10 अगस्त 2023 को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के जवाब का मूल पाठ
छले तीन दिवस से अनेक वरिष्ठ महानुभाव आदरणीय सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। करीब सभी के विचार मुझ तक विस्तार से पहुंचे भी हैं। मैंने स्वंय भी कुछ भाषण सुने भी हैं। आदरणीय अध्यक्ष जी, देश की जनता ने हमारी सरकार के प्रति बार-बार जो विश्वास जताया है। मैं आज देश के कोटि-कोटि नागरिकों का आभार व्यक्त करने के लिए उपस्थित हुआ हूं। और अध्यक्ष जी कहते हैं, भगवान बहुत दयालु हैं और भगवान की मर्जी होती है कि वो किसी न किसी के माध्यम से अपनी इच्छा की पूर्ति करता है, किसी न किसी को माध्यम बनाता है। मैं इसे भगवान का आशीर्वाद मानता हूं कि ईश्वर ने विपक्ष को सुझाया और वो प्रस्ताव लेकर आए। 2018 में भी ये ईश्वर का ही आदेश था, जब विपक्ष के मेरे साथी अविश्वास प्रस्ताव लेकर के आए थे। उस समय भी मैंने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव हमारी सरकार को फ्लोर टेस्ट नहीं है, मैंने उस दिन कहा था। बल्कि ये उन्हीं का फ्लोर टेस्ट है, ये मैंने उस दिन भी कहा था। और हुआ भी वही जब मतदान हुआ, तो विपक्ष के पास जितने वोट थे, उतने वोट भी वो जमा नहीं कर पाए थे। और इतना ही नहीं जब हम सब जनता के पास गए तो जनता ने भी पूरी ताकत के साथ इनके लिए नो कॉन्फिडेंस घोषित कर दिया। और चुनाव में एनडीए को भी ज्यादा सीटें मिलीं और भाजपा को भी ज्यादा सीटें मिलीं। यानि एक तरह से विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव हमारे लिए शुभ होता है, और मैं आज देख रहा हूं कि आपने तय कर लिया है कि एनडीए और बीजेपी 2024 के चुनाव में पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़कर के भव्य विजय के साथ जनता के आशीर्वाद से वापस आएगी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
विपक्ष के प्रस्ताव पर यहां तीन दिनों से अलग-अलग विषयों पर काफी चर्चा हुई है। अच्छा होता कि सत्र की शुरुआत के बाद से ही विपक्ष ने गंभीरता के साथ सदन की कार्यवाही में हिस्सा लिया होता। बीते दिनों इसी सदन ने और हमारे दोनों सदन ने जनविश्वास बिल, मेडिएशन बिल, डेन्टल कमीशन बिल, आदिवासियों के लिए जुड़े हुए बिल, डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल, कोस्टल एक्वा कल्चर से जुड़ा बिल, ऐसे कई महत्वपूर्ण बिल यहां पारित किए हैं। और ये ऐसे बिल थे जो हमारे फिशरमैन के हक के लिए थे, और उसका सबसे ज्यादा लाभ केरल को होना था और केरल के सांसदों से ज्यादा अपेक्षा थी। क्योंकि वो ऐसे बिल पर तो अच्छे ढंग से हिस्सा लेते हैं। लेकिन राजनीति उन पर ऐसी हावी हो चुकी है कि उनको फिशरमैन की चिंता नहीं है।
यहां नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का बिल था। देश की युवा शक्ति के आशा आकांक्षाओं के लिए एक नई दिशा देने वाला बिल था। हिन्दुस्तान को एक साइंस पावर के रूप में भारत कैसे उभरे, वैसे एक दीर्घ दृष्टि के साथ सोचा गया था, उससे भी आपका इतराज। डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल ये बिल अपने आप में देश के युवाओं के जज्बे में जो बात आज प्रमुखता से है, उससे जुड़ा हुआ था। आने वाला समय टेक्नोलॉजी ड्रिवेन है। आज डाटा को एक प्रकार से सेकंड ऑयल के रूप में, सेकंड गोल्ड के रूप में माना जाता है, उस पर कितनी गंभीर चर्चा की जरूरत थी। लेकिन राजनीति आपके लिए प्राथमिकता थी। कई ऐसे बिल थे, जो गांव के लिए, गरीब के लिए, दलित के लिए, पिछड़ों के लिए, आदिवासी के लिए उनके कल्याण की चर्चा करने के लिए थे। उनके भविष्य के साथ जुड़े हुए थे। लेकिन इसमें इन्हें कोई रूचि नहीं है। देश की जनता ने जिस काम के लिए उनको यहां भेजा है, उस जनता का भी विश्वासघात किया गया है। विपक्ष के कुछ दलों ने उनके आचरण से, उनके व्यवहार से उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि देश से ज्यादा उनके लिए दल है। देश से बड़ा दल है, देश से पहले प्राथमिकता दल है। मैं समझता हूं आपको गरीब की भूख की चिंता नहीं है, सत्ता की भूख यही आपके दिमाग पर सवार है। आपको देश के युवाओं के भविष्य की परवाह नहीं है। आपको अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता है।
और माननीय अध्यक्ष जी,
