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मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने आज पूसा, नई दिल्ली में हाइब्रिड मोड में मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर इंश्योरेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने आज पूसा, नई दिल्ली में हाइब्रिड मोड में मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर इंश्योरेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। केंद्रीय मंत्री ने कुछ लाभार्थियों को समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस) के चेक भी वितरित किए। इस अवसर पर मत्स्यपालन विभाग के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव सागर मेहरा और नीतू कुमारी प्रसाद भी उपस्थित थे।

अपने संबोधन में परषोत्तम रूपाला ने सभी हितधारकों से वेसल्स इंश्योरेंस योजनाओं के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सुझाव और इनपुट के साथ आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ग्रुप एक्सीडेंट इंश्योरेंस स्कीम (जीएआईएस) काफी सफल रही है और इसी तरह की सफलता को मछुआरा समुदाय के बीच फसल बीमा और वेसल्स बीमा के लिए भी इस्तेमाल होना चाहिए। उन्‍होंने यह भी कहा कि नई योजनाएं बनाते समय जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

रूपाला ने सम्मेलन के आयोजन के लिए विभाग की सराहना की, जो सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने में काफी मददगार साबित होगा। परषोत्तम रूपाला ने बीमा लाभार्थियों से भी बातचीत की और उनकी प्रतिक्रिया ली।

मत्स्यपालन विभाग के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विभाग जापान और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में मछुआरों के लिए सफल बीमा मॉडल का अध्ययन करेगा और उनके अनुभवों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा। डॉ. लिखी ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार कंपनियों से वेसल्स बीमा योजनाओं को बढ़ावा दे रही है और ऐसी योजनाओं के लिए सामान्य मापदंडों पर काम करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मछुआरा समुदाय के साथ विश्वास की कमी को दूर करने के लिए फसल बीमा के तहत योजनाओं की समीक्षा की जा रही है। सचिव ने उल्लेख किया कि ग्रुप एक्सीडेंट इंश्योरेंस स्कीम (जीएआईएस) ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ (पीएमएमएसवाई) के तहत सबसे पुरानी और सबसे सफल योजना है।

एक्वाकल्चर और वेसल्स बीमा सम्मेलन में बीमा के साथ-साथ मत्स्यपालन क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों को शामिल किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य मत्स्य पालन बीमा से संबंधित सभी हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना, सहयोगी पहल, सर्वोत्तम प्रथाओं और इनोवेशन्स को प्रोत्साहित करना, अनुसंधान और विकास में लक्ष्य निर्धारित करना, किसानों तथा मछुआरों को प्रभावशाली अनुभवों एवं सफलता की कहानियों के माध्यम से बीमा कवरेज अपनाने के लिए प्रेरित करना और जागरूकता बढ़ाकर मत्स्य समुदाय के भीतर एक्वाकल्चर बीमा अपनाने की दर को बढ़ावा देना है।

मछुआरों और मछली पालन किसानों के हितों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और मत्स्य पालन क्षेत्र, बीमा कंपनियों, बीमा मध्यस्थों तथा वित्तीय संस्थानों में विभिन्न हितधारकों के साथ उत्पादक विचार-विमर्श करने की आवश्यकता को पहचानते हुए, मत्स्यपालन विभाग ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। कार्यक्रम में विचार-विमर्श एक व्यापक कार्यान्वयन ढांचे, सहयोगात्मक प्रयास और अभिनव समाधान (प्रोत्साहन, उत्पाद नवाचार इत्यादि) विकसित करने में सहायता करेगा जो मछुआरों और जलीय कृषि किसानों के लिए बीमा पैकेज को अधिक किफायती और आकर्षक बना सकता है।

एफएओ अधिकारियों, सीएमएफआरआई और सीआईबीए के वैज्ञानिकों, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, मत्स्यफेड, केरल और द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के प्रतिनिधियों सहित उद्योग विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के साथ भी विचार-विमर्श किया गया। किसानों और मत्स्य संघों ने एक्वाकल्चर इंश्योरेंस का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियों से संबंधित अपने अनुभव साझा किए।

सम्मेलन में निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों के संबंध में चर्चा हुई:

