नीति आयोग ने ‘ समुद्री राज्यों में मत्स्य पालन की संभावनाओं का दोहन करना’ विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला की मेजबानी की

नीति आयोग ने 5 जनवरी 2024 को केरल सरकार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) – केंद्रीय समुद्री मत्स्य पालन अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के सहयोग से केरल के कोच्चि में ‘समुद्री राज्यों में मत्स्य पालन की संभावनाओं का दोहन करना’ विषय पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला की मेजबानी की। यह आयोजन दरअसल राज्य सहायता मिशन के तहत एक विशिष्‍ट पहल है।

इस एक दिवसीय कार्यशाला में केंद्र और राज्य सरकारों के प्रमुख हितधारकों, शोधकर्ताओं, उद्योग प्रतिनिधियों और प्रोफेशनल विशेषज्ञों को एक मंच पर लाया गया और इस दौरान स्थायित्व, बाजार संबंधों और जमीनी चुनौतियों से निपटने के क्षेत्र में भारत के विशाल समुद्री मत्स्य पालन के वादे को साकार करने के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार-विमर्श किया गया।

मुख्य भाषण देते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री सुमन बेरी ने कहा, ‘विकसित भारत 2047 को सुनिश्चित करने में प्रौद्योगिकी अत्‍यंत मददगार बनने जा रही है।’ उन्होंने नीति आयोग की भूमिका के बारे में बताया और विकसित भारत 2047 को सुनिश्चित करने की दिशा में राज्यों के साथ मिलकर काम करने पर विशेष जोर दिया।

नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने मत्स्य पालन क्षेत्र में आंध्र प्रदेश की उपलब्धि की सराहना की और समुद्री मत्स्य पालन में उत्पादन एवं उत्पादकता के संदर्भ में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया।

इस कार्यशाला में उन समस्‍त क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रगतिशील चर्चा हुई जिनके लिए नीतिगत बाधाओं को दूर करने, क्षमता में निहित अंतर को पाटने और भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। दरअसल ये सभी बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करने और भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जक के रूप में समुद्री मत्स्य पालन की पूर्ण विकास क्षमता को हासिल करने के लिए अत्‍यंत आवश्‍यक हैं।

इस कार्यशाला के चार तकनीकी सत्र विभिन्न राज्यों में भारत के समुद्री मत्स्य उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों जैसे कि स्थायित्व हासिल करने के तौर-तरीकों, निर्यात संबंधी प्रतिस्पर्धी क्षमता, आवश्‍यक अवसंरचना में निहित अंतर और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित थे। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और ओडिशा जैसे तटीय राज्यों ने अपने-अपने सर्वोत्तम तौर-तरीकों को साझा किया जिन्हें और भी ज्‍यादा बढ़ाया जा सकता है। इस कार्यशाला में नीतिगत अंतर और पहलों पर प्रकाश डालते हुए समुद्री क्षेत्र में प्रमाणन और स्थायित्व पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। इसके अपेक्षित परिणामों में इस क्षेत्र की प्रगति में बाधक प्रमुख समस्‍याओं एवं कमियों की पहचान करना, बेहतर सुरक्षा और अवसंरचना के लिए स्थायित्व, विपणन और तकनीकी पहलू एवं रणनीतियां बनाने के लिए सिफारिशें पेश करना, और हितधारकों के बीच आपसी सामंजस्‍य बढ़ाना शामिल हैं।