आप जुटे एक दिन सदन चलने भी दिया किस काम के लिए? आप जुटे तो अविश्वास प्रस्ताव पर जुटे? और अपने कट्टर भ्रष्ट साथी उनकी शर्त पर मजबूर होकर के और इस अविश्वास प्रस्ताव पर भी आपने कैसी चर्चा की? और तो मैं तो देख रहा हूं सोशल मीडिया में आपके दरबारी भी बहुत दुखी हैं, ये हाल है आपका।
और अध्यक्ष जी, देखिए मजा इस डिबेट का कि फिल्डिंग विपक्ष ने ऑर्गेनाइज की, लेकिन चौके छक्के यहीं से लगे। और विपक्ष नो कॉन्फिडेंस मोशन पर नो बॉल, नो बॉल पर ही आगे चलता जा रहा है। इधर से सेन्च्युरी हो रही है, उधर से नो बॉल हो रही है।
अध्यक्ष जी,
मैं हमारे विपक्ष के साथियों से यही कहूंगा कि आप तैयारी करके क्यों नहीं आते जी। थोड़ी मेहनत कीजिए और मैंने 5 साल दिए आपको मेहनत करने के लिए 18 में कहा था कि 23 में आप आना जरूर आना, 5 साल भी नहीं कर पाए आप लोग। क्या हाल है, आप लोगों का, क्या दारिद्र है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
विपक्ष के हमारे साथियों को दिखास की छपास की बहुत इच्छा रहती है और स्वाभाविक भी है। लेकिन आप ये मत भूलिए कि देश भी आपको देख रहा है। आपके एक-एक शब्द को देश गौर से सुन रहा है। लेकिन हर बार देश को आपने निराशा के सिवाय कुछ नहीं दिया है। और विपक्ष के रवैये पर भी मैं कहूंगा, जिनके, जिनके खुद के बही खाते बिगड़े हुए हैं। जिनके बही खाते खुद के बिगड़े हुए हैं। वो भी हमसे हमारा हिसाब लिए फिरते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी,
इस अविश्वास प्रस्ताव में कुछ चीजें तो ऐसी विचित्र नजर आई जो न तो पहले कभी सुना है, न देखा है, न कभी कल्पना की है। सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता का बोलने की सूची में नाम ही नहीं था। और पिछले उदाहरण देखिए आप। 1999 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया। शरद पवार साहब उस समय नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने डिबेट का नेतृत्व किया। 2003 में अटल जी की सरकार थी, सोनिया जी विपक्ष की नेता थी, उन्होंने लीड ली, उन्होंने विस्तार से अविश्वास प्रस्ताव रखा। 2018 में खड़गे जी थे, विपक्ष के नेता। उन्होंने प्रोमिनेंटली विषय को आगे बढ़ाया। लेकिन इस बार अधीर बाबू का क्या हाल हो गया, उनकी पार्टी ने उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया, ये तो कल अमित भाई ने बहुत-बहुत जिम्मेदारी के साथ कहा कि भाई अच्छा नहीं लग रहा है। और आपकी उदारता थी कि उनका समय समाप्त हो गया था, तो भी आपने उनको आज मौका दिया। लेकिन गुड़ का गोबर कैसे करना, उसमें ये माहिर हैं। मैं नहीं जानता हूं कि आखिर आपकी मजबूरी क्या है? क्यों अधीर बाबू को दरकिनार कर दिया गया। पता नहीं कलकत्ता से कोई फोन आया हो, और कांग्रेस बार-बार, कांग्रेस बार-बार उनका अपमान करती है। कभी चुनावों के नाम पर उन्हें अस्थायी रूप से फ्लोर लीडर से हटा देते हैं। हम अधीर बाबू के प्रति अपनी पूरी संवेदना व्यक्त करते हैं। सुरेश जी जरा जोर से हंस लीजिए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
किसी भी देश के जीवन में, इतिहास में एक समय ऐसा आता है, जब वो पुरानी बंदिशों को तोड़कर के एक नई ऊर्जा के साथ, नई उमंग के साथ, नए सपनों के साथ, नए संकल्प के साथ आगे बढ़ने के लिए कदम उठा लेता है। 21वीं सदी का ये कालखंड और मैं बड़ी गंभीरता से इस पवित्र लोकतंत्र के मंदिर में बोल रहा हूं, और लंबे अनुभव के बाद बोल रहा हूं कि ये कालखंड सदी का ये वो कालखंड है, जो भारत के लिए हर सपने सिद्ध करने का अवसर हमारे पास है। और हम सब ऐसे टाइम पीरियड में है, चाहे हम हैं, चाहे आप हैं, देश के कोटि-कोटि जन हैं। ये टाइम पीरियड बहुत अहम है, बड़ा महत्वपूर्ण है।
बदलते हुए विश्व में, और मैं इन शब्दों को भी बड़े विश्वास से कहना चाहता हूं कि ये कालखंड जो घटेगा, उसका प्रभाव इस देश पर आने वाले 1 हजार साल तक रहने वाला है। 140 करोड़ देशवासियों का पुरुषार्थ इस कालखंड में अपने पराक्रम से, अपने पुरुषार्थ से, अपनी शक्ति से, अपने सामर्थ्य से जो करेगा, वो आने वाले एक हजार साल की मजबूत नींव रखने वाला है। और इसलिए इस कालखंड में हम सबका बहुत बड़ा दायित्व है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और ऐसे समय में हम सबका एक ही फोकस होना चाहिए, देश का विकास। देश के लोगों के सपनों को पूरा करने का संकल्प और उस संकल्प को सिद्धि तक ले जाने के लिए जी-जान से जुट जाना, यही समय की मांग है। 140 करोड़ देशवासी इन भारतीय समुदाय की सामूहिक ताकत हमें उस ऊंचाई पर पहुंचा सकती है। हमारे देश की युवा पीढ़ी का सामर्थ्य आज विश्व ने उनका लोहा माना हुआ है, हम उन पर भरोसा करें। हमारी युवा पीढ़ी भी जो सपने देख रही है, वो सपनो को संकल्प के साथ सिद्धि तक पहुंचाने का सामर्थ्य रखती है। और इसलिए, माननीय अध्यक्ष जी,
