BJP Foundation Day: भाजपा ने अब तक इन पार्टियों से गठबंधन किया है
बीजेपी ने अपने 41 साल के सियासी सफर में शून्य से शिखर तक पहुंचने में अपने वैचारिक विरोधी लेफ्ट जैसे दलों के साथ हाथ मिलाकर सियासी प्रयोग किया तो कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने के लिए जनता दल का साथ दिया और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेंस जैसे दलों के साथ भी हाथ मिलाने से गुरेज नहीं किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
बीजेपी वर्तमान समय में अपने सियासी इतिहास के सबसे कामयाबी और बुलंदी पर है, जहां केंद्र की सत्ता से लेकर देश के आधे से ज्यादा राज्यों में उसकी सरकार है. इस कामयाबी के पीछे पार्टी का लंबा और कड़ा संघर्ष रहा है. आजादी के कुछ ही दिनों बाद ही साल 1951 में जनसंघ की नींव पड़ी और आपातकाल के दौरान जनता पार्टी में तब्दील हो गई. आगे चलकर 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन हुआ.
अंत्योदय के सिद्धांत को आत्मसात कर, सेवा ही संगठन के मंत्र पर सदैव अग्रसर रहने वाले करोड़ों कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर कोटिश: नमन।#SthapnaDiwas pic.twitter.com/qGJjJu7c2K
— BJP (@BJP4India) April 6, 2021
इस तरह से बीजेपी ने अपने 41 साल के सियासी सफर में शून्य से शिखर तक पहुंचने में अपने वैचारिक विरोधी लेफ्ट जैसे दलों के साथ हाथ मिलाकर सियासी प्रयोग किया तो कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने के लिए जनता दल का साथ दिया और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेंस जैसे दलों के साथ भी हाथ मिलाने से गुरेज नहीं किया. ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी ने अपने राजनीतिक सफर में किसका साथ दिया और सत्ता के लिए किसका समर्थन लिया?
लेफ्ट के साथ पहला सियासी प्रयोग
आजादी के बाद दक्षिणपंथी राजनीति के तौर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी, लेकिन कांग्रेस की लोकप्रियता के आगे सफल नहीं हो सकी. 1975 में इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लागू किया तो जनसंघ सक्रिय होकर इसके खिलाफ आंदोलन में कूद पड़ा. जनसंघ के कई नेताओं को जेल जाना पड़ा. साल 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद देश में आम चुनाव की प्रक्रिया भी शुरु हो गई. जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया, जिसमें सोशलिस्ट, बागी कांग्रेसी धड़ा, दक्षिणपंथी तक शामिल हुए, लेकिन वामपंथी धड़ा दो हिस्सों बंटा रहा. लेफ्ट का एक धड़ा जनता पार्टी के साथ रहा है तो दूसरा धड़ा कांग्रेस के साथ.
जनता पार्टी का मकसद इंदिरा गांधी को परास्त करना था. इस चुनाव में जनता पार्टी को प्रचंड जीत मिली और मोरारजी देसाई पीएम बने. जनता पार्टी की सरकार को लेफ्ट पार्टियों में सीपीएम, आरएसपी, ऑल इंडिया फार्वर्ड ब्लॉक और पीजेंट्स वर्कर्स पार्टी जैसे दलों का समर्थन था. इस चुनाव में जनसंघ के आए नेताओं को अच्छी खासी कामयाबी मिली. अटल बिहारी वाजपेयी को मोरारजी कैबिनेट में विदेश मंत्री बनाया गया.
कैसे बनी भारतीय जनता पार्टी
इंदिरा गांधी के खिलाफ किया गया सियासी प्रयोग सफल नहीं रहा और 1979 में जनता पार्टी में चौधरी चरण के समर्थकों ने बगावत कर दी. इस तरह से मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई और कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बन गई. इसके बाद जनसंघ से आए नेताओं ने जनता पार्टी से खुद को अलग कर 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के नाम से सियासी पार्टी का का गठन किया. अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बने और 1984 के पहले चुनाव में पहले चुनाव में पार्टी को महज 2 सीटें मिलीं.
साल 1989 के लोकसभा चुनाव के साथ ही देश में असल मायने में गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू हुआ. कांग्रेस को रोकने के लिए पहली बार लेफ्ट, बीजेपी और जनता दल एक साथ आए. तत्कालीन राजीव गांधी सरकार बोफोर्स घोटाले से लेकर एलटीटीई और श्रीलंका सरकार के बीच गृह युद्ध तक कई मोर्च पर बुरी तरह से घिर चुकी थी. कांग्रेस छोड़कर जनता दल का गठन करने वाले वीपी सिंह विरोध का मुख्य चेहरा बनकर उभरे. 1989 में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, पर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
कांग्रेस ने विपक्ष में बैठने का फैसला लिया. जनता दल और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर नेशनल फ्रंट की सरकार बनी. यह पहली बार था जब कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने के लिए विचारों की विविधता के बावजूद भी दक्षिणपंथी पार्टी बीजेपी और वामपंथी पार्टियां एक साथ आई थीं. लेफ्ट और बीजेपी ने नेशनल फ्रंट सरकार को बाहर से समर्थन दिया और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे. हालांकि, 1991 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राममंदिर के लिए रथयात्रा निकाली थी, जिन्हें लालू यादव ने बिहार में गिरफ्तार कर लिया था. इसी के चलते बीजेपी ने जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके 11 महीने में ही वीपी सिंह के नेतृत्व वाली नेशनल फ्रंट की मिलीजुली सरकार ने सदन में विश्वास मत खो दिया और सरकार गिर गई.
