स्टॉकहोम जल सप्ताह 2023: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक ने ‘एकीकृत नदी बेसिन योजना और प्रबंधन के लिए सहयोगी नेटवर्किंग’ पर आयोजित ऑनलाइन सत्र की अध्यक्षता की
नमामि गंगे परियोजना में 4.5 अरब अमरीकी डॉलर की पर्याप्त वित्तीय सहायता शामिल है और आवश्यक प्रयासों ने गंगा नदी के जल की गुणवत्ता पर पहले ही सकारात्मक प्रभाव डाला है: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक ने आज स्टॉकहोम जल सप्ताह में ‘एकीकृत नदी बेसिन योजना और प्रबंधन के लिए सहयोगी नेटवर्किंग’ पर आयोजित ऑनलाइन सत्र की अध्यक्षता की, जिसमें नदी बेसिन प्रबंधन दृष्टिकोण को अपनाने पर एक संवादात्मक चर्चा हुई। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक श्री जी अशोक कुमार ने कहा कि नमामि गंगे परियोजना पांच महत्वपूर्ण स्तंभों पर केंद्रित है – निर्मल गंगा (प्रदूषण मुक्त नदी), अविरल गंगा (अप्रतिबंधित प्रवाह), जन गंगा (लोगों की भागीदारी), ज्ञान गंगा (ज्ञान एवं अनुसंधान आधारित गतिविधियां) और अर्थ गंगा (मानव-नदी अर्थव्यवस्था के सेतु के माध्यम से जुड़ते हैं)। उन्होंने बताया कि नमामि गंगे दुनिया के प्रशंसित नदी पुनर्जीवन कार्यक्रमों में से एक है और 13 दिसंबर, 2022 को मॉन्ट्रियल में जैविक विविधता पर हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीओपी 15) के दौरान इसे शीर्ष 10 “विश्व पुनर्स्थापना सर्वोत्कृष्ट” कार्यक्रमों में से एक के रूप में मान्यता प्रदान गई थी।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक ने कहा कि नमामि गंगे परियोजना में 4.5 अरब अमरीकी डॉलर की पर्याप्त वित्तीय सहायता शामिल है और आवश्यक प्रयासों ने गंगा नदी के जल की गुणवत्ता पर पहले ही सकारात्मक प्रभाव डाला है। इस संबंध में नदी के प्रदूषित हिस्सों का नवीनीकरण और नदी के पानी की गुणवत्ता में आए महत्वपूर्ण सुधार से पता चलता है। उन्होंने कहा कि गंगा डॉल्फिन, घड़ियाल और कछुए जैसी जलीय प्रजातियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। गंगा बेसिन में 93 लाख से अधिक भारतीय मेजर कार्प मछली (कतला, रोहू और मृगल) तथा 90,000 हिल्सा मछलियां पाली गई हैं। इसके अलावा, संरक्षण प्रयासों को अधिक बेहतर करने के लिए वन अधिकारियों के लिए क्षमता विकास कार्यक्रम भी शुरू किए गए हैं।
श्री कुमार ने शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद और जिला स्तर पर जिला गंगा समितियों के साथ राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की पांच-स्तरीय शासन संरचना का विवरण दिया। इस अवसर पर उन्होंने अर्थ गंगा का भी उल्लेख किया जो आर्थिक विकास, आजीविका उन्नति और नदी बेसिन में सामुदायिक भागीदारी की शुरुआत करती है। श्री अशोक कुमार ने कहा कि अर्थ गंगा के माध्यम से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का लक्ष्य संस्थागत निर्माण, शून्य-बजट प्राकृतिक खेती, एफबीओ का गठन, सार्वजनिक भागीदारी, अपशिष्ट जल एवं गाद का मुद्रीकरण, सांस्कृतिक विरासत तथा पर्यटन व आजीविका सृजन के माध्यम से सतत विकास प्रयासों का मार्गदर्शन और उपयोग करने के लिए लचीले संस्थानों की स्थापना करना है। उन्होंने अर्थ गंगा हस्तक्षेपों के प्रभावी कार्यान्वयन में जिला गंगा समितियों (डीजीसी) की भूमिका पर बल दिया। महानिदेशक ने बताया है कि हमने डीजीसी को पुनर्जीवित किया है और डीजीसी 4एम (मासिक, अनिवार्य, निगरानी व सूक्ष्म) प्रारंभ किया है। उन्होंने बताया कि इसके परिणामस्वरूप डीजीसी की नियमित बैठकों में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई है। श्री अशोक कुमार ने कहा कि अप्रैल 2022 से जुलाई 2023 के बीच कुल 1689 बैठकें आयोजित की गई हैं।