पति का पत्नी को आगे की पढ़ाई के लिए कहना, बच्चा पैदा करने के बारे में विचार व्यक्त करना ‘क्रूरता’ नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति अपनी पत्नी को शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सुझाव दे या उसे ऐसा कहे तो उसे क्रूरता नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस डॉ एचबी प्रभाकर शास्त्री की एकल पीठ ने डॉ शशिधर सुब्बान्ना और उनकी मां द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड की धारा 498-ए, धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गई सजा को रद्द कर दिया।
निचली अदालत ने 7 सितंबर 2013 के आरोपियों को दोषी ठहराया था और सत्र अदालत ने एक दिसंबर 2016 इसे बरकरार रखा था।
कोर्ट ने कहा है कि अगर पति अपनी पत्नी को शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए कहता तो उसे ‘क्रूरता’ नहीं कह सकते।
हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता के ‘पति ने शादी की पहली रात को कहा था कि वह 3-साल तक बच्चा नहीं चाहता’ दावे पर कहा, “यह आम बातचीत है। विचार व्यक्त करने को क्रूरता नहीं माना जा सकता।”