बढ़ते प्रदूषण में अस्थमा के मरीज इन बातों का रखें ध्यान, सेहत रहेगी एकदम फिट
दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण का लेवल बढ़ रहा है. बढ़ते पॉल्यूशन की वजह से अस्थमा के मरीजों को भी काफी परेशाानी हो सकती है. ये डिजीज किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर सकती है. बच्चों और बुजुर्गों में इसके सबसे अधिक मामले देखे जाते हैं. ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, भारत में लगभग छह प्रतिशत बच्चों को ये बीमारी है. वहीं, सांस से संबंधित अलग-अलग बीमारियों से करीब 10 करोड़ लोग जूझ रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इस बीमारी की वजह से कुछ देशों में मौतें भी हो जाती है. समय पर अस्थमा का इलाज ना होने से ये क्रोनिक बीमारी बन जाती है और जानलेवा साबित होती है. प्रदूषण के बढ़ने से अस्थमा के मरीजों को कई परेशानियां हो सकती है. अगर मरीजों ने सेहत का ध्यान नहीं रखा तो अस्थमा का अटैक भी आ सकता है. डॉक्टर बताते हैं कि जिन इलाकों में प्रदूषण अधिक है वहां के लोगों में अस्थमा के केस सबसे ज्यादा देखे जाते हैं. दिल्ली और एनसीआर में इस बीमारी के मरीजों की संख्या काफी अधिक है.
पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रवि शेखर कहते हैं कि बताते हैं कि अस्थमा फेफड़ों की एक बीमारी है, जिससे पीड़ित मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है. इस डिजीज में सांस की नली में सूजन आ सकती है. इससे नली सिकुड़ने लगती है. बढ़ते प्रदूषण के संपर्क में आने से या फिर ठंड की वजह से अस्थमा ट्रिगर करता है. प्रदूषण, धूल और धूएं के संपर्क में आने से ये बीमारी बढ़ जाती है. गंभीर एलर्जी और जेनेटिक कारणों से लोगों को ये डिजीज हो जाती है.
बच्चों में इसके लक्षण दो से तीन साल की उम्र में ही देखने लगते हैं. हालांकि आठ से दस की आयु में ये बीमारी बच्चों में पूरी तरह उभरकर सामने आती है. तब पता चलता है कि बच्चा इससे पीड़ित हो गया है. डॉक्टर के मुताबिक, इस बदलते मौसम औरऔर बढ़ते प्रदूषण में अस्थमा मरीजों को अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए.