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क्या आप जानते हैं कैसे बनता है एल्युमीनियम फॉइल, जिसमें इतनी आसानी से रैप कर लेते हैं खाना

हमारे किचन में ऐसी कई चीज़ें होती हैं जिन्हें रोज़ाना इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन कई बार उनके बनने के तरीके और इस्तेमाल के बारे में पता नहीं होता है। वैसे तो एल्युमीनियम के इस्तेमाल को सेहत के लिए सही नहीं माना जाता है, लेकिन हम खाना पकाने के लिए एल्युमीनियम के बर्तन और खाना पैक करने के लिए एल्युमीनियम फॉइल का इस्तेमाल करते हैं।

देखा जाए तो एल्युमीनियम का इस्तेमाल हमेशा ही इंडस्ट्रियल कामों के लिए होता है, लेकिन हम घरों में इतना एल्युमीनियम क्यों इस्तेमाल करते हैं ये तो उसके रूप पर निर्भर करता है। तो चलिए आज बात करते हैं एल्युमीनियम फॉइल की और कैसे इसे बनाया जाता है।

कैसे बनता है एल्युमीनियम फॉइल?

1. जैसा कि नाम बता रहा है ये एल्युमीनियम से ही बनता है और इसका प्रोसेस पूरी तरह से मशीनों पर निर्भर करता है।

2. एल्युमीनियम फॉइल के प्योर एल्युमीनियम नहीं बल्कि एलॉय ( alloy) वाला एल्युमीनियम यानि मिक्स मेटल इस्तेमाल किया जाता है।
पर इसमें भी 92-99 प्रतिशत तक एल्युमीनियम हो सकता है और इसीलिए कई एक्सपर्ट्स अब इसके इस्तेमाल को सही नहीं ठहराते।

3. सबसे पहले मेटल को पिघलाया जाता है और उसके बाद एक खास मशीन में फिल किया जाता है जिसे रोलिंग मिल कहते हैं। रोलिंग मिल में ही सारा काम होता है और यहां कई वर्कर्स होते हैं जो सेंसर्स का ध्यान रखते हैं।

4. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर मिल का प्रेशर 0.01 प्रतिशत भी ऊपर-नीचे हुआ तो एल्युमीनियम फॉइल खराब हो जाएगी और मेटल सूखने के बाद मोड़ने लायक नहीं बचेगा।

5. जब मेटल को रोल कर 0.00017 से 0.0059 इंच की मोटाई का बना दिया जाता है तो इसे कोल्ड रोलिंग मिल में डाला जाता है जिससे ये ठंडा हो जाए।

6. अब यहां दिक्कत ये है कि अगर इसे इसी तरह से इस्तेमाल किया जाएगा तो बहुत पतला होने के कारण सूखने पर मेटल टूटने लगेगा और इसीलिए कोल्ड रोलिंग मिल में दोबारा इसपर मेटल की एक परत चढ़ाई जाती है। तभी सख्त दिखने वाला एल्युमीनियम मेटल इतनी पतली और आसानी से मोड़ी जा सकने वाली चीज़ में बदल दिया जाता है।