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक ने प्रतिभागियों को बताया कि विश्वविद्यालयों के नेटवर्क के माध्यम से जागरूकता और युवा जुड़ाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर समारोह – नमामि गंगे: यूनिवर्सिटीज कनेक्ट – अप्रैल 2023 में आयोजित किया गया था। उन्होंने बताया कि इससे पहले विश्वविद्यालयों के साथ एक साल की वेबिनार श्रृंखला आयोजित की गई थी, जिसकी विषयवस्तु थी- ‘ युवा विचारों को प्रज्वलित करना, नदियों को पुनर्जीवित करना’। श्री कुमार ने कहा कि व्यापक समाधानों के लिए इंजीनियरिंग से सार्वजनिक भागीदारी की ओर एक परिवर्तनशील बदलाव किया जा रहा है।
नदी-शहर गठबंधन, एनएमसीजी के महानिदेशक ने कहा कि यह एक और अनोखी पहल है, जो भारत में नदियों के किनारे बसे शहरों को स्थायी शहरी नदी प्रबंधन के लिए चर्चा करने, विचार-विमर्श करने व अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए एक समर्पित मंच प्रदान करती है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन जीआईजेड जैसी संस्थाओं से विशेषज्ञता हासिल कर रहा है। उन्होंने बताया कि नदी बेसिन प्रबंधन इकाई की स्थापना पर रणनीतिक ध्यान देने के साथ संस्थानों को सशक्त करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। श्री कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल करके बेहतर तरीके से परिणाम आधारित योजनाओं एवं प्रभावी मार्गदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि सहयोगात्मक ढांचा एक नदी पुनर्जीवन मॉडल के विकास की सुविधा प्रदान करेगा, जिसका अनुकरण दुनिया भर की नदियों में किया जा सकता है।
गंगा पुनरुद्धार/भारत यूरोपीय संघ भागीदारी जीआईजेड इंडिया के सहयोग कार्यक्रम की प्रमुख सुश्री मार्टिना बुर्कार्ड ने नदी बेसिन प्रबंधन में अधिक सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गंगा बेसिन प्रशासन का वक्र पथ व्यापक गंगा बेसिन प्रबंधन योजनाओं के विकास से लेकर कार्यान्वयन-उन्मुख उप-बेसिन योजनाओं तक विभिन्न चरणों के माध्यम से विकसित हुआ है। सुश्री मार्टिना बुर्कार्ड ने कहा कि ये उप-बेसिन योजनाएं जिला-स्तरीय और व्यापक नदी बेसिन प्रबंधन रणनीतियों के साथ जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने अंतरराष्ट्रीय अनुभव के आधार पर एक गतिशील दृष्टिकोण को अपनाया है। सुश्री मार्टिना बुर्कार्ड ने कहा कि हितधारकों की भागीदारी इस दृष्टिकोण का आधार बनती है, जो चौतरफा प्रगति को सुविधाजनक बनाती है। उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण का केंद्रबिंदु जिले हैं और उन्हीं को सबसे आगे लाना है। मार्टिना ने बताया कि जिला गंगा योजनाओं का खाका तैयार करने के लिए जिलों तथा एनएमसीजी के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हुए एक जटिल ढांचा विकसित किया गया है। सुश्री मार्टिना बुर्कार्ड ने अपने संबोधन के अंत में इस तथ्य का उल्लेख किया कि किस तरह से सहकर्मी नेटवर्किंग एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में खड़ा है, जो विभिन्न डोमेन के हितधारकों को एकजुट करता है।
