Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामला वाराणसी जिला कोर्ट ट्रांसफर, DU प्रोफेसर अरेस्ट
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जहां ‘शिवलिंग’ मिलने की बात कही गई है, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करें, साथ ही मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की इजाजत दी थी। वहीं आज सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की सुनवाई करते हुए इसे वाराणसी जिला कोर्ट को भेज दिया है। अब मुकदमे से जुड़े सभी मामले जिला जज ही देखेंगे। आठ हफ्ते तक सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश लागू रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को 8 हफ्ते का अंतरिम आदेश जारी किया था।
आज सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम निर्देश दे सकते हैं कि निचली अदालत प्रतिवादी के आवेदन का निपटारा करे। तब तक हमारा अंतरिम आदेश जारी रहे और तीसरी बात हम यह कहना चाहते हैं कि मामले की जटिलता को देखते हुए इसे जिला जज को भेजा जाए। मुस्लिम पक्ष चाह रहा है कि सुप्रीम कोर्ट निचली अदालत के सारे फैसले खारिज कर दे, सुनवाई के दौरान हिन्दू-मुस्लिम पक्ष के बीच तीखी बहस देखने को मिली।
Gyanvapi mosque case | SC says the trial of the matter will be done by district judge Varanasi. SC says its interim order of May 17 for protection of Shivling area will continue. Arrangement of Wuzu will be done. We're very happy with order: Adv Vishnu Jain, Hindu side's lawyer pic.twitter.com/4kGditCILC
— ANI (@ANI) May 20, 2022
धार्मिक स्थलों के विवाद रोकने के लिए भी बनाया गया था POW कानून
ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील अहमदी ने कहा कि मस्जिद के अस्तित्व और मस्जिद के धार्मिक चरित्र पर कोई विवाद नहीं है। इस पर हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील वैद्यनाथन ने उन्हें टोकते हुए कहा कि यह विवाद में है। इस पर अहमदी ने अपने बात दोहराते हुए कहा कि यह विवाद में नहीं है। मस्जिद 500 साल से है। POW अधिनियम कहता है कि स्वतंत्रता के समय जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था वह वैसे ही रहेगा। अगर इसमें कोई बदलाव करता है तो नियम का उल्लंघन होगा। देश में कई ऐसी जगह हैं, जहां कई धर्मों के प्रतीक मौजूद हैं। पहले मंदिर था, फिर मस्जिद, फिर दूसरा मंदिर या बौद्ध मंदिर विवाद को रोकने के लिए POW अधिनियम बनाया गया था।
महेश जेठमलानी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत धार्मिक प्रकृति की संरचनाओं का निर्धारण करने के उद्देश्य से एक सर्वेक्षण वर्जित नहीं है। अधिनियम की पूर्ण व्याख्या की गुंजाइश खुल गई है।
A most key aspect of the SC order in the Gyanvapi case is it’s observation that a survey for the purpose of determining a structures religious nature is not barred under the Places of Worship Act 1991. The scope for a fuller interpretation of the Act has opened up #Gyanvapi
— Mahesh Jethmalani (@JethmalaniM) May 21, 2022
उपासना स्थल क़ानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में रहेगा, उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा। ये क़ानून ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह समेत देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है।
11 जुलाई 1991 में बना "उपासना स्थल क़ानून" साफ़ कहता है "घोषित किया जाता है कि 15 अगस्त 1947 को विधमान उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहगा जैसा वह उस दिन विधमान था"!
फ़िर किस क़ानून के तहत ज्ञानवापी जामा मस्जिद का सर्वेक्षण और ख़ुदाई की जा रही है?#GyanvapiMasjid pic.twitter.com/iJGneVKthx— Zakir Ali Tyagi (@ZakirAliTyagi) May 14, 2022
इस क़ानून का सेक्शन (3) कहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग (सेक्ट) के पूजा स्थल के स्वरूप में किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर सकता है।
इसी क़ानून के सेक्शन 4(1) में लिखा है- यह घोषित किया जाता है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा वह उस दिन था।
इसी क़ानून के सेक्शन 4(2) में लिखा है- यदि इस अधिनियम के लागू होने पर, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन के बारे में कोई वाद, अपील या अन्य कार्रवाई किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष लंबित है, तो वह रद्द हो जाएगी. और ऐसे किसी मामले में कोई वाद, अपील, या अन्य कार्यवाही दोबारा से किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकारी के समक्ष शुरू नहीं होगी।
इस क़ानून के सेक्शन (5) के तहत अयोध्या विवाद को इससे अलग रखा गया क्योंकि यह मामला आज़ादी से पहले अदालत में लंबित था. इसका एक और अपवाद वो धार्मिक स्थल हो सकते हैं जो पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन आते हैं और उनके रख-रखाव के काम पर कोई रोकटोक नहीं है।
DU के हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर रतन लाल अरेस्ट
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज के एक 50 वर्षीय एसोसिएट प्रोफेसर को कथित तौर पर आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट करने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने को लेकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलिस के मुताबिक, इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर रतन लाल ने मंगलवार को कथित तौर पर शिवलिंग की तस्वीर पोस्ट की थी और आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
ज्ञानवापी मस्जिद केसः ‘शिवलिंग’ पर विवादित कमेंट करने वाले DU के हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर रतन लाल अरेस्ट, हंगामा https://t.co/VJrV5POfBT
— kalika prasad (@kalikaprasad5) May 21, 2022
एक अधिकारी ने कहा कि रतन लाल को पहले पूछताछ के लिए बुलाया गया और बाद में गिरफ्तार किया गया। डीसीपी (नॉर्थ) सागर सिंह कलसी ने शुक्रवार रात गिरफ्तारी की पुष्टि की। प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद, AISA सहित कुछ छात्र संगठन मौरिस नगर में पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हुए थे।
पुलिस के अनुसार, रतन लाल के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किए गए दुर्भावनापूर्ण कृत्य) के तहत एक सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था।