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केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्य में एनईपी को हटाने को लेकर कर्नाटक सरकार के तर्क पर सवाल उठाये

मंत्री ने युवा पीढ़ी पर निर्णय के निहितार्थ और परिणामों के बारे में गंभीर चिंता जताई
केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज मीडिया से बात करते हुए राज्य में एनईपी को खत्म करने के कर्नाटक सरकार के फैसले पर गंभीर चिंता जताई। मंत्री ने इस फैसले से युवा पीढ़ी पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बात की।

उन्होंने पूछा कि क्या कर्नाटक सरकार औपचारिक शिक्षा के एक हिस्से के रूप में बचपन की देखभाल और शिक्षा का विरोध करती है। उन्होंने आश्चर्य जताया कि क्या राज्य सरकार नहीं चाहती कि बच्चे कक्षा 2 पूरी करने तक प्राथमिक साक्षरता और संख्यात्मक योग्यता हासिल कर लें। उन्होंने सवाल किया कि क्या राज्य सरकार कर्नाटक में भारतीय खिलौनों, खेलों, खेल-आधारित शिक्षा और ‘चेन्नेमाने’ के विरोध में है।

उन्होंने आगे पूछा कि क्या राज्य सरकार ने कन्नड़ और अन्य भारतीय भाषा में शिक्षा के साथ-साथ एनईईटी, सीयूईटी, जेईई जैसी परीक्षाओं को पारदर्शी तरीके से कन्नड़ में आयोजित करने का विरोध किया है।

उन्होंने सवाल किया कि क्या राज्य सरकार स्कूली शिक्षा में अध्ययन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में बहु-विषयक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कला और खेल के एकीकरण का विरोध करती है। उन्होंने आगे पूछा कि क्या राज्य सरकार नहीं चाहती कि कर्नाटक के युवा राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के माध्यम से विश्व स्तरीय अनुसंधान सुविधाओं का लाभ उठायें।

उन्होंने राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाया कि वह क्यों नहीं चाहती कि छात्र 21वीं सदी की शिक्षा के लिए प्रासंगिक नई पाठ्यपुस्तकों का उपयोग करते हुए 21वीं सदी की नई तथा उभरती प्रौद्योगिकियों और इनसे संबंधित जीवन कौशल के बारे में सीखें। उन्होंने कर्नाटक के छात्रों के सीखने के दौरान आय अर्जित करने के अवसरों पर चिंता व्यक्त की, जो गवाएं जा चुके हैं। श्री प्रधान ने आगे सवाल किया कि क्या राज्य सरकार नहीं चाहती कि डीआईईटी और एससीईआरटी को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में फिर से परिकल्पित करके शिक्षकों की क्षमता निर्माण को मजबूत किया जाए। यह एक ऐसा निर्णय है जो भविष्य में अपने आईटी कौशल के लिए जाने जाने वाले राज्य के सामूहिक भविष्य को प्रभावित करेगा।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को शिक्षा को हथियार नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि एनईपी पर इस तरह के वक्तव्य कर्नाटक के छात्रों के हितों से समझौता कर रहे हैं।