आखिर हम प्रपोज ही क्यों करते हैं ?
सुनो न ‘मानवी’ प्रपोज डे वाला कॉसेप्ट मुझे विचलित करता है, हम दोनों एक दूसरे के आँखों में देख क्यों नहीं लेते। नहीं राकेश, ऐसा करने से मुहब्बत आँखों से छलक जाता है। फिर चलो एक दूसरे को स्पर्श कर लेते है, हमने हमेशा से सूना है मुहब्बत एक खुबसुरत एहसास है, भला इसे महज ढाई अक्षरों के शब्दों में कैद कैसे कर सकते है …
sachin sarthak