Ghazipur Landfill Site: दिल्ली के लिए शर्म है 35 साल पुराना यह जहरीला ‘पहाड़’
दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट के डंपिंग यार्ड में सोमवार दोपहर को आग लगने के बाद से अब तक उसके आसपास रहने वाले लोगों को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि अब भी पूरे क्षेत्र में धुआं फैला हुआ है।
वहीं नजदीक की कॉलोनियों में रहने वाले लोग बुरी तरह से जहरीले धुएं की चपेट में हैं। धुएं से लोगों की सांस फूल रही है। लैंडफिल साइट पर फेंके गए कपड़े और पॉलिथीन लगातार सुलग रहे थे।
इस वर्ष पहली बार गाजीपुर लैंडफिल में आग लगी है। पिछले तीन वर्षों में यहां आग की 18 घटनाएं हो चुकी हैं। स्टैंडिंग कमिटी के चेयरमैन बीर सिंह पंवार के मुताबिक, कूड़े के पहाड़ से मीथेन गैस निकलता है जो आग लगने का प्रमुख कारण है। उन्होंने बताया, लैंडफिल में सूखे पत्ते भरे पड़े हैं जो आसानी से आग पकड़ लेते हैं। इसके अलावा, दिल्ली का तापमान लगातार बढ़ना भी आग लगने का एक बड़ा कारण है।
पहले भी कई बार लगी आग
1. 31 मार्च, 2019 में भी इसी प्रकार गाजीपुर लैंडफिल साइट पर आग लगी थी, आस पास की कॉलोनियों में धुएं का गुबार भर गया था।
2. 24 नवंबर, 2020 में यहां भयंकर आग लगी थी, आग बुझाने में करीब पांच दिन लगे थे, तब भी लोगों को बहुत परेशानी हुई थी।
3. 28 मार्च 2021 को भी गाजीपुर लैंडफिल साइट पर तेज आग लग गई थी, इसे बुझाने में कई घंटे मशक्कत करनी पड़ी थी।
गाजीपुर लैंडफिल साइट 1984 में शुरू हुई जहां कुछ साल पहले कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई 65 मीटर पहुंच गई थी। यह साइट पूर्वी दिल्ली नगर निगम (EDMC) के तहत आती है। यहां 140 लाख टन कूड़े का पहाड़ है। दिल्ली में दो और कूड़े के पहाड़ हैं- ओखला लैंडफिल साइट और दूसरा भलस्वा लैंडफिल साइट। ये दोनों साइटें वर्ष 1996 में शुरू हुई थीं। दोनों जगहों पर कूड़े का पहाड़ 42-42 मीटर ऊंचा हो चुका है।
पहले तो ये दोनों पहाड़ और भी ऊंचे थे, लेकिन प्रॉसेसिंग का काम तेज होने से इनकी ऊंचाई घटी है। टेरी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक तीनों कूड़े के पहाड़ों से दिल्ली के पर्यावरण को 450 करोड़ का नुकसान हुआ है।