने के लिए शुभकामनाएं भी दी।
किरेन रीजीजू ने यह भी कहा कि बुद्ध धम्म केवल परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास ही नहीं है, यह जीवन को जीने का एक तरीका है, जो सभी प्राणियों के प्रति करुणा पर बल देता है। उन्होंने कहा कि नश्वरता तथा परस्पर आपसी निर्भरता की शिक्षा हमें याद दिलाती है कि दुनिया में सब कुछ बदल रहा है और सब कुछ परस्पर जुड़ा हुआ है, इसी प्रसंग के साथ हमें जीना सीखना चाहिए। हमें जीवन में ऐसे तरीके अपनाने चाहिए जो पृथ्वी और उसके संसाधनों के लिए टिकाऊ एवं सम्मानपूर्ण हो।
इस अवसर पर पांच प्रदर्शनियों के उत्सवों पर आधारित एक विशेष प्रदर्शनी अर्थात पंच प्रदर्शन, दो दिवसीय वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन के भाग के रूप में आयोजित किया गया था, जिसका विषय था “समकालीन चुनौतियों पर प्रतिक्रियाएं: अभ्यास के लिए दर्शन”।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ की 10 साल की यात्रा गुजरात के वडनगर शहर की विरासत में प्रकट होने वाली बुद्ध की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, बौद्ध तीर्थयात्री जुआनज़ैंग के यात्रा वृत्तांत, बौद्ध धार्मिक प्रमुख और गुरु अतीसा दीपांकर श्रीजाना के कार्य तथा अजंता पेंटिंग के डिजिटल परावर्तन को दर्शाते हैं। पद्मपाणि (अजंता एलोरा) की गुफा पेंटिंग की डिजिटल पुन:स्थापना के उदाहरण के माध्यम से सांस्कृतिक कलाकृतियों की डिजिटल रूप से पूर्वावस्था की प्रप्ति में शामिल प्रक्रिया को प्रदर्शित किया गया है।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा भगवन बुद्ध की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने के साथ हुई, इस दौरान मंगलाचरण का पाठ किया जा रहा था। डॉ. सुभद्रा देसाई ने रतन सुत्त का शास्त्रीय प्रस्तुतीकरण दिया।
शिखर सम्मेलन में दुनिया भर के प्रतिष्ठित विद्वानों, संघ के नेताओं और धर्म गुरुओं द्वारा भाग लिया जा रहा है, जो वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे और सार्वभौमिक मूल्यों के आधार पर बुद्ध धम्म में इनके उत्तर तलाशेंगे। चर्चा चार विषयों के तहत आयोजित की गई: बुद्ध धम्म और शांति, बुद्ध धम्म: पर्यावरणीय संकट, स्वास्थ्य व स्थायित्व, नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण, बुद्ध धम्म तीर्थयात्रा, सजीव विरासत एवं बुद्ध अवशेष: दक्षिण, दक्षिण-पूर्व तथा पूर्वी एशिया के देशों के लिए भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों की एक लोचदार नींव।