2014 में 30 साल के बाद देश की जनता ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और 2019 में भी उस ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर के उनके सपनों को संजोने का सामर्थ्य कहां है, उनके संकल्पों को सिद्ध करने की ताकत कहां पड़ी है, वो देश भली-भांति पहचान गया है। और इसलिए 2019 में फिर एक बार हम सबको सेवा करने का मौका दिया और अधिक मजबूती के साथ दिया।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस सदन में बैठक प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वो भारत के युवाओं के सपनों को, उनकी महत्वाकांक्षाओं को, उनकी आशा अपेक्षा के मुताबिक, वो जो काम करना चाहता है, उसके लिए हम उसे अवसर दें। सरकार में रहते हुए हमने भी इस दायित्व को निभाने का भरपूर प्रयास किया है। हमने भारत के युवाओं को घोटालों से रहित सरकार दी है। हमने भारत के युवाओं को, आज के हमारे प्रोफेशनल्स को खुले आसमान में उड़ने के लिए हौसला दिया है, अवसर दिया है। हमने दुनिया में भारत की बिगड़ी हुई साख उसको भी संभाला है और उसे फिर एक बार नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं। अभी भी कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं कि दुनिया में हमारी साख को दाग लग जाए, लेकिन दुनिया अब देश को जान चुकी है, दुनिया के भविष्य में भारत की किस प्रकार से योगदान दे सकता है, ये विश्व का विश्वास बढ़ता चला जा रहा है, हमारे ऊपर।
और इस दौरान हमारे विपक्ष के साथियों ने क्या किया, जब इतना अनुकूल वातावरण, चारों तरफ संभावना ही संभावनाएं, इन्होंने अविश्वास के प्रस्ताव की आड़ में जनता के आत्मविश्वास को तोड़ने की विफल कोशिश की है। आज भारत के युवा रिकॉर्ड संख्या में नए स्टार्टअप ले करके दुनिया को चकित कर रहे हैं। आज भारत में रिकॉर्ड विदेशी निवेश आ रहा है। आज भारत का एक्सपोर्ट नई बुलंदी को छू रहा है। आज भारत की कोई भी अच्छी बात ये सुन नहीं सकते हैं…यही उनकी अवस्था है। आज गरीब के दिल में अपने सपने पूरे करने का भरोसा पैदा हुआ है। आज देश में गरीबी तेजी से घट रही है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में साढ़े 13 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आईएमएफ अपने एक वर्किंग पेपर में लिखता है कि भारत ने अति गरीबी को करीब-करीब खत्म कर दिया है। आईएमएफ ने भारत के डीबीटी और दूसरे हमारे सोशल वेलफेयर स्कीम के लिए, आईएमएफ ने इसे कहा है कि ये लॉजिस्टिक्स मार्बल है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि जल जीवन मिशन्स के जरिए भारत में चार लाख लोगों की जान बच रही है। चार लाख कौन हैं- मेरे गरीब, पीड़ित, शोषित, वंचित परिवारों के मेरे स्वजन हैं। हमारे परिवार के निचले तबके में ज़िंदगी गुजारने के लिए जो मजबूर हुए, ऐसे जन है, ऐसे चार लाख लोगों की जान बचने की बात डब्ल्यूएचओ कह रहा है। एनालिसेस करके कहता है कि स्वच्छ भारत अभियान से तीन लाख लोगों को मरने से बचाया गया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
भारत स्वच्छ होता है, तीन लाख लोगों की जिंदगी बचती है, ये तीन लाख है कौन- वही झुग्गी–झोंपड़ी में जिंदगी जीने के लिए जो मजबूर है, जिनके लिए अनेक कठिनाइयों से गुजारा करना पड़ता है। मेरे गरीब परिवार के लोग, शहरों की बस्तियों में गुजारा करने वाले लोग, गांव में जीने वाले लोग हैं और वंचित तबके के लोग हैं, जिनकी जान बची है। यूनिसेफ ने क्या कहा है- यूनिसेफ ने कहा है कि स्वच्छ भारत अभियान के कारण हर साल गरीबों के 50 हजार रुपये बच रहे हैं। ये लेकिन, भारत की इन उपलब्धियों से कांग्रेस समेत विपक्ष के कुछ लोक दलों को अविश्वास है। जो सच्चाई दुनिया दूर से देख रही है, ये लोग यहां रहते हैं-दिखती नहीं है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
