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स्टील स्लैग रोड तकनीक प्रधानमंत्री के ‘वेस्ट टू वेल्थ’ मिशन को पूरा कर रही है:  फग्गन सिंह कुलस्ते

गुजरात के सूरत में स्टील स्लैग रोड विनिर्माण तकनीक से बनी पहली सड़क, इसको तैयार करने में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक गिट्टी और रोड़ी का उपयोग नहीं किया गया

इस्पात मंत्रालय इस प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य कर रहा है: केंद्रीय मंत्री

केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा है कि सीएसआईआर-सीआरआरआई की स्टील स्लैग रोड तकनीक प्रधानमंत्री के ‘वेस्ट टू वेल्थ’ मिशन को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। श्री फग्गन सिंह कुलस्ते आज वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)- केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) के ‘वन वीक वन लैब’ कार्यक्रम के तहत आयोजित एक औद्योगिक बैठक को संबोधित कर रहे थे।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक राष्ट्र है और देश में ठोस अपशिष्ट के रूप में लगभग 19 मिलियन टन इस्पात धातुमल उत्पन्न होता है, जो वर्ष 2030 तक बढ़कर 60 मिलियन टन हो जायेगा। (एक टन स्टील उत्पादन में लगभग 200 किलोग्राम इस्पात धातुमल उत्पन्न होता है)

श्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने बताया कि इस्पात अपशिष्ट के कुशल निपटान तरीकों की अनुपलब्धता के कारण ही इस्पात संयंत्र के आसपास इस्पात धातुमल के विशाल ढेर लग गए हैं। उन्होंने कहा कि यही अपशिष्ट जल, वायु और भूमि प्रदूषण का एक प्रमुख कारक बन गए हैं। गुजरात के सूरत में स्टील स्लैग रोड तकनीक से बनी पहली सड़क राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अपनी तकनीकी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हो गई है। आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील के हजीरा इस्पात संयंत्र से सीआरआरआई के तकनीकी मार्गदर्शन में इस सड़क के निर्माण के दौरान लगभग एक लाख टन स्टील स्लैग अपशिष्ट का उपयोग किया गया है। इसको तैयार करने में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक गिट्टी और रोड़ी का उपयोग नहीं किया गया है।

सीमा सड़क संगठन ने भारत-चीन सीमा पर सीआरआरआई और टाटा स्टील के साथ मिलकर अरुणाचल प्रदेश में स्टील स्लैग रोड का निर्माण किया है, जो भारत पारंपरिक सड़कों की तुलना में काफी लंबे समय तक टिकी रहती हैं। इसी प्रकार से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने भी सीआरआरआई द्वारा दिये गए तकनीकी मार्गदर्शन में जेएसडब्ल्यू स्टील के सहयोग से राष्ट्रीय राजमार्ग -66 (मुंबई-गोवा) पर सड़क निर्माण में इस तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है।

केंद्रीय मंत्री ने इस तथ्य का उल्लेख भी किया कि इस्पात मंत्रालय पूरे देश में इस्पात धातुमल सड़क निर्माण तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।

श्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने इस तकनीक के विकास के लिए सीआरआरआई के निदेशक डॉ. मनोरंजन परिदा तथा स्टील स्लैग रोड प्रोजेक्ट के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सतीश पांडे को बधाई दी और संस्थान को इस तकनीक के माध्यम से पूरे भारत में सड़क निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया।

धातुमल सड़क निर्माण तकनीक

यह तकनीक भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय तथा देश की चार प्रमुख इस्पात निर्माता कंपनियों आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील, टाटा स्टील और राष्ट्रीय इस्पात निगम के सहयोग से एक शोध परियोजना के तहत केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है। यह तकनीक इस्पात संयंत्रों के अपशिष्ट इस्पात धातुमल के बड़े पैमाने पर सदुपयोग की सुविधा प्रदान करती है और देश में उत्पन्न लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग के प्रभावी निपटान में बहुत उपयोगी साबित हुई है। गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश सहित देश के चार प्रमुख राज्यों में सड़क निर्माण में इस तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।