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अव्यवस्था के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियों को एकजूट होकर सड़क पर उतरना होगा; सामना

हाल ही में पांच रा़ज्यों के विधानसभा संपन्न संपन्न हुए है। इन सभी राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। शिवसेना ने कांग्रेस के इसी प्रदर्शन में सुधार हेतु कांग्रेस का पक्ष लेते हुए प्रमुख विपक्षी पार्टियों को केंद्र के खिलाफ एकजुट होने का अनुरोध अपने मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय के जरिए किया है। संपादकीय में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को निराशाजनक तो बताया गया है लेकिन साथ ही बंगाल, असम और पुडुचेरी में मुख्यमंत्री पद पर विराजमान होने वाले तीनों नेताओं को पूर्व कांग्रेसी होने की बात कही हैं।

शिवसेना ने कहा, “पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, असम में हेमंत बिस्व सरमा, पुडुचेरी में एन रंगास्वामी मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए परंतु ये तीनों पूर्व कांग्रेसी हैं। उन्हें कांग्रेस पार्टी से बाहर जाना पड़ा परंतु जहां गए वहां उन्होंने अपना अस्तित्व अधिक दीप्तिमान किया। ममता बनर्जी ने मोदी-शाह जैसी बलाढ्य सत्ता से संघर्ष करके विजय हासिल की। उनकी जड़ कांग्रेस की ही है। ममता बनर्जी द्वारा कांग्रेस का त्याग करते ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का ढांचा ढह गया।”

सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा के रूप में जिम्मेदारी निभाती रहेंगी।

सामना में सोनिया गांधी द्वारा पांचो राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली पराजय पर कही बात को भी लिखा गया है। जिसमें सोनिया गांधी के कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे समेत पार्टी को गत वैभव फिर से दिलाने वाली बात कही है।
सामना में आगे कहा गया है कि श्रीमती गांधी आज भी कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं इसलिए उनकी बात को गंभीरता से लेना होगा। देश में कोरोना संकट की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को लगातार तीसरी बार टालना पड़ा। इसलिए सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा के रूप में जिम्मेदारी निभाती रहेंगी।
हालांकि, पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने पर भी जोर दिया है। सामना में कहा गया है कि पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष की आवश्यकता है, ऐसा मत कांग्रेस के ‘जी-23’ समूह ने बार-बार व्यक्त किया। पार्टी अध्यक्ष न होने के कारण लोगों के समक्ष कैसे जाएं? ऐसा सवाल इस बागी समूह ने उठाया। परंतु अध्यक्ष हो या न हो, पार्टी तो चलती ही रहती है। जमीनी कार्यकर्ता पार्टी के परचम को आगे बढ़ाते रहते हैं।

“आज राहुल गांधी का संघर्ष एकाकी हैं”

सामना में राहुल गांधी के संघर्ष के बारे में भी कहा गया है। सामना के संपादकीय में लिखा, ‘कांग्रेस किसी दौर में स्वतंत्रता और संघर्ष थी। आज राहुल गांधी का संघर्ष एकाकी है। राहुल गांधी अपना काम स्वयं से करते हैं। उन पर ओछे शब्दों में काफी फब्तियां कसी जाती हैं, परंतु वह अपने मुद्दों पर दृढता से लड़ते रहते हैं। कोरोना काल में राहुल गांधी कई मुद्दे उठाए, लेकिन इस पर भी सरकारी पक्ष द्वारा घोर आलोचना की गई, परंतु टीकाकरण से लेकर आगे अन्य कई मुद्दों पर सरकार ने अंततः राहुल गांधी की ही बातों को स्वीकार किया। आज राहुल गांधी ही कांग्रेस के सेनापति हैं। सरकार पर उनके द्वारा किए गए हमले अचूक हैं।’
आगे कहा, ‘बेरोजगारी, आर्थिक संकट, महंगाई, कोरोना से लगे शवों के अंबार के कारण केंद्र सरकार की लोकप्रियता घटने लगी है. ऐसे समय में देशभर की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को ट्विटर की शाखाओं पर से उतरकर मैदान में आने की आवश्यकता है। मैदान में उतरना मतलब कोरोना काल में भीड़ जुटाना नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछकर अव्यवस्था से छुटकारा पाना है।’