केंद्र में मंत्री का पद छोड़ा; लेकिन किसान आंदोलन में चर्चा में क्यों नहीं है अकाली दल
देश में नए कृषि कानूनों को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसान सड़क पर हैं। हरियाणा और पंजाब से आगे निकलकर इस आंदोलन की तपिश पुरे देश में देखने को मिल रही है। पिछले कई दिनों से हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डरों पर डटे हुए हैं। उनकी माने तो जब तक केंद्र सरकार इस बिल को वापस ले नहीं लेता वो डटे रहेंगे। कृषि कानूनों के विरोध में एनडीए में भी फूट पड़ गई थी। जब उसके सहयोगी दल के मंत्री ने इस बिल के खिलाफ बोलते हुए अपना त्याग पत्र दे दिया था।
अकाली दल जो भाजपा से अलग होकर पंजाब में अपनी जमीन तलाश रही है। उसके प्रमुख प्रकाश सिंह बादल ने हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफ़े को ऐतिहासिक बताते हुए इस फैसले को एक बड़ा त्याग बताया था। अकाली दल की इस कोशिश को पंजाब के कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों के प्रति नरम रुख अपनाकर मिटटी में मिला दिया।
कांग्रेस कर रही है किसानों का खुलकर समर्थन
किसानों के द्वारा किए जा रहे इस आंदोलन को कांग्रेस का खुलकर समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने ट्वीट करके इस बिल का विरोध किया है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार कृषि से जुड़े अध्यादेशों के खिलाफ एक तरफ विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर खुद को किसानों का हमदर्द बताने की कवायद पहले ही कर चुकी है और अब किसान आंदोलन के समर्थन में खुलकर खड़ी है।
मोदी सरकार ने किसान पर अत्याचार किए- पहले काले क़ानून फिर चलाए डंडे लेकिन वो भूल गए कि जब किसान आवाज़ उठाता है तो उसकी आवाज़ पूरे देश में गूंजती है।
किसान भाई-बहनों के साथ हो रहे शोषण के ख़िलाफ़ आप भी #SpeakUpForFarmers campaign के माध्यम से जुड़िए। pic.twitter.com/tJ8bry6QWi
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 30, 2020
पंजाब चुनाव में अब महज़ डेढ़ साल का समय बचा है ऐसे में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश कर रही अकाली दल को अपनी रणनीति बदलनी होगी।