एप्लाइड साइंसेज विश्वविद्यालय, कोब्लेंज में जल संसाधन और पर्यावरण प्रबंधन संकाय के प्रोफेसर डॉर्टे जिग्लर ने सीमा पार से सहयोग के महत्व के बारे में चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि यह किस तरह से जल संबंधी चुनौतियों के समाधान में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरा है। प्रोफेसर डॉर्टे जिग्लर ने सीमाओं से परे जल की सार्वभौमिकता पर जोर दिया, क्योंकि नदी बेसिन भू-राजनीतिक सीमाओं से अलग हटकर ही हैं। उन्होंने कहा कि अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम देशों का परस्पर जुड़ाव जल संसाधनों की सुरक्षा में साझा जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। प्रोफेसर जिग्लर ने रयान नदी का उदाहरण देते हुए मछलियों के प्रवास पर गहरे असर पर भी प्रकाश डाला, जो कई शहरों को आवश्यक पेयजल उपलब्ध कराती है। उन्होंने कहा कि शहर जल उपचार और बुनियादी ढांचे जैसे बहुआयामी मुद्दों से जूझ रहे हैं, तो ऐसे में सहयोगात्मक समस्या-समाधान दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य हो जाता है। साथ ही, एक एकीकृत रणनीति को आगे बढ़ाने के प्रभावी मार्ग के रूप में पहचानने में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा किये जा रहे प्रयास प्रशंसनीय हैं।
जर्मनी में पर्यावरण, जलवायु, ऊर्जा और कृषि मंत्रालय के तहत हैम्बर्ग शहर में जल प्रबंधन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार श्री क्रिश्चियन एबेल ने देश के विभिन्न प्रांतों के भीतर जल कानूनों की जटिलता तथा जल क्षेत्राधिकार की सीमाओं का पालन नहीं करने के कारण उत्पन्न होने वाली प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने नदी बेसिन प्रबंधन समितियों की अवधारणा के बारे में विस्तार से बताया, जहां पर प्रान्त नदी बेसिन प्रबंधन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन, समन्वय और मूल्यांकन को सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक रूप से भाग लेते हैं। श्री क्रिश्चियन एबेल ने कहा कि नदी बेसिन प्रबंधन का एक मुख्य पहलू सक्रिय सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से तालमेल को बढ़ावा देना तथा विभिन्न क्षेत्रों के हितधारकों को इसमें शामिल करना है। उन्होंने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को समृद्ध बनाने और नदी पारिस्थितिकी तंत्र की समग्र समझ सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञों के साथ सहयोग आवश्यक है।
विश्व बैंक की प्रमुख जल विशेषज्ञ सुश्री कारमेन रोजा यी बतिस्ता ने नदी संबंधी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सफल नदी पुनर्जीवन कार्यक्रमों के लिए तीन महत्वपूर्ण कार्य प्रणालियों की रूपरेखा तैयार की, जिनमें ज्ञान-आधारित दृष्टिकोण को सशक्त करना, प्रभावी डेटा संचार एवं निगरानी और सरकारी संरचनाओं को मजबूत करना शामिल है। सुश्री कारमेन रोजा यी बतिस्ता ने स्थानीय हितधारकों को शामिल करने, साझा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने और अलग-अलग समूहों की अपेक्षाओं को पूरा करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
इस अवसर पर नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर की सुश्री शर्मी पालित ने गंगा प्रहरियों जैसे स्व-प्रेरित कैडरों के महत्व का उल्लेख किया, जो स्थानीय समुदायों को कार्यक्रम के क्षेत्र से बाहर होने के बाद भी नमामि गंगे जैसे मिशन के लक्ष्यों को बनाए रखने का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
श्री डी पी मथुरिया (ईडी-एनएमसीजी) ने सत्र का संचालन किया और सुश्री मार्टिना बुर्कार्ड (गंगा पुनरुद्धार/भारत यूरोपीय संघ भागीदारी जीआईजेड इंडिया को सहयोग कार्यक्रम की प्रमुख) ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। इस सत्र में 160 से अधिक लोगों ने भाग लिया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक ने 20 अगस्त को स्टॉकहोम जल सप्ताह के उद्घाटन दिवस पर ‘जल गुणवत्ता प्रबंधन: भारत से सीखे गए उदाहरण’ विषय पर आयोजित एक सत्र में भी भाग लिया।