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अम्बेडकर जयंती: जानिए बाबा साहेब की कुछ अनोखी बातें।

भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो चुका था। कांग्रेस पार्टी आजाद भारत में सरकार बनाई। स्वतंत्र भारत में केंद्रीय मंत्रिमंडल का गठन किया गया था, जिसमें इस शख्स को प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री बनाया गया। उस शख्स ने देश की उन्नति में और आजाद भारत के संविधान गठन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जिन्हें 29 अगस्त 1947 को, स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। जिन्हें इस अद्वितीय कामों के लिए मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया, वो कोई और नहीं बल्कि संविधान जनक के नाम से पहचाने जाने वाले बाबासाहेब आंबेडकर थे। जिनकी जयंती आज यानी 14 अप्रैल को समूचे देश में मनाई जाती है।

प्रारंभिक जीवन
बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में कबीर पंथ को मानने वाले मराठी मूूल परिवार में हुआ था। हालांकि, उनका परिवार वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव से ताल्लुक रखता था। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो तब अछूत मानी जाती थी, इस कारण उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ा था।

भारतीय सेना की महू छावनी सेवारत पिता का नाम रामजी सकपाल था।

भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम भिवा, भीम, भीमराव था। चूंकि, कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, इसलिए उनके पिता ने आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से संबंधित आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज कराया। बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव का आंबेडकर विशेष स्नेह होने के कारण उनके नाम से ‘आंबडवेकर’ हटाकर अपना सरल ‘आंबेडकर’ उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं।

भीमराव अंबेडकर की शादी काफी छोटी उम्र में हो गई थी। उनकी पत्नी का नाम रमाबाई आम्बेडकर था।
हालांकि, तबियत खराब होने से रमाबाई की मृत्यु हो गई, तब भीमराव अंबेडकर ने दूसरी शादी डॉ॰ सविता आम्बेडकर से की।

प्रारंभिक शिक्षा

आंबेडकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल से की। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए। भीमराव के इस सफलता पर अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया क्योंकि तब इस प्रकार की सफलता अछूतों में असामान्य बात थी। अंबेडकर के इस अद्वितीय परिणाम के एवज में उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी ‘बुद्ध की जीवनी’ उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए।

उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा मुंबई के एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे।

उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की। और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे।
लेकिन पिता की तबीयत खराब होने के कारण काम छोड़ वापस घर लौटना पड़ा।
2 फरवरी 1913 को पिता के निधन के बाद उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। इस दौरान उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की।

उन्होंने 1916-17 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री भी हासिल किया।

राजनीतिक जीवन
आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया, जिसका निर्वहन बहुत गंभीरतापूर्वक किया।

1936 में, उन्होंने ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती, और उन्हें बॉम्बे विधान सभा के विधायक दल का नेता चुना गया, वो 1942 तक इस पद पर रहे और विपक्षी नेता की भूमिका अदा की।

आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
वह मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक होने के बाद भी भारत-पाकिस्तान बंटवारे का समर्थन किया। उनका इस पर तर्क था कि यदि जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा को पनपने से रोकना है तो हमें हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर पाकिस्तान का गठन कर देना चाहिए।

उन्होंने पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद “थॉट्स ऑन पाकिस्तान” नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसमें अपने सभी पहलुओं पर “पाकिस्तान” की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना भी की है।

उन्होंने गांधी और कांग्रेस के बारे में भी लिखा है।

उनके द्वारा लिखी किताब “व्हॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स?” (काँग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया?) में उन्होंने गांधी और कांग्रेस दोनों पर तीखा हमला किया, उन पर ढोंग करने का आरोप भी लगाया है।

15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने आम्बेडकर को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री और 29 अगस्त 1947 को, आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।

हालांकि, 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी।हालांकि, प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया, लेकिन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी।

हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के कारण कांग्रेस पार्टी से अलग होकर आम्बेडकर ने निर्दलीय बॉम्बे उत्तर से 1952 का पहला भारतीय लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उनके पूर्व सहायक और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलकर से हार गए। 1952 में आम्बेडकर राज्य सभा के सदस्य बने। उन्होंने भंडारा से 1954 के उपचुनाव में फिर से लोकसभा में आने के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन वे तीसरे स्थान पर रहे (कांग्रेस पार्टी जीती)। 1957 में दूसरे आम चुनाव के समय तक आम्बेडकर की मृत्यु हो चुकी थी।

हालांकि, अपनी मृत्यु तक संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के सदस्य रहे।

अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। उनमें से ही एक पुस्तक था “हू वेयर द शुद्राज़”, जिसके उत्तरकथा द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (अछूत: छुआछूत के मूल पर एक शोध) में आम्बेडकर ने हिंदू धर्म को कोसा है। उन्होंने कहा है,

हिंदू सभ्यता …. जो मानवता को दास बनाने और उसका दमन करने की एक क्रूर युक्ति है और इसका उचित नाम बदनामी होगा। एक सभ्यता के बारे मे और क्या कहा जा सकता है जिसने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को विकसित किया जिसे… एक मानव से हीन समझा गया और जिसका स्पर्श मात्र प्रदूषण फैलाने का पर्याप्त कारण है?

उन्होंने दक्षिण एशिया के इस्लाम की रीतियों की भी बड़ी आलोचना की है। मुस्लिमो में व्याप्त बाल विवाह की प्रथा और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घोर निंदा की है। उन्होंने कहा,

“बहुविवाह और रखैल रखने के दुष्परिणाम शब्दों में व्यक्त नहीं किये जा सकते जो विशेष रूप से एक मुस्लिम महिला के दुःख के स्रोत हैं। जाति व्यवस्था को ही लें, हर कोई कहता है कि इस्लाम गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए, जबकि गुलामी अस्तित्व में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन मिला है। जबकि कुरान में निहित गुलामों के न्याय और मानवीय उपचार के बारे में पैगंबर द्वारा किए गए नुस्खे प्रशंसनीय हैं, इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस अभिशाप के उन्मूलन का समर्थन करता हो। अगर गुलामी खत्म भी हो जाये पर फिर भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था रह जायेगी।”

भारतीय संविधान के जनक बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को Newsexpress की पूरी टीम की तरफ से जन्मदिन मुबारक।

By: Sumit Anand