बीजेपी ने बनाया अपना गठबंधन
नब्बे के दशक में गठबंधन की राजनीति अपने पूरे सियासी उफान पर आ गई. देश में सरकारें बनने और गिरने का सिलसिला शुरू हो गया. उसी दौर में 1996 में बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी को केंद्र में रखकर नारा दिया ‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी’. चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी. 1996 में पहली बार बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी सरकार 13 दिन ही चल सकी और बहुमत के अभाव में गिर गई.
साल 1998 में बीजेपी ने गठबंधन के साथी की तलाश शुरू की और तमाम क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर एनडीए का गठन किया. इसमें पंजाब में अकाली दल को साथ लिया तो बिहार में समता पार्टी को अपने साथ मिलाया. वहीं, शिवसेना पहले से ही महाराष्ट्र में उसके सहयोगी दल बन गई थी. दक्षिण भारत में तेलगु देशम पार्टी को अपने साथ मिलाया तो ओडिशा से बीजू जनता भी एनडीए के साथ खड़ी नजर आई. उत्तर प्रदेश में कांशीराम की बसपा को समर्थन देकर मायावती की सरकार बनाई.
बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को पहली चुनावी सफलता 1998 के लोकसभा चुनाव में मिली. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन 13 महीने ही सरकार चल सकी. इसके बाद बीजेपी ने 1999 में सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव भी लड़ा और फिर लगातार पांच साल तक चलाते भी रहे. इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
बीजेपी के साथ आए क्षेत्रीय दल-
इस दौरान बीजेपी ने ओडिशा में बीजेडी और आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम पार्टी और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉफ्रेंस के साथ मिलकर सरकार बना. ऐसे ही महाराष्ट्र में 1996 में शिवसेना को समर्थन देकर सरकार बनवाई तो पंजाब में अकाली दल को समर्थन देकर कांग्रेस को सत्ता में आने से रोका. हालांकि, 2014 में बीजेपी और शिवसेना ने चुनाव के बाद मिलकर सरकार बनाई, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस विराजमान हुए. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियां मिलकर लड़ी, लेकिन सीएम की कुर्सी को लेकर पेच फंस गया. इसके बाद यह दोस्ती टूट गई.
यूपी में मायावती से अनुप्रिया पटेल तक
उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 1991 में अपने दम पर सरकार बनाई थी, लेकिन 1992 के बाद दोबारा से अपने दम पर आने में उसे 14 साल का इंतजार करना पड़ा. ऐसे में तीन बार मायावती की बसपा के साथ मिलकर सरकार बनी, लेकिन अब अपने दम पर सूबे में सरकार चला रही है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल की अपना दल और ओम प्रकाश राजभर की भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन ओम प्रकाश राजभर बाद में अलग हो गए.
वहीं, बिहार में लालू प्रसाद यादव को सत्ता में आने से रोकने के लिए नीतीश कुमार को आगे किया. जार्ज फर्नांडीस और शरद यादव को अपने साथ मिलाया. इस तरह बीजेपी को बिहार में साल 2005 के विधानसभा चुनाव में पहली सफलता मिली. इसके बाद नीतीश कुमार और बीजेपी एक साथ रही, लेकिन 2014 के चुनाव से पहले यह दोस्ती टूट गई थी. हालांकि, 2017 में फिर से दोनों एक साथ आ गए और अभी सत्ता पर विराजमान हैं. वहीं, हरियाणा में जेजेपी के साथ मिलकर बीजेपी सरकार चला रही है.
बीजेपी-पीडीपी का गठबंधन
नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-नेशनल कॉफ्रेंस को सत्ता में आने से रोकने के लिए महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को समर्थन दिया था, जिसमें बीजेपी भी बकायदा सरकार में शामिल थी. हालांकि, इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भी नेशनल कॉफ्रेंस के साथ केंद्र में सहयोग लिया था. बीजेपी ने पीडीपी के साथ सरकार बनाने का फायदा यह रहा कि धारा 370 को हटाने की पठकथा भी इस दौरान लिख दी.
दक्षिण भारत में बीजेपी के साथी दल
बीजेपी का प्रभाव उत्तरी भारत में है और बहुत कोशिशों के बाद पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में अपना प्रभाव फैलाने के लिए वहां के क्षेत्रीय दलों के साथ हाथ मिलाया. कर्नाटक में बीजेपी ने जेडीएस को पहले समर्थन देकर सरकार बनाई और बाद में अपने दम पर सरकार बनाई. ऐसे ही आंध्र प्रदेश में टीडीपी से साथ लिया तो तमिलनाडु में पहले डीएमके को साथ लिया तो बाद में एआईडीएमके को अपना सहयोगी बनाया.
पूर्वोत्तर में बीजेपी ने बनाया गठबंधन
वहीं, पूर्वोत्तर में अपनी सियासी आधार बढ़ाने के लिए बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) का गठन किया. असम में बीजेपी ने असम गणपरिषद से लेकर बोडोलैंड पीपुल्स पार्टी के साथ पहले गठबंधन किया था. इस बार बीजेपी ने बीपीपी के बजाय यूपीपीएल के साथ हाथ मिलाया है. मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को समर्थन दे रही है तो नागालैंड में नगा पीपुल्स पार्टी (एनपीएफ़) और नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) को सहयोग देकर कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने का काम किया. ऐसे ही त्रिपुरा में कमल खिलाने के लिए बीजेपी ने आईपीएफटी के साथ हाथ मिलाया जबकि मणिपुर में एनपीपी के साथ सरकार बना रखा है. इस तरह से बीजेपी ने शून्य से शिखर तक पहुंचने के लिए छोटे से लेकर बड़े दलों को अपने साथ मिलाया.