Delhi Special: दूसरों की जिंदगी के लिए लड़ी “आशा वर्कर्स”, लेकिन केजरीवाल सरकार ने उन्हें ही मरने को छोड़ दिया
देश के एक एक राज्य में, राज्य के एक एक शहर में और शहर के एक एक मोहल्ले में दिन रात अपनी नींद खराब कर आपके स्वास्थय का ध्यान रखने के लिए एक वारियर काम करती है। जिसे पूरा देश आशा वर्कर के नाम से जानता है। मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ( Accredited Social Health Activist) जिसे संक्षेप में आशा भी कहते हैं, भारत में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रायोजित जननी सुरक्षा योजना से संबद्ध एक ग्रामीण स्तर की कार्यकर्त्री है। आशा का कार्य स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र के माध्यम से गरीब महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सेवाएँ प्रदान करना है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) योजना आशा के माध्यम से क्रियान्वित हो रही है। वैसे तो आशा वर्कर हमारे देश के लिए बहुत काम करती हैं, लेकिन उनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
1.अपने क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य सेवा संबंधी आवश्यकताओं की जानकारी देना।
2. प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना
3. उपलब्ध सेवाओं के उपभोग के लिए परामर्श देना
4. ग्राम स्वास्थ्य योजना बनाने में सहायता करना
5. लोगों को सफाई और स्वच्छता का महत्त्व समझाना
6. स्वच्छ पेयजल और शौचालय बनवाने में मदद करना
7. जटिल केस को सन्दर्भित करने और उन्हें स्वास्थ्य सेवा केन्द्र पहुँचाने में मदद करना प्रमुख कार्यों में से एक हैं।
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आपको ये कार्य इसलिए बताए गए ताकि आपको इस खबर को समझने में आसानी हो, और जानकारी को सिर्फ पढ़े नहीं बल्कि समझें।
इस योजना को 2005 में आरंभ की गया। फिलहाल पूरे देश में लगभग 14 लाख आशा वर्कर्स हैं, और इस बात को ज्यादा समय नहीं बीता जब दिल्ली, यूपी समेत हरियाणा और मध्यप्रदेश में भी आशा वर्कर्स ने अपनी कई मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया। बाकी राज्यों ने तो जल्द ही आशा वर्कर्स की मागों को कबूल कर प्रदर्शन को शांत करवा लिया, लेकिन दिल्ली को इसमें टाइम लग गया। लेकिन ऐसा क्यों? आइए बताते हैं।
देश के लिए 2019-20 का दौर भयावह रहा है। जब पूरा देश घर में बंद रहता था तब यही आशा वर्कर थीं जो दिन-रात एक करके एक-एक कीमती जान बचाने के लिए आगे आईं। लेकिन देश की जनता को कोरोना जैसी महामारी से बचाते बचाते ना जाने कितनी आशा वर्कर खुद भी इसकी चपेट में आ गई।
कोविड-19 महामारी में आशा वर्कर्स ने कोविड जांच, मरीज का होम आइसोलेशन, हॉस्पिटल पहुंचाने, एंबुलेंस अरेंजमेंट, मरीज के घर पर दवाइयां पहुंचाने, कंटेनमेंट जोन में सर्वे आदि सभी काम किये, 18-18 घण्टे तक काम किया। लेकिन उनके स्वास्थ्य की कोई चिंता नहीं की गई, और कोविड में सैकड़ों आशाओं की जान चली गई।
Who took Noormah's life?
ASHA worker Noormah Naaz was from Delhi, lost her life while performing her duty during this corona period. She could not get oxygen on time, neither hospital beds, nor her family got any compensation till now. #Rights4ASHAs— sucheta de (@sucheta_ml) June 30, 2021
हर राज्य में इनकी सुरक्षा के लिए सरकार जहां कठोर कदम उठा रही थी, वहीं दिल्ली सरकार मानों पूरी तरह से हर चीज के लिए सिर्फ केंद्र सरकार पर ही आश्रित हो गई। सीएम केजरीवाल के इस रवैये को लेकर आशा वर्कर का गुस्सा चरम पर था। कोरोना महामारी के दौरान आशा वर्कर्स के साथ हुई परेशानियों पर आज तक ने भी एक रिपोर्ट तैयार की थी।
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साल 2021 की बात करें तो कोरोना के दौर के चलते अपनों को और अपने साथियों को खोने के बाद आशा वर्कर्स ने दिल्ली सरकार के खिलाफ आंदोलन किया। जिसमें 7 अप्रैल को आंदोलन के दबाव में दिल्ली सरकार को कुछ राहत के लिए घोषणा करनी पड़ी, लेकिन उनको भी प्रशासन ने ठीक से लागू नहीं किया। वहीं शिकायत करने पर आशाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया।
दिल्ली में आशा वर्कर्स इतनी परेशान थी कि उन्हें लगातार सीएम आवास के बाहर धरना प्रदर्शन करना पड़ा तब जाकर ये लड़ाई 2022 में ठंड़ी पड़ी। दिल्ली के सीएम केजरीवाल के कानों तक इन वर्कर्स की आवाज गई और आशा वर्कर्स की कुछ मांगो को माना गया।