मंत्रिमंडल ने गहरे समुद्र अभियान को स्वीकृति दी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘गहरे समुद्र मिशन’ को बुधवार को अनुमति प्रदान कर दी, जिससे समुद्री संसाधनों की खोज और समुद्री प्रौद्योगिकी के विकास में मदद मिलेगी । केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह जानकारी दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता की हुई आर्थिक मामलों संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को अनुमति दी गई।
बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संवाददाताओं को बताया कि गहरे समुद्र के तले एक अलग ही दुनिया है। पृथ्वी का 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्र है । उसके बारे में अभी बहुत अध्ययन नहीं हुआ है।
उन्होंने बताया कि सीसीईए ने ‘‘गहरे समुद्र संबंधी मिशन’’ को मंजूरी प्रदान कर दी है । इससे एक तरफ ब्लू इकोनॉमी (महासागर आधारित अर्थव्यवस्था) को मजबूती मिलेगी वहीं समुद्री संसाधनों की खोज और समुद्री प्रौद्योगिकी के विकास में मदद मिलेगी।
एक सरकारी बयान के अनुसार, इस अभियान को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए पांच वर्ष की अवधि की अनुमानित लागत 4,077 करोड़ रुपए होगी। तीन वर्षों (2021-2024) के लिए पहले चरण की अनुमानित लागत 2823.4 करोड़ रुपये होगी।
इसमें कहा गया है कि गहरे समुद्र परियोजना भारत सरकार की नीली अर्थव्यवस्था पहल का समर्थन करने के लिए एक मिशन आधारित परियोजना होगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइएस) इस बहु-संस्थागत महत्वाकांक्षी अभियान को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा।
इस मिशन के तहत गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास किया जायेगा । इसमें तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी। बहुत कम देशों ने यह क्षमता हासिल की है।
मध्य हिंद महासागर में 6,000 मीटर गहराई से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के खनन के लिए एक एकीकृत खनन प्रणाली भी विकसित की जाएगी।