अविश्वास और घमंड इनकी रगों में रच-बस गया है। ये जनता के विश्वास को कभी देख नहीं पाते हैं। अब ये जो शुतुरमुर्ग एप्रोच है, इसके लिए तो देश क्या कर सकता है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जो पुरानी सोच वाले लोग रहते हैं, मैं उस सोच से सहमत नहीं हूं। लेकिन वो कहते हैं कि देखो भाई जब कुछ शुभ होता है, कुछ मंगल होता है, घर में भी कुछ अच्छा होता है, बच्चे भी कोई अच्छे कपड़े पहनता है, जरा साफ-सुथरा होता है तो काला टीका लगा देते हैं। आज देश का जो मंगल हो रहा है चारों तरफ, देश की जो चारों तरफ वाहवाही हो रही है, देश का जो जय-जयकार हो रहा है, तो मैं आपका धन्यवाद करता हूं कि काले टीके के रूप में काले कपड़े पहन करके सदन में आ करके आपने इस मंगल को भी सुरक्षित करने का काम किया है, इसके लिए भी मैं आपका धन्यवाद करता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
पिछले तीन दिन से भी हमारे विपक्ष के साथियों ने जी भर करके, डिक्शनरी खोल-खोल करके जितने अपशब्द मिलते हैं ले आए हैं। जितने अपशब्दों का उपयोग कर सकते हैं भरपूर, जाने कहां-कहां से ले आते हैं। लेकर आए उनका निकल गया होगा, थोड़ा मन हल्का हो गया होगा इतने अपशब्द बोल लिए हैं तो। और वैसे तो ये लोग मुझे दिन-रात कोसते रहते हैं। उनकी ये फितरत है। और उनके लिए तो सबसे प्रिय नारा क्या है- मोदी तेरी कब्र खुदेगी, मोदी तेरी कब्र खुदेगी। ये इनका पसंदीदा नारा है। लेकिन मेरे लिए, इनकी गालियां, ये अपशब्द, ये अलोकतांत्रिक भाषा- मैं उसका भी टॉनिक बना देता हूं। और ये ऐसा क्यों करते हैं और ये क्यों होता है। आज मैं सदन में कुछ सीक्रेट बताना चाहता हूं। मेरा पक्का विश्वास हो गया है कि विपक्ष के लोगों को एक सीक्रेट वरदान मिला हुआ है, हां, सीक्रेट वरदान मिला हुआ है जी। और वरदान ये कि ये लोग जिसका बुरा चाहेंगे, उसका भला ही होगा। एक उदाहरण तो आप देखिए-मौजूद है। 20 साल हो गए क्या कुछ नहीं हुआ, क्या कुछ नहीं किया गया, लेकिन भला ही होता गया। तो आपको बड़ा सीक्रेट वरदान है जी। और मैं तीन उदाहरण से ये सीक्रेट वरदान को सिद्ध कर सकता हूं।
आपको ज्ञात होगा कि इन लोगों ने कहा था बैंकिंग सेक्टर के लिए- बैंकिंग सेक्टर डूब जाएगा, बैकिंग सेक्टर तबाह हो जाएगा, देश खत्म हो जाएगा, देश बर्बाद हो जाएगा, न जाने क्या-क्या कहा था। और बड़े-बड़े विद्वानों को विदेशों से ले आते थे, उनसे कहलवाते थे, ताकि इनकी बात कोई न माने तो शायद उनकी मान ले। हमारे बैंकों के सेहत को ले करके भांति-भांति की निराशा, अफवाह फैलाने का काम इन्होंने पुरजोर किया। और जब इन्होंने बुरा चाहा बैंकों का तो हुआ क्या, हमारे पब्लिक सेक्टर्स बैंक, नेट प्रॉफिट दोगुने से ज्यादा हो गया। इन लोगों ने फोन बैंकिंग घोटाले के बात की- इसके कारण देश को एनपीए के गंभीर संकट में डुबो दिया था।
बीते दिनों की बात हो रही है, लेकिन आज जो उन्होंने एनपीए का अंबार लगाकर गए थे उसको भी पार कर-करके हम एक नई ताकत के साथ निकल चुके हैं। और आज श्रीमती निर्मला जी ने विस्तार से बताया है कितना प्रॉफिट हुआ है। दूसरा उदाहरण- हमारे डिफेंस के हेलिकॉप्टर बनाने वाली सरकारी कंपनी एचएएल। ये एचएएल को ले करके कितनी भली-बुरी बातें इन्होंने करी थीं, क्या कुछ नहीं कहा गया था, एचएएल के लिए। और इसका दुनिया पर बहुत नुकसान करने वाली भाषा का प्रयोग किया गया था। और एचएएल तबाह हो गया है, एचएएल खत्म हो गया है, भारत की डिफेंस इंडस्ट्री खत्म हो चुकी है। ऐसा न जाने क्या-क्या कहा गया था, एचएएल के लिए।
इतना ही नहीं, जैसे आजकल खेतों में जा करके वीडियो शूट होता है, मालूम है ना। खेतों में जाकर वीडियो शूट होता है, वैसा ही उस समय एचएएल फैक्टरी के दरवाजे पर मजदूरों की सभा करके वीडियो शूट करवाया गया था और वहां के कामगारों को भड़काया गया था, अब तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है, तुम्हारे बच्चे मरेंगे, भूखे मरेंगे, एचएएल डूब रहा है। देश के इतने महत्वपूर्ण इंस्टीट्यूट का इतना बुरा चाहा, इतना बुरा चाहा, इतना बुरा कहा, वो सीक्रेट- आज एचएएल सफलता की नई बुलंदियों को छू रहा है। एचएएल ने अपना highest ever revenue रजिस्टर किया है। इनके जी भर करके गंभीर आरोप के बावजूद भी वहां के कामगारों को, वहां के कर्मचारियों को उकसाने की भरपूर कोशिश के बावजूद भी आज एचएएल देश की आन-बान-शान बनकर उभरा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये वजह है कि कांग्रेस के शासन में गरीबी और गरीबी को बढ़ाता गया। 