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पान की दुकान, मजदूरी की, लकड़ी बीनकर सपना किया पूरा, देश को दिलाए मेडल्स

बर्मिंघम में भारत के लिए गोल्ड और बाकी मेडल लाने वाले भारतीय कोई इलीट घरों के नहीं बल्कि सामान्य परिवारों से आगे बढ़कर देश का मान दुनिया में बढ़ाया है। चाहे वह संकेत सरगर हों, अंचित शुली, मीराबाई चानू, गुरुराज पुजारी लगभग सभी साधारण और गरीब परिवारों से आते हैं।

मीराबाई चानू

मीराबाई चानू शनिवार को देश को पहला गोल्ड दिलाय था। वह भी बेहद ही गरीब परिवार से आती हैं। वह बचपन में लकड़ी बिनती थीं। और लकड़ी का गट्ठर बनाकर घर लाती थीं जिससे शुरू में ही उन्हें वजन उठाने की आदत पड़ गई थी। मीरा के भाई सौखोम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक बार लकड़ी का गट्ठर नहीं उठा पाए लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा लिया था और दो किमी चलकर घर आई थी। तब वह 12 साल की थी।

अंचित शुली

बर्मिंघम में रविवार को अंचित शुली ने 73 किग्रा भार वर्ग में वजन उठाकर भारत को तीसरा गोल्ड दिलाया। उनके संघर्ष की कहानी गरीबी से लड़कर आगे बढ़ने की है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अंचित खुद मजदूरी करते थे और उनके भाई भी 16-16 घंटे काम करके अपना पेट पालते हैं। अंचित ने अपनी सफलता का श्रेय मां पूर्णिमा, भाई आलोक और कोच को दिया है। उनके बड़े भाई ने छोटे भाई के सपने पूरे करने के लिए बीच में ही ट्रेनिंग छोड़ दी।

अंचित ने बड़े भाई को देखकर ही वेटलिफ्टिंग की शुरुआत की थी। लेकिन मां पूर्णिमा के लिए दोनों के डाइट के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल था। तब आलोक ने अपने छोटे भाई के लिए अपना करिअर बीच में ही छोड़ दिया। अलोक ने मीडिया को बताया है कि पिता के गुजर जने के बाद हम एक-एक अंडा और एक किलो मांस के लिए खेतों में मजदूरी करते थे।

आलोक ने बताया कि अंचित का पुणे के आर्मी इंस्टीट्यूट में चयन हो गया। वहां डाइट का खर्च ज्यादा आता था। उसकी डाइट पूरी नहीं हो पा रही थी इसलिए मैंने और ज्यादा काम करना शुरू कर दिया। सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक लोडिंग का काम करता था और शाम को 5 घंटे की पार्ट टाइम जॉब करने लगा था, साथ ही एग्जाम की तैयारी भी।

अंंचित ने कहा कि बंगाल से मैंने नेशनल और इंटरनेशनल स्तर तक टूर्नामेंट जीते। ऐसे खिलाड़ियों को राज्य सरकारों से मदद मिलती है लेकिन उन्हें बंगाल सरकार से कोई मदद नहीं मिली।

गौरतलब है कि बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में अंचित ने भारत को रविवार को तीसरा गोल्ड दिलाया इसके साथ ही भारत की झोली में अब तक कुल 6 मेडल्स आ चुके हैं।