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कोयला मंत्रालय ने 2015 में हुई कोयला नीलामी के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर प्रतिक्रिया दी

हाल के दिनों में, मीडिया के एक विशेष वर्ग में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें केंद्र सरकार पर एक कार्पोरेट को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया गया। कहा गया कि कोयला मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल विद्युत विकास निगम लिमिटेड (डब्ल्यूबीपीडीसीएल) को पूर्व आवंटी मानते हुए पश्चिम बंगाल स्थित कोयला खानों की नीलामी में शामिल होने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया क्योंकि उसने निर्धारित समय में अतिरिक्त लेवी का भुगतान नहीं किया। लगाए गए आरोप गलत एवं निराधार हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें कोयला ब्लॉक आवंटन एवं कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों की जानकारी की कमी है।

गौरतलब है कि कोयला खदानों का आवंटन सरकारी एवं निजी कंपनियों को नीलामी के माध्यम से और केवल सरकारी कंपनियों के माध्यम से दिया जाता है। कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम की धारा 4(4) के अनुसार, अगर पूर्व आवंटी ने अतिरिक्त लेवी का भुगतान नहीं किया है तो ऐसे स्थिति में पूर्व आवंटी, उसके प्रमोटर या ऐसे पूर्व आवंटी की कोई भी कंपनी स्वयं या संयुक्त उद्यम के माध्यम से बोली लगाने के लिए पात्र नहीं होगी। तदनुसार, डब्ल्यूबीपीडीसीएल, बंगाल एम्टा कोल माइन्स लिमिटेड के प्रवर्तकों में से एक होने के कारण, (सीएमएसपी अधिनियम के अनुसार एक पूर्व आवंटी) को नीलामी में शामिल होने के लिए अयोग्य घोषित किया गया।

सरकारी कंपनियों या निगमों को कोयला खानों के आवंटन का प्रावधान दूसरे अध्यादेश के साथ-साथ सीएमएसपी अधिनियम की धारा-5 में भी दिया गया है। दूसरे अध्यादेश के साथ-साथ सीएमएसपी अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार, पूर्व आवंटी को कोई आवंटन प्रदान नहीं किया जाएगा, अगर उस आवंटी ने निर्धारित अवधि में अतिरिक्त लेवी का भुगतान नहीं किया है। चूंकि डब्ल्यूबीपीडीसीएल पूर्व आवंटी नहीं था, इसलिए डब्ल्यूबीपीडीसीएल सीएमएसपी अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार आवंटन के माध्यम से खानें प्राप्त करने का पात्र था, इसलिए डब्ल्यूबीपीडीसीएल को खानें आवंटित की गर्इं।

यह भी आरोप लगाया गया है कि एक समूह की फर्मों ने सरिसाटोली खदान की नीलामी के लिए बोली लगाते समय सांठगांठ की थी और केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को ब्लॉक के लिए बोली लगाने से अवैध रूप से बाहर निकाल कर निजी कंपनी की संभावित प्रतिस्पर्धा को कम कर दिया।

निजी कंपनियों से मिलीभगत और कम प्रतिस्पर्धा के आरोप निराधार हैं। बोली दस्तावेज के अनुसार, दो या दो से ज्यादा कंपनियों द्वारा गठित संयुक्त उद्यम (जेवी) कंपनियां, जिसका एक सामान्य विशिष्ट अंतिम उपयोग (एसईयू) है, स्वतंत्र रूप से ई-नीलामी में शामिल होने के पात्र थे। यह प्रावधान बोली लगाने वालों को प्रारंभिक चरण में अपनी बोली को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने और एक ही कंपनी से बोलीदाताओं को उत्पादक-संघ बनने से प्रतिबंधित करने के लिए रखा गया था, इस प्रकार प्रतिस्पर्धा को संतुलित किया गया था। नीलामी की पद्धति को माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा। सरिसाटोली कोयला खदान के मामले में, 5 बोलीदाता ई-नीलामी (एफपीओ) में शामल होने के लिए तकनीकी रूप से योग्य थे और नीलामी में कुल 167 बोलियां प्राप्त हुई जो कि मजबूत प्रतिस्पर्धा की दृढ़ता का प्रदर्शन करता है।