1991 में देश कंगाल होने की स्थिति में था। कांग्रेस के शासनकाल में अर्थव्यवस्था दुनिया के क्रम में दस, ग्यारह, बारह- इसके बीच में झोले खाती थी, झूलती रही थी। लेकिन 2014 के बाद भारत ने टॉप पांच में अपनी जगह बना ली थी। कांग्रेस के लोगों को लगता होगा कि ये कोई जादू की लकड़ी से हुआ है। लेकिन मैं आज सदन को बताना चाहता हूं माननीय अध्यक्ष जी, Reform, Perform and Transform एक निश्चित आयोजन, प्लानिंग और कठोर परिश्रम, परिश्रम की पराकाष्ठा, और इसी की वजह से आज देश इस मुकाम पर पहुंचा है। और ये प्लानिंग और परिश्रम की निरंतरता बनी रहेगी। आवश्यकतानुसार उसमें नए Reform होंगे और Performance के लिए पूरी ताकत को लगाया जाएगा और परिणाम ये होगा कि हम तीसरे नंबर पर पहुंच कर रहेंगे।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
देश का विश्वास मैं शब्दों में भी प्रकट करना चाहता हूं। और देश का विश्वास है कि 2028 में, आप जब अविश्वास प्रस्ताव लेकर के आएंगे तब ये देश पहले तीन में होगा, ये देश का विश्वास है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हमारे विपक्ष के मित्रों की फितरत में ही अविश्वास भरा पडा है। हमने लाल किले से स्वच्छ भारत अभियान का आह्वान किया। लेकिन उन्होंने हमेशा अविश्वास जताया। कैसे हो सकता है? जो गांधी जी भी आकर गए, कह करके गए क्या हुआ? अभी स्वच्छता कैसे हो सकती है? अविश्वास भरी हुई इनकी सोच है। हमने मां-बेटी को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए, उस मजबूरी से मुक्त होने के लिए शौचालय जैसी जरूरत पर जोर दिया और तब ये कह रहे हैं, क्या लाल किले से ऐसे विषय बोले जाते हैं? क्या ये देश की प्राथमिकता होती है क्या? हमने जब जन-धन खाते खोलने की बात की, तब भी यही बात निराशा की। क्या होता है जन-धन खाता? उनके हाथ में पैसे कहां है? उनका जेब में क्या पड़ा है? क्या लेके आएंगे, क्या करेंगे? हमने योग की बात की, हमने आयुर्वेद की बात की, हमने उसको बढ़ावा देने की बात की तो उसका भी माखौल उड़ाया गया। हमने र्स्टाट-अप इंडिया की चर्चा की, तो उन्होंने उसके लिए भी निराशा फैलाई। र्स्टाट-अप तो कोई हो ही नही सकता है। हमने डिजिटल इंडिया की बात कही, तो बड़े–बड़े विद्वान लोगों ने क्या भाषण दिए। हिन्दुस्तान के लोग तो अनपढ़ हैं, हिन्दुस्तान के लोगों को तो मोबाइल चलाना भी नहीं आता है। हिन्दुस्तान के लोग कहां से डिजिटल करेंगे? आज डिजिटल इंडिया में देश आगे है। हमने मेक इन इंडिया की बात कही। जहां गए वहां मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाया। जहां गए वहां मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाया।
आदरणीय अध्यक्ष जी
कांग्रेस पार्टी और उनके दोस्तों का इतिहास रहा है कि उन्हें भारत पर भारत के सामर्थ्य पर कभी भी भरोसा नही रहा है।
माननीय अध्यक्ष जी,
और ये विश्वास किस पर करते थे। मैं जरा आज सदन को याद दिलाना चाहता हूँ। पाकिस्तान सीमा पर हमले करता था। हमारे यहां आए दिन आतंकवादी भेजता था और उसके बाद पाकिस्तान हाथ ऊपर करके मुकर जाता था, भाग जाता था बोले कि हमारी तो कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। कोई जिम्मा लेने को तैयार नही होता था। और इनका पाकिस्तान से इतना प्रेम था, वो तुरंत पाकिस्तान की बातों पर विश्वास कर लेते थे। पाकिस्तान कहता था कि आतंकी हमले तो होते रहेंगे और बातचीत भी होती रहेगी। इन्हें, यहां तक कहते थे कि पाकिस्तान कह रहा है तो सही ही कहता होगा। ये इनकी सोच रही है। कश्मीर आतंकवाद की आग में दिन-रात सुलग रहा था। जलता था, लेकिन कांग्रेस सरकार का काम कश्मीर और कश्मीर के आम नागरिक पर विश्वास नही था। वे विश्वास करते थे हुर्रियत पर, वे विश्वास करते थे अलगाववादियों पर, वे विश्वास उन लोगों पर करते थे जो पाकिस्तान का झंडा लेकर चलते थे। भारत ने आतंकवाद पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। भारत ने एयर स्ट्राइक किया, इनको भारत की सेना पर भरोसा नही था। उनको दुश्मन के दावों पर भरोसा था। ये इनकी प्रवृत्ति थी।
नाम रखा रणधीर,
भाग्यचंद की आज तक, सोई है तकदीर,
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इनकी मुसीबत ऐसी है कि खुद को जिंदा रखने के लिए, इनको NDA का ही सहारा लेना पड़ा है। लेकिन आदत के मुताबिक घमंड का जो I है ना I वो उनको छोड़ता नहीं है। और इसलिए एनडीए में दो I पिरो दिये। दो घमंड के I पिरो दिये। पहला I छब्बीस दलों का घमंड और दूसरा I एक परिवार का घमंड। एनडीए भी चुरा लिया, कुछ बचने के लिए और इंडिया के भी टुकड़े कर दिये I.N.D.I.A.
