सिकुड़ती जा रही है कांग्रेस, ये तीन पुराने साथी बने सरदर्द
कांग्रेस पार्टी देश में लगातार सिकुड़ती जा रही है। देश के तमाम राज्यों में कांग्रेस ने जनाधार को खोया है। इस बीच कांग्रेस के कई वरिष्ट नेता बह पार्टी से नाराज़ नज़र आ रहे हैं। इन नेताओं में ग़ुलाम नबी आज़ाद और कपिल सिबल जैसे नेता शामिल हैं। हाल ही में ग़ुलाम नबी आज़ाद के आवाहन पर कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने जमा होकर अपनी एकता दिखाई थी। ऐसे में ये नेता आने वाले समय के में गाँधी परिवार का सरदर्द बन सकते हैं। लेकिन कांग्रेस को खतरा इन 23 नेताओं से नहीं है बल्कि उन तीन पुराने साथियों से हैं, जिन्होंने अपना रास्ता सालों पहले कांग्रेस से अलग कर लिया था।
ममता नहीं दे रही कांग्रेस को मन मुताबिक़ सीट
साल 1998 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया। इसके ग्यारह साल बाद टीएमसी ने सीपीआईएम को हराने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन कारगर रहा और 1977 के बाद पहली बार लेफ्ट फ्रंट को राज्य में बहुमत नहीं मिला। टीएमसी-कांग्रेस के गठबंधन ने साल 2011 विधानसभा चुनावों में एक बार फिर लेफ्ट फ्रंट को हराया। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करके सबको चौका दिया। ममता ने 2014 में 42 में से 34 सीटों पर जीत दर्ज कर ली वहीँ कांग्रेस के सीटों की संख्या 6 से घटकर 4 पर आ गई। 2016 विधानसभा चुनाव में ममता को हराने के लिए कांग्रेस ने लेफ्ट के साथ गठबंधन किया, लेकिन इन्हें ममता ने बुरी तरीके से हरा दिया।
तो क्या सहयोगियों के लिए बोझ बन गई है कांग्रेस?
भले ही कांग्रेस देश में सिकुड़ती जा रही है लेकिन फिर भी उसका वोट शेयर ठीक-ठाक है और आठ मुख्य राज्यों, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक और असम में वह अभी भी बीजेपी को सीधे टक्कर दे रही है। हालांकि, इस सूची में हिमचाल प्रदेश और पूर्वोत्तर के छोटे राज्य नहीं हैं।
लेकिन तीन बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में टीएमसी, महाराष्ट्र में एनसीपी और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस जैसी मुख्य पार्टियां जो कि कांग्रेस से अलग होकर ही बनीं, अब बीजेपी के लिए चुनौती बन रही हैं। इन राज्यों के चुनावी संघर्ष को देखा जाए तो कांग्रेस यहां अपने ही लोगों से लड़ती नजर आती हैं। इन तीन राज्यों में देश की 543 लोकसभा सीटों में से 115 सीटें हैं।