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किसानों के लिए अच्छी खबर,  PM करेंगे नैनो यूरिया प्लांट का उद्घाटन

आज गुजरात के कलोल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले नैनो यूरिया (लिक्विड) प्लांट का उद्घाटन करेंगे। नैनो यूरिया के उपयोग से फसल की पैदावार में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए अल्ट्रामॉडर्न नैनो फर्टिलाइजर प्लांट की स्थापना की गई है। इसे करीब 175 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। इस प्लांट से रोजाना 500 मिलीलीटर की लगभग 1.5 लाख बोतलों का उत्पादन होगा। नैनो यूरिया लिक्विड की आधी लीटर की बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है जो सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व देता है। माना जा रहा है कि यह देश में एग्रीकल्चर सेक्टर का कायापलट कर सकता है।

हर साल खरीफ के सीजन में देश में किसानों को बड़ी मात्रा में खाद की जरूरत पड़ती है। किसानों की मांग को देखते हुए इफको (IFFCO) इस साल कलोल में नैनो यूरिया प्लांट की शुरूआत करने जा रहा है। अब किसानों को खाद की किल्लत का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। इफको ने कमर्शियल रूप से दुनिया का पहला नैनो यूरिया विकसित किया है। पिछले साल इफको ने 2.9 करोड़ बोतल नैनो यूरिया का उत्पादन किया था जो 13.05 लाख मीट्रिक टन परंपरागत यूरिया के बराबर है।

आपको बता दें इफको (Indian Farmers Fertiliser Cooprative) ने हाल के वर्षों में नैनो यूरिया लिक्विड की खोज की थी। देश की 94 से अधिक फसलों पर इसका परीक्षण किया गया था। 31 मई 2021 को इसकी शुरुआत हुई थी। इफको के मुताबिक लिक्विड यूरिया के इस्तेमाल से सामान्य यूरिया की खपत 50 फीसदी तक कम हो सकती है। नैनो यूरिया लिक्विड की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है जो सामान्य यूरिया के एक एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व देता है। IFFCO नैनो यूरिया एकमात्र नैनो फर्टिलाइजर है जिसे भारत सरकार ने मान्यता दी है और फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर में शामिल किया है। इसे इफको ने विकसित किया है और इसक पैटेंट भी इफको के ही पास है।


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फसलों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए किसान यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अब तक यूरिया सफेद दानों के रुप में उपलब्ध थी। इसका इस्तेमाल करने पर आधे से भी कम हिस्सा पौधों को मिलता था जबकि बाकी जमीन और हवा में चला जाता था। भारत नैनो लिक्विड यूरिया को लॉन्च करने वाला पहला देश है। मई 2021 में इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने इसे लॉन्च किया था। इससे पहले नैनो तरल यूरिया को 94 से ज्यादा फसलों को देश भर में 11,000 कृषि क्षेत्र परीक्षण (एफएफटी) पर परिक्षण किया गया था। इसके बाद आम किसानों को दिया गया। इफको की मानें तो धान, आलू, गन्ना, गेहूं और कई तरह की सब्जियों की फसलों पर इसके बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। जानकारों का कहना है कि इसके इस्तेमाल से पर्यावरण, पानी और मिट्टी का प्रदूषण भी नहीं होगा। इसका ट्रांसपोर्टेशन और रखरखाव खर्च भी बहुत सस्ता है। पहले किसान को 10 बोरी यूरिया ले जाने के लिए ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती थी। लेकिन नैनो लिक्विड यूरिया की 10 बोतल भी किसान एक झोले में रखकर मोटरसाइकिल पर लेकर आसानी से जा सकता है।

जानकारों के मुताबिक अभी एक पूरे रैक मालगाडी में 52,000 बोरी यूरिया आती है, लेकिन नैनो तरल यूरिया की 52,000 बोतलें तो सिर्फ एक ट्रक में ही आ जाएंगी। इसे लिए बड़े-बड़े गोदामों की जरुरत नहीं है। इससे लागत कम होगी और किसानों को सस्ती खाद मिलेगी। रबी की फसलें (गेहूं, सरसों आदि) मुश्किल से 40 से 50 फीसदी परंगरागत यूरिया का इस्तेमाल कर पाती हैं। खरीफ की फसलें (धान, मक्का) इसका 25 से 30 फीसदी इस्तेमाल कर पाती हैं। अगर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन देते हैं तो फसलें सिर्फ 25 फीसदी ले पाती हैं। बाकी का 75 फीसदी गैस बनकर हवा में उड़ जाता है या पानी की अधिकता होने पर फसलों के जड़ों के नीचे चला जाता है।

नैनो यूरिया का अविष्कार इन खामियों को दूर करने के लिए किया गया है। नैनो तरल यूरिया का उपयोग फसल की पत्तियों पर छिड़काव के माध्यम से करते हैं। छिड़काव के लिए एक लीटर पानी में 2-4 मिलीलीटर नैनो यूरिया मिलाना होता है। एक फसल में दो बार नैनो यूरिया का छिड़काव किया जाता है। जानकारों का कहना है कि जब हम पत्तियों पर इसका छिड़काव करते हैं तो सारा का सारा नाइट्रोजन सीधे पत्तियों में चला जाता है। इसलिए यह परंपरागत यूरिया की तुलना में ज्यादा कारगर है।