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जरा हमारे डीएमके के भाई सुन लें, जरा कांग्रेस के लोग भी सुन लें। अध्यक्ष महोदय, यूपीए को लगता है कि देश के नाम का इस्तेमाल करके अपनी विश्वसनीयता बढ़ाई जा सकती है। लेकिन कांग्रेस के सहयोगी दल कांग्रेस के अटूट साथी तमिलनाडु सरकार में एक मंत्री, दो दिन पहले ही ये कहा है, तमिलनाडु सरकार के एक मंत्री ने कहा है I.N.D.I.A. उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। I.N.D.I.A. उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उनके मुताबिक तमिलनाडु तो भारत में है ही नहीं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आज मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं तमिलनाडु वो प्रदेश है, जहां हमेशा देशभक्ति की धाराएं निकली हैं। जिस राज्य ने हमें राजा जी दिये। जिस राज्य ने हमें कामराज दिये। जिस राज्य ने हमें एनटीआर दिये। जिस राज्य ने हमें अब्दुल कलाम दिये। आज उस तमिलनाडु से ये स्वर सुनाई दे रहे हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जब आपके alliance में अंदर ही अंदर ऐसे लोग हों, जो अपने देश के अस्तित्व को नकारते हों, तो आपकी गाड़ी कहां जाकर के रुकेगी, जरा आत्म चिंतन करने का मौका मिले और आत्मा बची हो तो जरूर करिएगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
नाम को लेकर उनका एक चश्मा आज का नहीं है, नाम को लेकर ये जो मोह है ना वो उनका आज का नहीं है। ये दशकों पुराना चश्मा है। इन्हें लगता है कि नाम बदलकर देश पर राज कर लेंगे। गरीब को चारों तरफ उनका नाम तो नजर आता है, लेकिन उनका काम कहीं नजर नहीं आता है। अस्पतालों में नाम उनके हैं इलाज नहीं है। शैक्षणिक संस्थाओं पर उनके नाम लटक रहे हैं, सड़क हों, पार्क हों उनका नाम, गरीब कल्याण की योजनाओं पर उनका नाम, खेल पुरस्कारों पर उनका नाम, एयरपोर्ट पर उनका नाम, म्यूजियम पर उनका नाम, अपने नाम से योजनाएं चलाईं और फिर उन योजनाओं में हजारों-करोड़ के भ्रष्टाचार किए। समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति काम होते हुए देखना चाहता था, लेकिन उसे मिला क्या सिर्फ-सिर्फ परिवार का नाम।
अध्यक्ष महोदय,
कांग्रेस की पहचान से जुड़ी कोई चीज उनकी अपनी नहीं है। कोई चीज उनकी अपनी नहीं है। चुनाव चिह्न से लेकर विचारों तक सब कुछ कांग्रेस अपना होने का दावा करती है वो किसी और से लिया हुआ है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
अपनी कमियों को ढकने के लिए चुनाव चिन्ह और विचारों को भी चुरा लिया, फिर भी जो बदलाव हुए हैं, उसमें पार्टी का घमंड ही दिखता है। ये भी दिखता है कि 2014 से वो किस तरह Denial के Mode में है। पार्टी के संस्थापक कौन ऐ.ओ. ह्यूम एक विदेशी थे, जिन्होंने पार्टी बनाई। आप जानते हैं 1920 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई ऊर्जा मिली। 1920 में एक नया ध्वज मिला और देश ने उस ध्वज को अपना लिया तो रातों-रात कांग्रेस ने उस ध्वज की ताकत को देखकर के उसे भी छीन लिया और प्रतीक को देखा कि ये गाड़ी चलाने के लिए ठीक रहेगा, 1920 से ये खेल चल रहा है जी। और उनको लगा कि वो तिरंगा झंडा देखेंगे तो लोग देखेंगे कि उनकी ही बात हो रही है। ये उन्होंने खेल किया। वोटरों को भुनाने के लिए गांधी नाम भी। हर बार वो भी चुरा लिया। कांग्रेस के चुनाव चिह्न देखिए दो बैल, गाय बछड़ा और फिर हाथ का पंजा, ये सारे उनके कारनामे उनके हर प्रकार के मनोवृत्ति का प्रतिबिंब करता है, उसको प्रकट करते हैं और ये साफ दिखाता है कि सब कुछ एक परिवार के हाथों में सब केंद्रित हो चुका है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये I.N.D.I.A. गठबंधन नहीं है, ये I.N.D.I.A. गठबंधन नहीं है, एक घमंडिया गठबंधन है। और इसकी बारात में हर कोई दूल्हा बनना चाहता है। सबको प्रधानमंत्री बनना है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस गठबंधन ने ये भी नहीं सोचा है