एक मुस्लिम लड़की जेल में अपनी हाथों पर हिन्दू प्रेमी का लिखती रही नाम… आखिर में मिला न्याय
हम लोग एक दूसरे से प्यार करते हैं। मैं हिंदू हूं और वह मुस्लिम है। हमारी शादी नहीं हो सकती थी, इसलिए हमने अपने घरों से भागकर शादी की। इसके बाद पुलिस ने हमें गिरफ़्तार किया और मेरी पत्नी का मेडिकल चेकअप हुआ। उस चेकअप के बाद मुझे मालूम हुआ कि वह एचआईवी संक्रमित है. लेकिन मैं उससे प्यार करता था, इसलिए शादी की। मैं उसके बिना नहीं रह सकता।”
यह कहना है गुजरात के बनासकांठा के एक छोटे से गांव के मानूजी ठाकोर (बदला हुआ नाम) का। इन्होंने अपने प्यार की ख़ातिर दुनिया की एक नहीं सुनी और एचआईवी संक्रमित पत्नी को साथ ही रखा। मानूजी बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं वो बचपन से ही राजमिस्त्री के तौर पर काम करते हैं और उनके पास बहुत पैसा भी नहीं है।
रुख़साना ने बीबीसी को बताया, “मुझे पता ही नहीं था कि मैं प्यार में हूं। ईद के दिन जब मैं 17 साल की हुई तो मानूजी मेरे लिए नए कपड़े, चूड़ियां, जूते इस तरह लाए कि किसी को पता नहीं चला।”
“मैंने कपड़े, चूड़ियां और जूते पहन लिए। मानूजी ने अपने मोबाइल फोन से मेरी तस्वीरें लीं। हमलोग बेहद खुश थे. उस दिन मैंने गलती से पुराने कपड़े बैग में रख लिए और नए कपड़े पहनकर घर आ गई। मेरे पिता ने ढेरों सवाल पूछे और मेरी खूब पिटाई भी हुई। मैंने बता दिया कि ये कपड़े मानूजी ने दिए हैं। उस दिन के बाद मेरी ज़िंदगी नरक बन गई।”
रुख़साना ने बताया, “एक रात जब घर में सब लोग सो गए थे तब मानूजी मुझसे मिलने आए। उन्होंने मेरे चेहरे और हाथ पांव पर चोट के निशान देखे. उन्हें काफी दुख हुआ. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या तुम मुझसे शादी करोगी? मैंने हां कह दिया।”
हमने घर से भागकर शादी करने का फ़ैसला कर लिया। मैंने वकील से बात की। जब रुख़साना 18 साल एक महीने की हुई तो वह अपने जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड के साथ मेरे पास आ गई। अक्टूबर 2019 में हमलोगों ने गांव से भागकर कोर्ट में शादी कर ली।”
शादी के बाद बढ़ गई मुश्किलें
मानूजी ने बताया, “इसके बाद मुश्किलें शुरू हो गईं। रुख़साना के पिता और रिश्तेदारों ने हमें सताना शुरू कर दिया। रुख़साना के परिवार वाले हमारे भाई बहनों से लड़ने पहुंच जाते थे। गांव में बड़ा हंगामा हुआ. मैंने अपना फोन बंद कर लिया था। हम अलग-अलग गांवों में छिपते फिर रहे थे. हमने सोचा था कि जब मामला शांत होगा तो गांव जाएंगे, लेकिन यह मामला बढ़ता ही जा रहा था. हमने इस दौरान दीवाली और ईद भी मनायी।”
रुख़साना ने बताया, “इसके बाद लॉकडाउन हो गया। सब कुछ बंद हो गया। हमारे पास कोई काम नहीं था। लेकिन हमारे लिए प्यार सबकुछ था. हमलोग एक गांव से दूसरे गांव भटकते रहे। कोई भी काम करके कुछ पैसे कमा रहे थे। उधर मानूजी के परिवार पर दबाव काफ़ी बढ़ गया था।”
रुख़साना ने बताया, “मुझसे मानूजी की स्थिति देखी नहीं जा रही थी। वे कोरोना के दौर में काम की तलाश में जाते थे ताकि हम दोनों कुछ खा सकें। आख़िर मैंने ही पुलिस में रिपोर्ट करने का फ़ैसला लिया। मानूजी इसके पक्ष में नहीं थे लेकिन मैं पुलिस स्टेशन गई। मैं वयस्क थी। इसलिए हमारी शादी मान्य थी और मानूजी के परिवार वाले मुझे अपनाने को तैयार थे लिहाज़ा मुझे कोई चिंता भी नहीं थी।”
जब रुखसाना हो गई एचआईवी पॉज़िटिव
रुख़साना ने बताया, “जैसे ही मैं पुलिस स्टेशन पहुंची, पुलिस ने मेरा मेडिकल टेस्ट कराया और तब पता चला कि मैं एचआईवी संक्रमित हूं। मैं तो बुरी तरह से टूट गई। मुझे डर था कि कहीं मानूजी भी तो एचआईवी संक्रमित नहीं हैं। उनका भी टेस्ट हुआ। डॉक्टरों ने बताया कि वो एचआईवी से संक्रमित नहीं हैं। तब जाकर मुझे राहत मिली।”
गुजरात हाईकोर्ट में मानूजी का केस लड़ने वाले वकील अपूर्व कपाड़िया ने बीबीसी को बताया कि यह विचित्र मामला था। मानूजी एचआईवी निगेटेव थे लेकिन मेडिकल अफ़सरों ने आशंका जताई थी कि छह महीने के अंदर उन्हें संक्रमण हो सकता है।
“मानूजी को अदालत की ओर से भी पूछा गया। उन्हें कहा गया कि रुख़साना को एचआईवी है। ऐसे में भविष्य में यह आपको भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में वो क्या शादी के अपने फ़ैसले पर विचार करना चाहेंगे। मानूजी ने अदालत को बताया कि वे शादी में रहना चाहेंगे।”
गुजरात हाईकोर्ट की न्यायाधीश सोनिया गोकनी ने इन दोनों प्रेमियों की बातें सुनने के बाद इन्हें एक साथ रहने और शादीशुदा ज़िंदगी जीने की अनुमति दे दी।
अदालत ने झूठे प्रमाण पत्र पेश करने के चलते रुख़साना के पिता पर कार्रवाई का निर्देश भी दिया है।
रुख़साना को अदालत से बाहर लाते हुए मानूजी ने बीबीसी गुजराती से कहा, “मैं बहुत पढ़ा लिखा नहीं हूं लेकिन मैंने कहीं पढ़ा था कि इंसान को वही मिलता है जो उसकी नियति में होता है। जब मैं जेल में था तब रुख़साना का नाम हर दिन हाथ पर लिखा करता था, यही वजह है कि वह मुझे मिल गई।”
Read Also: व्हाट्सएप्प पर सुप्रीम कोर्ट का करारा जवाब : लोगों की निजता पैसों से ज्यादा अहम?