हरतालिका तीज आज, जानिए पूजन का शुभ मुहूर्त और व्रत विधि
इस बार हरतालिका तीज का व्रत 9 सितंबर यानी गुरुवार को है। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का प्रारंभ 8 सितंबर, दिन बुधवार को देर रात 2 बजकर 33 मिनट पर होगा। यह तिथि 09 सितंबर को रात 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ये व्रत अविवाहित कन्याएं भी रख सकती हैं। हरतालिका तीज का व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करती हैं।
इस व्रत को विधि विधान और कठोर नियमों का पालन करते हुए करना ज़रूरी है। इस दिन महिलाओं को क्रोध नहीं रखना चाहिए। क्रोध करने से मन की पवित्रता भंग हो जाती है। महिलाएं अपने हाथों पर मेहंदी लगाती हैं। व्रत के दिन पूरी रात जागरण करके पूजा करना चाहिए। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार मान्यता है कि यदि व्रती रात को सो जाती हैं, तो अगले जन्म में अजगर के रूप में जन्म होता है। इस दिन व्रती गलती से खा लें या पी लें तो अगले जन्म में वानर के रूप में जन्म लेती हैं और यदि गलती से पानी पी लें, तो अगले जन्म मछली के रूप में जन्म मिलता है। इसी तरह इस व्रत को रखने वाली महिलाएं यदि व्रत के दौरान दूध पी लेती हैं, तो उन्हें अगले जन्म में सर्प योनि में जन्म मिलता है।
हरतालिका तीज की पूजा शुभ मुहूर्त में करें। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू, रेत या काली मिट्टी की प्रतिमा बनाएं। पूजा के स्थान को फूलों से सजाएं और एक चौकी रखें. इस पर केले के पत्ते बिछाएं और भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद विधि से पूजन करें।
माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाएं और भगवान शिव को धोती और अंगोछा चढ़ाएं. बाद में ये सभी चीजें किसी ब्राह्मण को दान कर दें। पूजा के बाद तीज की कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। अगले दिन सुबह आरती के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
पूर्वजन्म में सती होने के बाद देवी ने अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया । भगवान शंकर को पाने के लिए घोर तप किया। अन्न-जल त्याग दिया। उनका शरीर पर्ण के समान हो गया। यहीं से देवी का नाम अपर्णा पड़ा। भूख और प्यास को सहन करते हुए देवी ने केवल एक ही प्रण किया कि वह शंकर जी को ही वरण करेंगी। तप तो पूरा हुआ, लेकिन भगवान शंकर कहां मानने वाले थे। तारकासुर के संहार के लिए शंकर जी ने पार्वती से विवाह किया, क्योंकि तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि शंकर जी के पुत्र द्वारा ही वह मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। कार्तिकेय के रूप में पार्वती जी ने पुत्र को जन्म दिया और तब जाकर तारकासुर से मुक्ति मिली।
हरतालिका तीज इच्छित वर की कामना का व्रत है। कालांतर में, सुहागिन स्त्रियां भी व्रत को करने लगीं। पार्वती जी की तरह निर्जल रहने लगीं। मुख्य उद्देश्य एक ही है शिव ही शिव हो, यानी कल्याण। परिवार में भी और दाम्पत्य जीवन में भी।
शिव कल्याण के देव हैं और पार्वती जी कल्याणी। पारिवारिक और वैवाहिक, सभी संस्कारों की नींव शिव परिवार से ही पड़ी। यह सुखी और आदर्श परिवार है। इसमें कार्तिकेय के रूप में गर्भ से उत्पन शिशु भी हैं, तो मानस पुत्र के रूप में गणेश जी भी। इन सभी का विश्वास शिव में है। शिव का विश्वास इनमें है। इसलिए, शिव परिवार सुखी परिवार है। जिस तरह माता पार्वती का सुहाग अक्षत है, उसी तरह व्रत को करने वालों का भी हो, यही कामना सनातन है। यही हरतालिका है। हम सभी परिवार के लिए कुछ न कुछ समर्पण करते हैं। अन्न-जल का त्याग इसी संकल्प का हिस्सा है। सब सुखी हों, सभी का परिवार श्रद्धा व विश्वास के साथ फूले-फले, यही कामना हमको और हमारी संस्कृति को सुख देती है।