कि किस राज्य में आपके साथ आप किसके साथ कहां पहुंचे हैं? पश्चिम बंगाल में आप टीएमसी और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ हैं। और दिल्ली में एक साथ हैं। और अधीर बाबू 1991 पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव इन्हीं कम्युनिस्ट पार्टी ने अधीर बाबू के साथ क्या व्यवहार किया था, वो आज भी इतिहास में दर्ज है। खैर 1991 की बात तो अब पुरानी है, पिछले साल केरल के वायनाड में जिन लोगों ने कांग्रेस के कार्यालय में तोड़फोड़ की, ये लोग उनके साथ दोस्ती करके बैठे हैं। बाहर से तो ये अपना, बाहर से तो अपना लेबल बदल सकते हैं, लेकिन पुराने पापों का क्या होगा? ये ही पाप आपको लेके डूबेंगे। आप जनता जनार्दन से ये पाप कैसे छुपा पाओगे? आप नहीं छुपा सकते हो और इनको आज जो हालत है, इसलिए मैं कहना चाहता हूं,
अभी हालात ऐसे हैं, अभी हालात ऐसे हैं
इसलिए हाथों में हाथ,
जहां हालात तो बदले, फिर छुरियां भी निकलेंगी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये घमंडिया गठबंधन देश में परिवारवाद की राजनीति का सबसे बड़ा प्रतिबिंब है। देश के स्वाधीनता सेनानियों ने, हमारे संविधान निर्माताओं ने हमेशा परिवारवादी राजनीति का विरोध किया था। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, बाबा साहब अंबेडकर, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, गोपीनाथ बोरदोलोई, लोकनाथ जयप्रकाश, डॉक्टर लोहिया, आप जितने भी नाम देखेंगे सबने परिवारवाद की खुलकर आलोचना की है, क्योंकि परिवारवाद का नुकसान देश के सामान्य नागरिक को उठाना पड़ता है। परिवारवाद सामान्य नागरिक के, उसके हकों, उसके अधिकारों से वंचित हैं, इसलिए इन विभूतियों ने हमेशा इस बात पर बहुत जोर दिया था कि देश को परिवार, नाम और पैसे पर आधारित व्यवस्था से हटना ही होगा, लेकिन कांग्रेस को हमेशा ये बात पसंद नहीं आई।
दय,
कल वैसे तो विस्तार से अमित भाई ने बताया है। मणिपुर में अदालत का एक फैसला आया। अब अदालतों में क्या हो रहा है वो हम जानते हैं। और उसके पक्ष विपक्ष में जो परिस्थितियों बनीं, हिंसा का दौर शुरू हो गया और उसमें बहुत परिवारों को मुश्किल हुई। अनेकों ने अपने स्वजन भी खोएं। महिलाओं के साथ गंभीर अपराध हुआ और ये अपराध अक्षम्य है और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार मिलकर के भरपूर प्रयास कर रही है। और मैं देश के सभी नागरिकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जिस प्रकार से प्रयास चल रहे हैं निकट भविष्य में शांति का सूरज जरूर उगेगा। मणिपुर फिर एक बार नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेगा। मैं मणिपुर के लोगों से भी आग्रह पूर्वक कहना चाहता हूं, वहां की माताओं-बहनों, बेटियों से कहना चाहता हूं देश आपके साथ है, ये सदन आपके साथ है। हम सब मिलकर के कोई यहां हो या ना हो, हम सब मिलकर के इस चुनौती का समाधान निकालेंगे, वहां फिर से शांति की स्थापना होगी। मैं मणिपुर के लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि मणिपुर फिर विकास की राह पर तेज गति से आगे बढ़े उसमें कोई प्रयासों में कोई कसर नहीं रहेगी।
आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
यहां सदन में मां भारती के बारे में जो कहा गया है, उसने हर भारतीय की भावना को गहरी ठेस पहुंचाई है। अध्यक्ष जी पता नहीं मुझे क्या हो गया है। सत्ता के बिना ऐसा हाल किसी का हो जाता है क्या? सत्ता सुख के बिना जी नहीं सकते हैं क्या? और क्या क्या भाषा बोल रहे हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
