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बच्चों को ऑनलाइन गैम और इंटरनेट की बढ़ती लत से बचाने के लिए करें यह काम, पढ़िये पूरी जानकारी

आज के समय में मोबाइल लोगों की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा मजबूरी बन गया है। इसके साथ ही जो कसर रह जाती है उसे इंटरनेट पूरा कर देता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों और यूथ पर पड़ रहा है। कई रिसर्च में यह पाया गया है कि कई लोग मोबाईल पर रोज़ाना करीब 5-6 घंटे तक बिताते हैं। हाल ही में जारी स्टेट ऑफ मोबाइल रिपोर्ट में दावा किया गया है कि विश्व में मोबाइल यूजर्स ने 2021 में रिकॉर्ड 3.8 लाख करोड़ घंटे बिताए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लोग रोजाना औसतन 4.8 घंटे मोबाइल फोन पर बिता रहे हैं। यह आंकड़ा हर देश के हिसाब से अलग-अलग है।

जैसे-जैसे इंटरनेट का चलन तेजी से बढ़ा वैसे-वैसे लोगों को कई प्रकार की सुविधाएं भी मिली हैं, लेकिन कई रिसर्च मे यह भी पाया गया है कि बहुत से लोग इंटरनेट का इस्तेमाल गलत चीजों में कर रहे हैं। आज का यूथ ऑफलाइन किताबों और पढ़ाई से ज्यादा समय फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल ऑनलाइन गेमिंग और सोशल मीडिया पर बिताता है।

इसका दुष्प्रभाव यह देखने को मिला कई जगह कुछ बच्चों ने ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण अपने माता-पिता के रोकने टोकने या मोबाइल न देने की वजह से परेशान होकर आत्महत्या कर ली या अपने माता या पिता को ही मौत के घाट उतार दिया। बच्चों ने यह सिर्फ और सिर्फ ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में ऐसा किया। इसका ताज़ा उदाहरण लखनऊ में एक बेटे के द्वारा PUBG खेलने से मना करने पर अपनी ही मां की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके अलावा देश और दुनिया में कई अन्य ऐसे लोग भी हैं।


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सबसे ज्यादा 11 से 18 साल के बच्चों पर बुरा प्रभाव

King George’s Medical University (KGMU) में प्रोब्लेमेंटिव यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (PUT) क्लीनिक चलाने वाले डॉ. पवन गुप्ता कहते है कि आज के समय में ऑनलाइन गेमिंग अब एक गंभीर डिसऑर्डर बन चुका है। इस को लेकर चिकित्सा विश्वविद्यालय में अलग से इसके लिए शुक्रवार को OPD चलाई जा रही है। बहुत ज्यादा गेमिंग से मरीज को नशे जैसी लत होती है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इसकी चपेट में सबसे ज्यादा नौनिहाल आ रहे हैं। रिसर्च में पाया गया है कि 11 से 18 साल के बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है। बहुत ज्यादा ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चे को अगर गेम न खेलने दी जाए तो उनमें घबराहट होने लगती है। इस कारण कई बार आत्मघाती और हत्यारे भी बन जाते हैं।

अमेरिका जैसे हालात होने की संभावना
King George’s Medical University (KGMU) के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि, “हमें बच्चों को समझाना होगा के जीवन में फैमिली और टीचर्स का रोल अहम होता है। ऑनलाइन गेम्स के चक्कर में बच्चे लोगें से मिलना जुलना कम कर रहे हैं। हमें यूएस के हालातों से सीखना होगा। वहां गेमिंग के एडिक्शन में मर्डर की घटनाएं बढ़ी हैं। समय पर हम सतर्क नहीं हुए तो अमेरिका जैसे हालात भारत में भी देखने को मिलेंगे।“

हांलाकी एक सर्वे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरी अमेरिका और यूरोप की तुलना में एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के मामले ज्यादा बढ़े हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की ओर से इंटरनेट गेमिंग के एडिक्शन बढ़ते मामलों को लेकर रिसर्च है। अब तक ऑनलाइन गेंमिग को बीमारियों की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया, लेकिन दुनियाभर में तेजी से बढ़ते मामलों को देखकर विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइल गेमिंग की लत को बीमारी किसी बीमारी का रूप भी माना जा सकता है।

ऐसे पहचाने बच्चे को गेमिंग की लत है

बच्चों में चिड़चिड़ापन रहना या गुस्सा करना।
डेली रुटीन का बिगड़ना।
बच्चों का ठीक से किसी भी काम को नहीं कर पाना।
उनका पढ़ाई में मन ना लगना या पढ़ाई को ठीक प्रकार से न कर पाना।
पेरेंट्स,दोस्तों या लोगों मिलना-जुलना कम कर देना।

इन बातों का ध्यान रख आप गेमिंग की लत छुडवा सकते हैं

सबसे बेहतर ज्यादा ये ज्यादा बच्चों को गेमिंग से बचाना या मोबाइल और इंटरनेट टाइम को फिक्स करना।
रात में गैजेट्स एक्सेस पर रोक लगाएं। रिसर्च में पाया गया है कि रात के समय में को ज्यादा घातक माना गया है, इसलिए ऐसे समय हमेशा सतर्कता बरतने की जरूरत।
अगर बच्चे किसी अन्य गंभीर बीमारी की चपेट में हैं तो उसका इलाज।
इलाज से ज्यादा असर उनकी जीवनशैली में सुधार करने पर होगा।
बच्चों की आउटडोर एक्टिविटीज करवाना।
बच्चों को उनकी हॉबी पर फोकस करवाना।
बच्चों की हरकतों को पर नज़र रखना।
पेरेंट्स का इंटरनेट को कंट्रोल करना जरूरी।
साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट या काउंसिलिंग करवाना।