मत्स्यपालन में बीमा के माध्यम से जोखिम को न्यूनतम करना
भारत में जलीय कृषि और वेसल्स बीमा की कमियां/चुनौतियां और संभावनाएं
विभिन्न बीमा उत्पाद और उनकी विशेषताएं जिन्हें मत्स्यपालन क्षेत्र में लागू किया जा सकता है
मत्स्यपालन के लिए फसल बीमा में क्षतिपूर्ति आधारित और सूचकांक आधारित बीमा अवसर
मत्स्यपालन में पुनर्बीमा की भूमिका
मत्स्यपालन क्षेत्र में सूक्ष्म बीमा की भूमिका
न्यूनतम परेशानी में त्वरित दावा निपटान प्रक्रिया के लिए सर्वोत्तम अभ्यास

सम्मेलन में भाग लेने वालों में मछली किसान और मछुआरे, मत्स्य पालन सहकारी समितियां तथा उत्पादक कंपनियां, मत्स्य पालन प्रबंधन में शामिल राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सरकारी अधिकारी, शोधकर्ता और शिक्षाविद्, केवीके, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थान, ट्रेसबिलिटी और प्रमाणन सेवा प्रदाता आदि शामिल थे। इसके अलावा संबंधित ग्राम पंचायतों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), मत्स्य पालन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के डीओएफ अधिकारियों ने भी वीसी (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) के माध्यम से इसमें भाग लिया। सम्मेलन में कुल 300 (फिजिकल-100 एवं वर्चुअल-200) प्रतिभागी शामिल हुए। सम्मेलन पूरे समुदाय के लाभ के लिए मत्स्यपालन क्षेत्र में बीमा की पहुंच को मजबूत करने और विस्तारित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की कल्पना कर रहा है।

मत्स्यपालन और जलीय कृषि भोजन, पोषण, रोजगार, आय और विदेशी मुद्रा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मछली किसानों तथा मूल्य श्रृंखला के साथ कई लाख से अधिक मछुआरों और मछली किसानों को आजीविका, रोजगार एवं उद्यमशीलता प्रदान करता है। वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ भारत तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है। पिछले नौ वर्षों के दौरान, भारत सरकार ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए परिवर्तनकारी पहल की है।

मत्स्यपालन क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है। इस क्षेत्र में सतत और जिम्मेदार विकास को बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने मई 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत की। इस पहल का उद्देश्य मछली उत्पादन, बाद के बुनियादी ढांचे, ट्रेसबिलिटी में महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित करके और मछुआरों का कल्याण सुनिश्चित करके एक ब्लू रेवोल्यूशन को उत्प्रेरित करना है। राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) को बीमा योजनाओं सहित पीएमएमएसवाई कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है। इसके महत्व के बावजूद, मत्स्य पालन क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं और बाजार में उतार-चढ़ाव जैसी कमजोरियों का सामना करना पड़ता है जो इसमें शामिल लोगों की भलाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

पारंपरिक मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मछली पकड़ने से जुड़े जोखिमों से बचाने की जरूरत है। इस दिशा में, पीएमएमएसवाई के तहत मछली पकड़ने वाले जहाजों और समुद्री मछुआरों के बीमा कवर के लिए सहायता का प्रावधान किया गया है। हालांकि मरीन संबंधी खतरे, पुराना बेड़ा और रखरखाव के मुद्दे, विनाशकारी घटनाएं आदि चुनौतियां भी सामने हैं।

भारत में जलीय कृषि विभिन्न जोखिमों जैसे बीमारियों, पीक सीजन की घटनाओं और बाजार में उतार-चढ़ाव से भी घिरी रहती है। जलीय कृषि उद्योग की गतिशील प्रकृति के कारण इन जोखिमों का आकलन और प्रबंधन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। किसानों ने पायलट एक्वाकल्चर फसल बीमा योजना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि यह केवल बुनियादी कवरेज प्रदान करती थी और बीमारियों सहित व्यापक कवरेज प्रदान नहीं करती थी। बीमा कंपनियों के पास जलीय कृषि फसल के नुकसान पर लिगेसी डेटा नहीं है। हालांकि बीमा कंपनियां एक्वा फसलों के व्यापक कवरेज की उम्मीद करती हैं, लेकिन उत्पाद अधिक महंगा होने के कारण इसकी स्वीकार्यता फिलहाल कम है। कई जलकृषि संचालकों को बीमा के लाभों के बारे में जानकारी नहीं हो सकती है या उपलब्ध उत्पादों के बारे में समझ की कमी हो सकती है। बीमा कंपनियों को पुनर्बीमा सहायता की बहुत आवश्यकता है।