पता नहीं क्यों कुछ लोग भारत मां की मृत्यु की कामना करते नजर आ रहे हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। ये वो लोग हैं जो कभी लोकतंत्र की हत्या की बात करते हैं, कभी संविधान की हत्या की बात करते हैं। दरअसल जो इनके मन में है, वही उनके कृतित्व में सामने आ जाता है। मैं हैरान हूं और ये बोलने वाले कौन लोग हैं? क्या ये देश भूल गया है ये 14 अगस्त विभाजन विभीषिका, पीड़ा दायक दिवस आज भी हमारे सामने उन चीख को लेकर के, उन दर्द को लेकर के आता है। ये वो लोग जिन्होंने मां भारती के तीन-तीन टुकड़े कर दिए। जब मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना था, जब मां भारती की जंजीरों को तोड़ना था, बेड़ियों को काटना था, तब इन लोगों ने मां भारती की भुजाएं काट दीं। मां भारती के तीन-तीन टुकड़े कर दिए और ये लोग किस मुंह से ऐसा बोलने की हिम्मत करते हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मणिपुर में जो सरकार है और पिछले छह साल से इन समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए लगातार समर्पित भाव से कोशिश कर रही है। बंद और ब्लॉकेट का जमाना कोई भूल नहीं सकता है। मणिपुर में आये दिन बंद और ब्लॉकेट होता था। वो आज बीते दिन की बात हो चुकी है। शांति स्थापना के लिए हरेक को साथ लेकर चलने के लिए एक विश्वास जगाने का प्रयास निरंतर हो रहा है, आगे भी होगा। और जितना ज्यादा हम राजनीति को दूर रखेंगे, उतनी शांति निकट आएगी। यह मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हमारे लिए नॉर्थ-ईस्ट आज भले हमें दूर लगता हो, लेकिन जिस प्रकार से साउथ ईस्ट एशिया का विकास हो रहा है, जिस प्रकार आसियान देशों का महत्व बढ़ रहा है, वो दिन दूर नहीं होगा, हमारे ईस्ट की प्रगति के साथ-साथ नॉर्थ-ईस्ट वैश्विक दृष्टि से सेंटर प्वाइंट बनने वाला है। और मैं यह देख रहा हूं, और इसलिए मैं पूरी ताकत से आज नॉर्थ-ईस्ट की प्रगति के लिए कर रहा हूं, वोट के लिए नहीं कर रहा हूं जी। मुझे मालूम है कि करवट लेते हुए विश्व की नई संरचना किस प्रकार से साउथ ईस्ट एशिया और आसियान की कंट्री के लिए प्रभाव पैदा करने वाली है और नॉर्थ-ईस्ट का क्या महत्व बढ़ने वाला है और न नॉर्थ-ईस्ट का गौरव गान फिर से कैसे शुरू होने वाला है, वो मैं देख सकता हूं और इसलिए मैं लगा हुआ हूँ।
हम जब सबका साथ, सबका विकास कहते हैं, यह हमारे लिए नारा नहीं, यह हमारे शब्द नहीं है। यह हमारे लिए आर्टिकल ऑफ फेथ है। हमारे लिए कमिटमेंट है और हम देश के लिए निकले हुए लोग हैं। हमने तो कभी जीवन में सोचा ही नहीं था कि कभी ऐसी जगह आ करके बैठने का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन यह देश की जनता की कृपा है कि उसने हमें अवसर दिया है तो मैं देश की जनता को विश्वास दिलाता हूं –
शरीर का कण-कण,
समय का पल-पल सिर्फ और सिर्फ देशवासियों के लिए है,
आदरणीय अध्यक्ष जी,
मैं अपने विपक्ष के साथियों की एक बात के लिए आज तारीफ करना चाहता हूं। क्योंकि वैसे तो वो सदन के नेता को नेता मानने के लिए तैयार नहीं है। मेरे किसी भाषण को उन्होंने होने नहीं दिया है, लेकिन मुझमें धैर्य भी है, सहनशक्ति भी है और झेल भी लेता हूं और वो थक भी जाते हैं। लेकिन एक बात के लिए मैं तारीफ करता हूं, सदन के नेता के नाते मैंने 2018 में उनको काम दिया था कि 2023 में आप अविश्वास पत्र ले करके आए और मेरी बात मानी उन्होंने। लेकिन मुझे दु:ख इस बात का है कि 18 के बाद 23 में पांच साल मिले, थोड़ा अच्छा करते, अच्छे ढंग से करते, लेकिन तैयारी बिल्कुल नहीं थी। कोई इनोवेशन नहीं था, कोई क्रिएटिविटी नहीं थी। न मुद्दे खोज पा रहे थे, पता नहीं यह देश को इन्होंने बहुत निराश किया है अध्यक्ष जी, चलिए कोई बात नहीं 2028 में हम फिर से मौका देंगे। लेकिन मैं इस बार उनसे आग्रह करता हूं कि जब 2028 में आप अविश्वास प्रस्ताव ले करके आएं हमारी सरकार के खिलाफ, थोड़ी तैयारी करके आइये। कुछ मुद्दे ढूंढ करके आइये, ऐसे क्या घिसी-पिटी बातें ले करके घूमते रहते हो और देश की जनता को थोड़ा विश्वास इतना मिल जाए कि चलो आप विपक्ष के भी योग्य हो। इतना तो करो। आपने वो योग्यता भी खो दी है। मैं आशा करता हूं कि वो थोड़ा होमवर्क करेंगे। तू-तू, मैं-मैं और चिल्लाना-चीखना, और नारेबाजी के लिए तो दस लोग मिल जाएंगे, लेकिन थोड़ा दिमाग वाला भी काम भी कीजिए ना।