यूपी विधानसभा की तैयारी, दलित है सवारी
भारत की राजनीति जातीय समीकरण पर आधारित नहीं हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इसका नमूना अभी से हमें यूपी में देखने को मिलने लगा है। यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव होना हैं। अखिलेश यादव सत्ता में दोबारा वापसी के लिए जाति के बिसात पर अन्य पार्टियों को मात देना चाहते हैं, इसके लिए वह अपनी जातिगत समीकरण को चुनाव के नजरिये से तैयार करने में जुट गए हैं।
अखिलेश यादव को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर आजकल बहुत याद आने लगे हैं। उन्होंने बाबा साहेब की जयंती पर ‘दलित दिवाली’ मनाने की अपील की और ‘बाबासाहेब वाहिनी’ बनाने की बात कही। उनकी इस चाल को मायावती के वोट बैंक में सेंध मारने की नजर से देखा जा रहा है।
भाजपा के राजनीतिक अमावस्या के काल में वो संविधान ख़तरे में है, जिससे मा. बाबासाहेब ने स्वतंत्र भारत को नयी रोशनी दी थी।
इसलिए मा. बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती, 14 अप्रैल को समाजवादी पार्टी उप्र, देश व विदेश में ‘दलित दीवाली’ मनाने का आह्वान करती है।#दलित_दीवाली
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) April 8, 2021
यूपी में दलित समीकरण-
यूपी में लगभग 22 फीसदी तक दलित वोटर हैं। पहले यह कांग्रेस के साथ थे, लेकिन मायावती के उदय के साथ ही कांग्रेस से यह वोट दूर चले गए। और मायावती की बसपा से जा मिले। लेकिन 2012 विधानसभा चुनाव के बाद से बसपा का ग्राफ नीचे गिरता चला गया है। 2017 में सबसे ज्यादा निराशाजनक प्रदर्शन रहा। उसके बाद से ही सपा दलित वोटरों को सहेजने की कवायद में लग गए।
उधर, यूपी कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के हाथ में आने के बाद दलितों को एक बार फिर अपनी तरफ जोड़ने की कोशिश में हैं।
यूपी के 22 फ़ीसदी दलित दो वर्गों में विभाजित है एक जाटव जो 12 प्रतिशत तक है, और दूसरा गैर जाटव। जाटव वर्ग बसपा के हार्डकोर समर्थक है।
वहीं, गैर जाटों लगभग 10 फ़ीसदी तक है जिसमें 50- 60 जातियां और उपजातियां है जो वोटिंग में अपनी पाला बदलती रहती है।
अब देखना यह है कि क्या अखिलेश यादव ‘बाबासाहेब वाहिनी’ बनाकर दलित वोटरों को लुभा पाते या मायावती अपनी पकड़ मजबूत रखती है। या एक बार फिर प्रियंका गांधी अपने पुराने मतदाताओं को आकर्षित कर पाती है?
By: Sumit Anand